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Thursday, 21 November, 2024
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कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन ने क्यों पावर-सरप्लस पंजाब में बिजली संकट पैदा कर दिया है

पंजाब में किसानों का प्रदर्शन कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष के तौर पर शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे वह कॉरपोरेट क्षेत्र के विरोध में तब्दील होते-होते टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप और मॉल तक पहुंच गया.

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तलवंडी साबो और राजपुरा: केंद्र सरकार की तरफ से पंजाब के लिए मालगाड़ियों की आवाजाही लगातार निलंबित रहने के बीच बिजली की अधिकता वाला यह राज्य बिजली संकट से जूझने को मजबूर है.

राज्य के पांच थर्मल पावर प्लांट में से तीन निजी स्वामित्व वाले हैं जबकि दो पंजाब सरकार द्वारा संचालित हैं. तीन निजी संयंत्रों में से दो को आंदोलनकारी किसानों ने सितंबर में संसद द्वारा पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में गत 1 अक्टूबर से बंद करा रखा है और जिसे वह निजी खिलाड़ियों के प्रति राज्य सरकार का पक्षपाती रवैया करार देते हैं. जबकि तीसरा संयंत्र पिछले हफ्ते कोयले की कमी के कारण बंद हो चुका है.

किसानों का प्रदर्शन कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्ष के तौर पर शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे कॉरपोरेट क्षेत्र के विरोध में तब्दील होते-होते रिलायंस और एस्सार के स्वामित्व वाले टोल प्लाजा, पेट्रोल पंप और मॉल और अडानी समूह की तरफ से निजी थर्मल प्लांट को कोयला पहुंचाने वाली मालगाड़ियों तक पहुंच गया.

बठिंडा में सरकारी स्वामित्व वाले राज्य के सबसे पुराने बिजली संयंत्र के बंद होने से उपजी नाराजगी ने इस विरोध की आग में घी का काम किया जब केंद्र सरकार की ओर से इस क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से बिजली (संशोधन) विधेयक प्रस्तावित किया गया था. जिस पर उसे किसान विरोधी होने और पूरे बिजली क्षेत्र के निजीकरण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने के आरोप का सामना करना पड़ रहा है.

इस बीच, राज्य सरकार यह कहते हुए निजी बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देने के आरोपों के खिलाफ अपना बचाव करती है कि अकेले उसकी सुविधाएं धान के मौसम की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती हैं. हालांकि, किसान इस दावे पर सवाल उठाते हैं.

निजी संयंत्रों के प्रवेश द्वार पर हर दिन प्रदर्शन और चौबीस घंटे धरने के साथ किसान इन्हें संचालित करने देने के मूड में नहीं हैं. हालांकि, संयंत्रों के मुख्य द्वार पर किसानों का विरोध लगातार जारी है पर ऐसी फैसिलिटी के पास पटरियों पर किए जा रहे प्रदर्शन की जगह आंदोलनकारियों ने बदल दी है ताकि कोयला और अन्य आवश्यक सामान ले जाने वाली मालगाड़ियों की आवाजाही हो सके.

हालांकि, किसानों और राज्य सरकार की ओर से जोर देकर यह कहे जाने के बावजूद कि पटरियों पर विरोध प्रदर्शन बंद हो चुका है, केंद्र सरकार का कहना है कि रेलवे की सुरक्षा पर पंजाब से पुख्ता आश्वासन के बाद ही मालगाड़ियों की आवाजाही फिर शुरू होगी.

नतीजा, पंजाब की बिजली की मांग पूरी नहीं हो पा रही है और पटियाला, जालंधर, मोहाली जैसे प्रमुख शहरों और कस्बों को घंटों बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है.


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पावर-सरप्लस पंजाब में बिजली संकट

सरकार संचालित दो बिजली संयंत्र लेहरा मोहब्बत और रोपड़ में स्थित हैं और निजी स्वामित्व वाले तीन संयंत्र तलवंडी साबो, राजपुरा और गोइंदवाल साहिब में हैं.

सरकारी संयंत्रों में बिजली उत्पादन क्षमता 1,760 मेगावाट है जबकि तीन निजी बिजली संयंत्रों की संयुक्त क्षमता 3,920 मेगावाट है. इसके अलावा राज्य ऊर्जा, जल, सौर और बायोमास आदि नवीकरणीय स्रोतों के माध्यम से 1,300 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर सकता है. इसके साथ पंजाब की कुल बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 7,000 मेगावाट तक पहुंच जाती है.

केंद्र सरकार को बिजली नीति पर सलाह देने वाले केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की ओर से जारी 2019-2020 की लोड-जेनरेशन बैलेंसिंग रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के पास 22.9 प्रतिशत सरप्लस बिजली है. वित्तीय वर्ष 2018-2019 में भी सीईए ने कहा था कि पंजाब में बिजली की अधिकता होगी.

तीन निजी बिजली संयंत्रों के बंद होने के बीच केवल दो सरकारी संयंत्र ही चल रहे हैं. पंजाब सरकार के अनुसार, राज्य द्वारा संचालित संयंत्रों से उत्पादित बिजली राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

पंजाब सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘साल के इस समय में धान के मौसम के दौरान हमारी बिजली की आवश्यकता 13,000 मेगावाट तक पहुंच जाती है. अब शटडाउन के कारण पंजाब में कम से कम 500-700 मेगावाट बिजली की कमी हो गई है.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘सरकारी संयंत्र पुराने हैं और धान के मौसम की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते हैं.’

हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने इस दावे को खारिज करते हुए राज्य और केंद्र सरकारों पर निजी क्षेत्र को मदद पहुंचाने के लिए हाथ मिला लेने का आरोप लगाया है.

एक प्रदर्शनकारी मैहर सिंह ने कहा, ‘पंजाब में पर्याप्त बिजली है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पंजाब सरकार दिल्ली को 2 रुपये/यूनिट के हिसाब से अतिरिक्त बिजली बेचती है लेकिन किसानों को 8 से 12 रुपये/यूनिट तक कीमत चुकानी पड़ती है. वे कॉरपोरेट क्षेत्र के हितों की रक्षा में मोदी सरकार से अलग नहीं हैं. वे राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए बिजली की कमी के पीछे किसानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.’

निजी बिजली संयंत्रों में विरोध का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहन) के महासचिव सुखदेव कोकारी ने कहा, ‘अगर सरकार पूरी क्षमता से अपने दो बिजली संयंत्रों को चलाना शुरू कर देती है तो बिजली की कोई कमी नहीं होगी.’

उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार बिजली संयंत्र पूरी क्षमता से चलाती है और फिर भी बिजली की कमी रहती है तो हम तुरंत विरोध वापस ले लेंगे और संयंत्र के प्रवेश द्वारों को खाली कर देंगे.’

निजी क्षेत्र के खिलाड़ी निशाने पर

दिप्रिंट ने शनिवार को राज्य के तीन निजी संयंत्रों में से दो तलवंडी साबो और राजपुरा का दौरा किया. प्रदर्शनकारियों ने इन्हें बंद करा दिया है क्योंकि वे निजी कंपनियों वेदांता और एलएंडटी के स्वामित्व वाले हैं.

भाकियू (एकता उग्राहन) के बैनर तले किसान 1 अक्टूबर से इन दोनों निजी संयंत्रों के आसपास रेलवे पटरियों पर आंदोलन कर रहे थे लेकिन अब प्रदर्शन स्थल बदल गया है.

तलवंडी साबो में प्रदर्शन में शामिल भाकियू (एकता उग्राहन) के उत्तम सिंह ने कहा, ‘हमने 1 अक्टूबर को बिजली संयंत्रों की ओर जाने वाली रेल पटरियों पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया और 23 अक्टूबर तक कोयले की आपूर्ति ठप रखना जारी रखा. केंद्र की तरफ से 24 अक्टूबर को मालगाड़ियों का संचालन बंद किए जाने के बाद हम प्रवेश द्वार पर चले गए क्योंकि हम उन किसानों को कोई असुविधा नहीं पहुंचाना चाहते थे जिन्हें इस समय खेती के लिए आवश्यक आपूर्ति की जरूरत है. लेकिन कॉरपोरेट के खिलाफ हमारा विरोध अभी जारी है.’

किसानों का कहना है कि तीन कृषि कानून पारित करने के साथ मोदी सरकार उनकी जमीन कॉरपोरेट घरानों को सौंपना चाहती है. विधानसभा में इन्हें नकारने वाले कानून और बिजली संबंधी बिल अस्वीकार करने का संकल्प पारित किए जाने के साथ राज्य के राजनीतिक दलों ने भी तीनों कानूनों का विरोध किया है.

तलवंडी साबो में ही विरोध प्रदर्शन में शामिल रवींद्र सिंह ने कहा, ‘हमने उन कॉरपोरेट्स को निशाना बनाया है जो मोदी द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के माध्यम से हमारी जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. यही कारण है कि हमने पहले रेल पटरियों को बाधित किया, ताकि कोयला इन निजी उद्योगों तक न पहुंच सके और हमारा संदेश दिल्ली तक पहुंचे.’

बिजली संयंत्रों का विरोध अनियंत्रित निगमीकरण के खिलाफ आशंकाओं की एक और अभिव्यक्ति है, जो बिजली (संशोधन) बिल के खिलाफ प्रदर्शनकारियों की चिंताओं को और ज्यादा बढ़ा रही है.

भाकियू (एकता उग्राहन) के प्रमुख जोगिंदर उग्राहन ने कहा, ‘हम प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक का भी विरोध कर रहे हैं, जो निजी कंपनियों को बढ़ावा देने और उन्हें ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए किसानों को बिजली के लिए ऊंची कीमत चुकाने के लिए मजबूर करने वाला है.’

प्रदर्शनकारियों के अनुसार, बिजली संयंत्रों को इसलिए निशाना बनाया गया है क्योंकि पंजाब सरकार भी ‘केवल निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना चाहती है.’

राजपुरा में प्रदर्शन कर रहे गुरविंदर सिंह ने कहा, ‘सरकार ने राज्य द्वारा संचालित बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया है और केवल निजी संयंत्रों को प्रोत्साहित कर रही है. बठिंडा में सरकार द्वारा संचालित संयंत्र को देखें, जिसे बंद कर दिया गया था. अब जबकि ये निजी संयंत्र भी बंद हैं तब भी सरकार रोपड़ और लेहरा मोहब्बत स्थित सरकारी बिजली संयंत्रों में केवल 1 या 2 इकाइयों को ही चला रही है. वे इन संयंत्रों को पूरी क्षमता से क्यों नहीं चला रहे?’

तलवंडी साबो में ही प्रदर्शन कर रहे भाकियू (एकता उग्राधन) के नसत्तर सिंह ने कहा, ‘हमने कॉरपोरेट्स द्वारा संचालित इन बिजली संयंत्रों को निशाना बनाया है क्योंकि सरकार ने अपने खुद के बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया है और केवल इन निजी संयंत्रों को चला रही है जो किसानों से ज्यादा दर पर विद्युत शुल्क वसूलते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सरकारी बिजली संयंत्र 2 रुपये/यूनिट के हिसाब से बिजली के दाम लेते हैं लेकिन ये कॉरपोरेट ग्रुप 10-12 रुपये/यूनिट की दर से शुल्क वसूलते हैं. वे किसानों को लूट रहे हैं. अब इन तीन कृषि कानूनों के साथ मोदी सरकार हमारी जमीनों को कॉरपोरेट घरानों को देना चाहती है, जिसकी हम अनुमति नहीं देंगे.’

राजपुरा में मैहर सिंह ने कहा, ‘मोदी सरकार और अमरिंदर सरकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. उन्हें केवल इस बात की चिंता है कि पंजाब बिजली की कमी झेल रहा है.’

ऊपर उल्लिखित राज्य सरकार के अधिकारी ने इन आरोपों के खिलाफ प्रशासन का बचाव किया. उन्होंने कहा, ‘किसानों के दावों की परवाह किए बिना बिना पंजाब सरकार 70 स्रोतों से बिजली खरीद रही है जो राज्य के अंदर और बाहर दोनों जगह है. जहां भी बिजली सस्ती है, हम वहां से खरीदते हैं, चाहे वह निजी हो या सरकारी. निजी क्षेत्र के संयंत्रों में वैरीएबल कास्ट बहुत कम है.’

बिजली संबंधी बिल के विरोध के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा, ‘पंजाब सरकार प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक के खिलाफ है. हम पहले ही इसके खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर चुके हैं.’

‘बिजली की कमी किसानों के कारण नहीं’

राज्य सरकार ने जहां यह दावा किया है कि रेलवे को बाधित करने के कारण कोयले की आपूर्ति प्रभावित हुई है, जिससे राज्य में बिजली संकट उत्पन्न हुआ. वहीं किसानों का कहना है कि सरकार राज्य के स्वामित्व वाले बिजली संयंत्रों को चलाने के लिए स्वतंत्र है.

राजपुरा में प्रदर्शन में शामिल जसवंत सिंह ने कहा, ‘हमारा विरोध ये किसान विरोधी कानून लाए जाने के कारण कॉरपोरेट और मोदी सरकार दोनों के खिलाफ है. पंजाब भर में विरोध प्रदर्शनों के बावजूद रोपड़ और लेहरा मोहब्बत के सरकारी संयंत्र चल रहे हैं. हमने वहां कुछ नहीं किया है. पटरियों खाली हैं. हमने घोषणा कर रखी है कि मालगाड़ियां चल सकती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन सरकार हमें बदनाम करना चाहती है और यही वजह है कि वे बिजली की कमी के लिए हमें जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.’


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