नई दिल्ली: बिहार की नव-निर्वाचित विधानसभा के तक़रीबन 70 प्रतिशत सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं, जिनमें हत्या और हत्या के प्रयास से लेकर अपहरण और महिलाओं के प्रति हिंसा तक के मामले शामिल हैं.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) नाम की, एक अपक्षपाती एनजीओ द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों के अनुसार, क़रीब 68 प्रतिशत विधायकों – कुल मिलाकर 163 पर आपराधिक गतिविधियों के आरोप हैं, जो पिछली विधान सभा के अनुपात से 10 प्रतिशत अधिक हैं. एडीआर ने 243 में से 241 विधायकों का विश्लेषण किया है, क्योंकि चुनाव आयोग में दाख़िल उनमें से दो के हलफनामे स्पष्ट नहीं हैं.
आपराधिक मामलों के आरोपी 163 विधायकों में से, 123 या कुल आधे विधायकों के खिलाफ संगीन अपराध के मुकदमे दर्ज हैं- 19 पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप हैं, जबकि 31 विधायक हत्या के प्रयास के आरोपी हैं और आठ के खिलाफ महिलाओं के प्रति हिंसा से जुड़े आरोप हैं.
बिहार में, फरवरी के बाद पहले चुनाव थे जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी पार्टियों से कहा था कि आपराधिक आरोपों वाले अपने सभी उम्मीदवारों का ब्यौरा प्रकाशित करें और ये भी बताएं कि उन्हें टिकट क्यों दिए गए.
कोई दल अछूता नहीं
अकेली सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के 74 में से 54 (73 प्रतिशत) कथित रूप से अपराधी विधायक हैं, जबकि बीजेपी के 73 में से 47 (64 प्रतिशत) विधायक ऐसे हैं.
अपक्षपाती एनजीओ द्वारा जांचे गए डेटा से पता चला कि आरजेडी के 74 में से 54 विधायकों पर आपराधिक गतिविधियों के आरोप लगे हुए हैं, जबकि बीजेपी की ये संख्या 73 में से 47 है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी और बीजेपी की सहयोगी जेडी(यू) के, 43 में से 20 विधायक ऐसे हैं, जबकि आरजेडी की महागठबंधन सहयोगी कांग्रेस में, ये संख्या 19 में से 18 है. ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सभी पांच विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं.
इस सूची में सबसे प्रमुख नाम अनंत सिंह का है, जिन्हें उनके चुनाव क्षेत्र मोकामा में ‘छोटे सरकार’ कहा जाता है. सिंह ने जेल में रहते हुए चुनाव जीता, जहां वो अपने घर में एके-47 रायफल और विस्फोटक रखने के आरोप में बंद हैं. सिंह के खिलाफ 38 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें सात हत्या के हैं और उन्हें एक डॉन के रूप में जाना जाता है.
किसी समय वो सीएम नीतीश की पसंद हुआ करते थे और उन्होंने जेडी(यू) के लिए चार चुनाव लड़े. लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनावों से पहले वो अलग हो गए, जिसमें जेडी(यू) ने अपने कट्टर प्रतिद्वंदी, आरजेडी के साथ सहयोग किया था. लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने एक यादव युवक की हत्या का मामला उठाया था, जिसका आरोप अनंत सिंह पर था, और जब दोनों पार्टियों ने सरकार बनाई, तो सिंह को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लेकिन फिर ज़मानत पर छोड़ दिया गया.
इस बीच, उन्होंने निर्दलीय के नाते मोकामा से चुनाव लड़ा और जीत गए. विडंबना ये है, कि इस बार वो आरजेडी के टिकट पर लड़कर जीते हैं.
इस बार चुने गए एक और कुख्यात विधायक हैं, एमएलसी रीतलाल यादव, जो हाल ही में जेल से रिहा हुए थे. यादव पर, जो दानापुर से आरजेडी विधायक हैं, अन्य के अलावा ज़मीन हथियाने, जबरन वसूली और हत्या के प्रयास जैसे मामले दर्ज हैं. लेकिन उन्हें इतना प्रभावशाली समझा जाता है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में, पाटलिपुत्र से अपनी बेटी मीसा भारती की जीत सुनिश्चित कराने के लिए, लालू एक बार उनसे जेल में मिलने गए थे. मीसा वो चुनाव हार गईं थी.
इस बीच, कटिहार की बलरामपुर सीट से सीपीआई (एमएल-लिबरेशन) विधायक, महबूब आलम के खिलाफ 28 मामले दर्ज हैं और दर्ज मुकदमों के मामले में अनंत सिंह के बाद वो सूची में दूसरे नंबर पर है. आलम के खिलाफ मुक़दमों में हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, और जबरन वसूली के आरोप शामिल हैं. वैश्यावृति रैकेट के एक मामले में भी, उनका नाम सामने आया था.
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के डायरेक्टर, डीएम दिवाकर ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टियां इन बाहुबलियों का सहारा इसलिए लेती हैं कि अपने इलाक़ों में इनकी मज़बूत पकड़ होती है.
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दिवाकर ने कहा, ‘इन बाहुबलियों का अपने इलाक़ों में प्रभाव होता है, चूंकि इनमें से कुछ सामूहिक विवाह जैसे, समाज सेवा के काफी काम करते हैं. वो आज के रॉबिन हुड्स की तरह होते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘हर सियासी पार्टी सीटें जीतने के लिए उनकी मदद लेती है’.
करोड़पति विधायकों की संख्या में उछाल
नई विधान सभा में एक करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति रखने वाले विधायक भी बढ़ गए हैं- अब करोड़पति विधायकों की संख्या 194 है, जो पिछली विधान सभा में 162 थी. इसका मतलब है कि 81 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं, जबकि पहले ये 67 प्रतिशत थे.
एक-चौथाई उम्मीदवारों की संपत्ति 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक की है, जबकि 36 प्रतिशत की संपत्ति, 2 करोड़ से 5 करोड़ के बीच है.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, 2018-19 में बिहार में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम थी, जो 1,26,406 रुपए के राष्ट्रीय औसत के मुक़ाबले, सिर्फ 43,822 रुपए थी.
पार्टी के लिहाज़ से, बीजेपी इस सूची में सबसे ऊपर है, जिसके 89 प्रतिशत (73 में से 65) विधायक करोड़पति हैं, जबकि जेडी(यू) के 88 प्रतिशत, और आरजेडी के 87 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं.
68 करोड़ की घोषित संपत्ति के साथ, अनंत सिंह इस लिस्ट में भी सबसे ऊपर हैं, जिसके बाद कांग्रेस के आनंद शर्मा हैं, जिनकी कुल संपत्ति 43 करोड़ रुपए की है. तीसरे नंबर पर 29 करोड़ की संपत्ति के साथ, आरजेडी की विभा देवी हैं. टॉप के दस उम्मीदवारों में से 6 आरजेडी से हैं.
क्रम में बिल्कुल विपरीत दिशा में, आरजेडी के एक सबसे निर्धन उम्मीदवार हैं- अलौली से रामवृक्ष सादा- जिनके पास केवल 70,000 रुपए की संपत्ति है.
एडीआर के अध्यक्ष त्रिलोचन सिंह शास्त्री ने ये भी कहा, ‘बिहार में बाहुबलियों और धनशक्ति का ये रुझान, हर चुनाव में बढ़ता जा रहा है. हैरत की बात ये है, कि जिस राज्य में कोई उद्योग नहीं हैं, जहां लोगों की आय कम है, वहां उम्मीदवारों की संपत्तियां बढ़ती जा रही हैं…(और) राजनीति में अपराधीकरण का विस्तार हो रहा है.’
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