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Friday, 22 November, 2024
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पाकिस्तान के सुरक्षा विभाग ने कहा- ‘कश्मीर आंदोलन’ को प्रभावित कर सकता है इमरान का गिलगित-बल्तिस्तान कदम

पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग का आंकलन है कि गिलगित-बल्तिस्तान को प्रांतीय दर्जा दिए जाने के कदम पर भारत कह सकता है कि पाकिस्तान ने 'कश्मीर की आज़ादी' का आंदोलन छोड़ दिया है.

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नई दिल्ली: पाकिस्तान सरकार की एक एजेंसी ने चेतावनी दी है कि गिलगित-बल्तिस्तान को अस्थाई प्रांतीय दर्जा देने के इमरान खान सरकार के फैसले का इस्तेमाल करते हुए उसपर इल्ज़ाम लगाया जा सकता है कि उसने ‘कश्मीर छोड़ दिया है’, जिसका ‘कश्मीर की आज़ादी के आंदोलन’ पर भी विपरीत असर पड़ेगा.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अंतर्गत काम करने वाली नेशनल सिक्योरिटी डिवीज़न (एनएसडी) के एक आंतरिक आंकलन में कहा गया है कि इस ऐलान का फायदा उठाकर भारत 5 अगस्त 2019 की अपनी कार्रवाई को जायज़ ठहरा सकता है, जब उसने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था.

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के माध्यम से दिप्रिंट इस आंकलन को देख पाया है.

एनएसडी के आंकलन में ये भी कहा गया है कि इमरान खान सरकार को पाक-अधिकृत कश्मीर में, वहां के राजनीतिक नेतृत्व के विरोध का सामना करना पड़ सकता है, खासकर पीओके विधानसभा चुनावों से पहले, जो 2021 में होने हैं और इससे जी-बी और पीओके के बीच दूरी पैदा हो सकती है.

पिछले महीने पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान को अस्थाई तौर पर प्रांतीय दर्जा देने को सहमत हो गया था. उत्तरी छोर के इस विवादित इलाके में पाकिस्तान का शासन है.

भारत ने पाकिस्तान के इस कदम का कड़ा विरोध किया है, जिसके तहत उसने जी-बी को अपना पांचवां सूबा बनाकर, वहां अगले महीने सूबाई चुनाव कराने का फैसला किया है. भारत का कहना है कि पूरी तरह से वैध और अपरिवर्तनीय विलय के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जिसमें गिलगित-बल्तिस्तान शामिल है, भारत का अभिन्न अंग हैं और पाकिस्तान को उसके ‘अवैध और जबरन कब्ज़े वाले इलाके में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है’.

इसी महीने पाकिस्तान मीडिया की एक खबर के मुताबिक सरकार और वहां के विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर सहमति बन गई है.

खबर में कहा गया कि गिलगित-बल्तिस्तान के लोग बहुत समय से मांग कर रहे थे, उन्हें विशेष दर्जा दिया जाए और उनके इलाके में जिसे सीधे तौर पर सरकार चलाती है, संवैधानिक अनिश्चितता को खत्म किया जाए.

पाकिस्तान के फैसले के फौरन बाद, शीर्ष हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के पीओके नुमाइंदे, सैयद अब्दुल्लाह गिलानी ने कहा कि इस तरह के कदम के ‘विनाशकारी नतीजे’ हो सकते हैं.

गिलानी ने एक बयान में कहा, ‘पाकिस्तान के सामने न सिर्फ अपनी पोज़ीशन के कमज़ोर हो जाने और नैतिक आधार खो देने का खतरा है, बल्कि इससे कश्मीरी लोगों का उत्साह भी खत्म हो सकता है और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए चल रहा उनका संघर्ष, कमज़ोर पड़ सकता है’.

रविवार को अपने भाषण में प्रधानमंत्री खान ने कहा कि आगामी स्थानीय चुनावों के मद्देनज़र, वो इस नए सूबे के लिए विकास के पैकेज की घोषणा या उस पर बात नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि जी-बी को पाकिस्तान के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं क्योंकि खराब संपर्क की वजह से इलाके का विकास नहीं हुआ था.


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इससे फोकस शिफ्ट होगा, 370 हटाना जायज़ हो जाएगा

पाकिस्तान की एनएसडी के आंकलन में ये भी कहा गया है कि इस फैसले से लोगों का ध्यान ‘5 अगस्त की भारतीय कार्रवाई’ से हटकर पीओके और जी-बी पर हो जाएगा.

आंकलन में आगे कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के कथानक की, अंतर्राष्ट्रीय छानबीन हो सकती है और सवाल उठाए जा सकते हैं कि भारत की कार्रवाई, बाद की पाकिस्तानी कार्रवाई से किस तरह अलग है.

अपने आंकलन में एनएसडी ने इस कथानक को बढ़ावा देने की भी सिफारिश की है कि पाकिस्तान की कार्रवाई ‘जी-बी की लोकप्रिय मांग’ पर की गई और उसके अलावा ‘जम्मू-कश्मीर के कथानक में भी रद्दो-बदल करके, उसे मानवाधिकार उल्लंघन और अंतर्राष्ट्रीय कानून पर केंद्रित किया गया है’.

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र के मुताबिक, तहरीके कश्मीर ने भी अपने एक आंतरिक संचार में कहा था कि जी-बी की नई हैसियत यूएन और अंतर्राष्ट्रीय कानून की निगाह में कश्मीर पर पाकिस्तान की स्थिति पर असर डाल सकती है और उसे कमज़ोर कर सकती है.

संस्था ने कहा कि मौजूदा कार्रवाई, अनुच्छेद-370 को खत्म करने की भारत की कार्रवाई की हिमायत करती हुई नज़र आती है और इससे आखिर में होने वाले जनमत-संग्रह में इलाके में मुसलमान वोटों की संख्या कम हो जाएगी.


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‘अच्छे से सोचा-समझा फैसला नहीं’

जिन भारतीय विश्लेषकों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने कहा कि इस फैसले को लेकर पाकिस्तानी प्रतिष्ठान में, कुछ कनफ्यूज़न सा दिखाई पड़ता है.

लेखक और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य, तिलक देवाशेर ने कहा कि एनएसडी के इस आंकलन और उसके बाद पाकिस्तान की एनएसडी के विशेष सलाहकार मोईद यूसुफ के बयान के बावजूद, कि जी-बी पर कोई फैसला नहीं लिया गया है, इमरान खान का जी-बी को प्रांतीय दर्जा देने का ऐलान दिखाता है कि वो स्पष्ट नहीं हैं कि वो क्या चाहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘एनएसडी के विशेष सलाहकार ने पहले कहा कि जी-बी पर कोई फैसला नहीं लिया गया है और अब पाकिस्तान के पीएम ने यू-टर्न लेते हुए इलाके के लिए प्रांतीय हैसियत का ऐलान कर दिया है. इससे ज़ाहिर होता है कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के अंदर कनफ्यूज़न बना हुआ है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो स्पष्ट ही नहीं हैं कि वो क्या चाहते हैं और ये बहुत अच्छे से सोचा-समझा फैसला नहीं है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘अगर जी-बी को एक सूबे के तौर पर, पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया जाता है तो फिर तथाकथित ‘आज़ाद कश्मीर’ इस फैसले का विरोध ज़रूर करेगा’.

देवाशेर ने कहा, ‘इसके अलावा, इसे आधार बनाते हुए भारत को 5 अगस्त की अपनी कार्रवाई को उचित ठहराने की ज़रूरत नहीं है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘ये भी है कि भारत को जी-बी और पीओजीके के बीच, दूरी पैदा करने की ज़रूरत नहीं है, पाकिस्तान ये काम खुद कर रहा है’.

अक्टूबर के शुरू में पाक अधिकृत कश्मीर के सदर, सरदार मसूद खान ने भी इसका विरोध किया था और जी-बी की हैसियत में किसी भी तब्दीली की संभावना से इनकार किया था, जो उनके मुताबिक कश्मीर की आज़ादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को कमज़ोर कर सकती है.

पीओके सरकार के 73वें स्थापना दिवस पर पाकिस्तान में हुए एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए खान ने ये भी कहा था कि मौजूदा हालात में भारत के साथ कोई बातचीत नहीं की जाएगी और अगर भारत बातचीत चाहता है तो उसे 5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर के बारे में की गईं सभी कार्रवाइयां वापस लेनी होंगी.

इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए काउंटर-टेररिज़म एक्सपर्ट अजय साहनी ने कहा कि पाकिस्तान के फैसले का कोई ‘खास असर नहीं होगा’ और ये ‘भारत के लिए कोई मायने नहीं रखता’.

उन्होंने कहा, ‘इन चीज़ों के फैसले वास्तविक तथ्यों और ताकत के समीकरण के आधार पर होते हैं. सच्चाई ये है कि पीओके और जी-बी, 1948 से पाकिस्तानी नियंत्रण में रहे हैं, ठीक उसी तरह, जैसे जम्मू-कश्मीर भारत के नियंत्रण में रहा है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अंदरूनी तौर पर आप जो भी बदलाव करते हैं, उसका दोनों देशों के बीच ताकत के समीकरण पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘ज़ाहिर है कि ‘अंतर्राष्ट्रीय कम्यूनिटी’ से कुछ बयान ज़रूर आएंगे, कुछ नैतिकता दिखाएंगे लेकिन बस और कुछ नहीं होगा’. उन्होंने ये भी कहा, ‘ठीक वैसा ही जैसा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाने के बाद हुआ. कुछ बयान सामने आए लेकिन भारत की हैसियत, ताकत और सुरक्षा पर कोई खास असर नहीं पड़ा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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