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Friday, 22 November, 2024
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खाद्य वस्तुओं में ट्रांस फैट्स की मात्रा सीमित करने के लिए इस महीने तक नियम लाएगी मोदी सरकार

एफएसएसएआई खाद्य वस्तुओं और तेलों में ट्रांस फैट की मात्रा को मौजूदा 5 प्रतिशत से घटाकर 2021 तक 3 प्रतिशत और 2022 तक 2 प्रतिशत तक सीमित करेगी.

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नई दिल्ली: दिल की बीमारियों को कम करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार इस महीने खाद्य वस्तुओं में ट्रांस फैटी एसिड्स (टीएफए) या ट्रांस फैट्स की मात्रा को सीमित करने के लिए कुछ नियम लाने जा रही है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

देश की शीर्ष खाद्य नियामक भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) अनिवार्य रूप से खाद्य पदार्थों और तेलों में ट्रांस फैट की मात्रा को मौजूदा 5 प्रतिशत से घटाकर 2021 तक 3 प्रतिशत और 2022 तक 2 प्रतिशत तक सीमित करेगी.

एफएसएसएआई के सीईओ अरुण सिंघल ने दिप्रिंट से कहा, ‘इंडस्ट्री को अपने काम में थोड़ी और नवीनता और सुधार लाते हुए कोई रास्ता निकालना होगा कि खाद्य पदार्थों से ट्रांस फैट्स को कैसे कम किया जाए’.

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) के अनुसार, ट्रांस फैट्स खराब कॉलिस्ट्रॉल (एलडीएल) के स्तर को बढ़ा देते हैं. ये अच्छे कॉलिस्ट्रॉल (एचडीएल) के लेवल को भी कम कर देते हैं. ज़्यादा एलडीएल और कम एचडीएल की वजह से खून की नसों में कॉलिस्ट्रॉल जमा हो है जिससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

लांसेट की एक स्टडी के अनुसार भारत में हर चार में से एक मौत कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ेज़ (सीवीडी) यानी दिल की बीमारियों से होती है.

सिंघल ने आगे कहा, ‘हम नियम तय करने के अंतिम दौर में हैं, जो इस महीने जारी किए जाने की संभावना है. हमारा लक्ष्य 2022 तक खाद्य पदार्थों और तेलों में ट्रांस फैट्स की मात्रा को घटाकर 2 प्रतिशत पर ले आना है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लक्ष्य से एक साल पहले है’.

पिछले साल सितंबर में एफएसएसएआई ने, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (प्रॉहिबिशन एंड रेस्ट्रिक्शन) अधिनियम में बदलाव के ज़रिए खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट्स की मात्रा को सीमित करने के लिए नियमों का एक मसौदा तैयार किया था. अभी तक ट्रांस फैट को सीमित रखना स्वैच्छिक रहा है लेकिन नए नियमों के तहत खाद्य व्यवसाय में लगे लोगों के लिए अब ये ज़रूरत अनिवार्य कर दी जाएगी.


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ट्रांस फैट्स की दो किस्में

एएचए के मुताबिक खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले ट्रांस फैट, मोटे तौर पर दो तरह के होते हैं- प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले और कृत्रिम.

मसलन दूध और मीट उत्पादों में कुदरती ट्रांस फैट्स होते हैं. कृत्रिम ट्रांस फैट्स (या ट्रांस फैटी एसिड्स) खाद्य पदार्थों के अंदर एक औद्योगिक प्रक्रिया के दौरान पैदा होते हैं जिसमें तरल वनस्पति तेलों को ज़्यादा ठोस बनाने के लिए उनमें हाइड्रोजन मिलाई जाती है.

कृत्रिम ट्रांस फैट्स बहुत सी खाद्य वस्तुओं में पाए जा सकते हैं जिनमें डोनट्स, केक्स, बिस्किट्स, पिज्जा और कुकीज़ शामिल हैं. आमतौर पर, उनकी मौजूदगी खाद्य वस्तुओं के लेवल पर लिखी होती है जिसे ट्रांस फैट्स पर सर्विंग या ‘आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों’ के रूप में व्यक्त किया जाता है.

सिंघल ने कहा, ‘प्राकृतिक रूप से पैदा हुए ट्रांस फैट्स को निकालना तो नामुमकिन है लेकिन लक्ष्य ये है कि कृत्रिम रूप से पैदा हुए ट्रांस फैट्स को सीमित कर दिया जाए या हटा दिया जाए’.


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‘पूरी सहायता और तैयारी के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा’

एफएसएसएआई- जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की एक विंग है- तीन मुख्य एजेंडों पर काम कर रही है, जिनमें खाद्य वस्तुओं की फोर्टिफिकेशन, हाई फैट, शुगर व सॉल्ट (एचएफएसएस) का मुद्दा और ट्रांस फैट्स शामिल हैं.

सिंघल ने कहा, ‘खाद्य पदार्थों से ट्रांस फैट्स को कम करना, कोई असंभव काम नहीं है. हमने अंदरूनी तौर पर अनुमान लगाया है कि कुछ ऐसी चीज़ों में भी, जिन्हें अस्वास्थ्यकर माना जाता है, जैसे कि जलेबी और समोसा, कुछ बनाने वाले ट्रांस फैट स्तर को दो से चार प्रतिशत के बीच में रखने में कामयाब रहे हैं. कुछ प्रतिष्ठित चॉकलेट ब्रांड्स में बिल्कुल ट्रांस फैट नहीं होता’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसका मतलब है कि बनाने की प्रक्रिया में कुछ सुधार और नवीनता के साथ, इनके स्तरों में कमी लाई जा सकती है. इसके अलावा हम उद्योगों की पूरी सहायता कर रहे हैं और सिलसिलेवार वेबिनार्स के ज़रिए भी उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं’.

सिंघल ने ये भी कहा कि सरकार उद्योगों को इसकी तैयारी के लिए पर्याप्त समय देगी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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