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Monday, 25 November, 2024
होमहेल्थ‘एंटीबॉडीज़’ से गंभीर कोविड मरीज़ों में बन रहे हैं ख़ून के थक्के- नई स्टडी का दावा

‘एंटीबॉडीज़’ से गंभीर कोविड मरीज़ों में बन रहे हैं ख़ून के थक्के- नई स्टडी का दावा

अस्पताल में भर्ती 172 कोविड मरीज़ों पर की गई एक स्टडी में पता चला है, कि ख़ून में प्रवाह कर रहा एक ऑटोइम्यून एंटीबॉडी, सेल्स पर हमला करके धमनियों, नसों और सूक्ष्म धमनियों में थक्के बना देता है.

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नई दिल्ली: गंभीर कोविड मरीज़ों में अकसर ख़ून के थक्के जमा हो जाते हैं, जिससे जानलेवा स्ट्रोक्स हो सकते हैं, और फेफड़ों में ख़ून का दौरान कम हो सकता है. अब एक स्टडी से पता चला है, कि ये दरअस्ल सार्स-सीओवी-2 की वजह से बने कुछ एंटीबॉडीज़ हैं, जो उनके अंदर क्लॉट्स बना देते हैं.

इस हफ्ते साइंस ट्रांसनेशनल मेडिसिन पत्रिका में छपी इस स्टडी के अनुसार, ख़ून में प्रवाह कर रहा एक ऑटोइम्यून एंटीबॉडी, सेल्स पर हमला करके धमनियों, नसों और सूक्ष्म धमनियों में थक्के बना देता है.

आमतौर से, ये एंटीबॉडीज़ ऐसे मरीज़ों में पाए जाते हैं, जिनमे एंटीफॉसफॉलिपिड सिंड्रोम नामक ऑटोइम्यून बीमारी होती है- जिसमें इम्यून सिस्टम ग़लती से ख़ून में मौजूद प्रोटीन्स पर हमला करता है.

मिशिगन यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और स्टडी के एक लेखक योगेन कांति के अनुसार, एंटीबॉडीज़ और केविड के बीच का ये रिश्ता बिल्कुल अप्रत्याशित था.

कांति ने एक बयान में कहा, ‘कोविड-19 मरीज़ों में, हमें शरीर के अंदर सूजन और थक्के बनने का, एक निरंतर और खुद से बढ़ने वाला चक्र नजर आता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अब हमें पता चल रहा है कि थक्कों और सूजन के इस चक्र के दोषी एंटीबॉडीज़ हो सकते हैं, जो पहले से ही संघर्ष कर रहे लोगों को, और बीमार कर देते हैं’.


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क्या कहता है शोध

रिसर्चर्स, जिन्होंने कोविड-19 से अस्पताल में भर्ती 172 मरीज़ों का अध्ययन किया, को पता चला कि आधे से अधिक मरीज़ जो बहुत बीमार थे, उनमें ख़तरनाक एंटीबॉडीज़ और ‘सुपर सक्रिय’ न्यूट्रोफिल्स, दोनों के उच्च स्तरों का मिश्रण नज़र आ रहा था, जो विनाशकारी और विस्फोटक व्हाइट ब्लड सेल्स होते हैं.

टीम ने इन न्यूट्रोफिल्स और एंटीबॉडीज़ को एक साथ, चूहों के अंदर स्टडी किया, ये देखने के लिए कि क्या यही ख़तरनाक मिश्रण थक्कों की वजह हो सकता है.

कांति ने कहा,‘एक्टिव कोविड-19 इनफेक्शन वाले मरीज़ों से लिए गए एंटीबॉडीज़ ने, जानवरों के अंदर काफी मात्रा में थक्के बना दिए- इतने ज़्यादा थक्के हमने पहले कभी नहीं देखे थे’.

टीम अब ये पता लगाने पर काम करेगी, कि अगर एंटीबॉडीज़ को रोक या हटा दिया जाए, तो क्या गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों के नतीजे बेहर होंगे.

गंभीर ऑटो इम्यून बीमारियों में आमतौर से, प्लाज़्माफ़िरेसिस जैसा इलाज किया जाता है, जिसमें आईवी की मदद से खून निकालकर उसकी जगह ताज़ा प्लाज़्मा चढ़ाया जाता है, जिसके अंदर ब्लड क्लॉट्स से जुड़े एंटीबॉडीज़ मौजूद नहीं होते.

मिशिगन यूनिवर्सिटी के एक असिस्टेंट प्रोफेसर यू ज़ुओ ने बयान में कहा, ‘हम जानते हैं कि जिन लोगों में एंटीबॉडीज़ के स्तर सबसे ऊंचे थे, सांस लेने के मामले में उनकी हालत सबसे ख़राब थी, और एंटीबॉडीज़ ने स्वस्थ सेल्स में भी सूजन पैदा कर दी थी’.

सहायक लेखक जेसन नाइट ने कहा,‘ अभी हमें नहीं मालूम कि शरीर में ये एंटीबॉडीज़, किस वजह से पैदा हो रहे हैं, इसलिए अगला क़दम ये होगा, कि अतिरिक्त शोध से उस वजह की, और एंटीबॉडीज़ के लक्ष्यों की, पहचान की कोशिश की जाएगी.

टीम ने एक बेतरतीब क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है, जिसमें कोविड मरीज़ों को एक जाना पहचाना क्लॉटिंग-विरोधी एजेंट डिप्रिडैमोल दिया जाएगा, ये देखने के लिए कि क्या इससे, अत्यधिक ख़ून के थक्के बनने कम हो सकते हैं.

कांति ने कहा, ‘डिप्रिडैमोल एक पुरानी दवा है, जो सुरक्षित, सस्ती और मापनीय है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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