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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतक्या सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिये कानून में मौत की सजा का प्रावधान करने का समय आ गया है

क्या सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिये कानून में मौत की सजा का प्रावधान करने का समय आ गया है

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2019 में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य पद्रेश और हरियाणा में सबसे ज्यादा सामूहिक बलात्कार के अपराध हुये.

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निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या के सनसनीखेज मामले से उपजे जनाक्रोष के बाद संसद ने भारतीय दंड संहिता में बलात्कार से संबंधित कानूनी प्रावधानों में व्यापक संशोधन कर इनमें अधिक कठोर सजा के प्रावधान किये. लेकिन इसके बावजूद महिलाओं के प्रति होने वाले इन जघन्य अपराधों में कमीं नहीं आई.

देश में अप्रैल 2013 से लागू नये प्रावधानों के तहत सामूहिक बलात्कार जैसे अमानुषिक और घृणित अपराध के लिये न्यूनतम 20 साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान किया गया. सामूहिक बलात्कार और हत्या के अपराध में दोषियों के लिये मौत की सजा तक का प्रावधान है.

लेकिन हाल के वर्षो में सामूहिक बलात्कार की बढ़ते अपराधों को देखते हुये यह महसूस किया जा रहा है कि कानून में इसके लिये मौत की सजा का प्रावधान किया जाना उचित होगा. इसकी एक वजह यह है कि सामूहिक बलात्कार की शिकार महिला की अगर जान बच गयी तो उसे जीवन भर शारीरिक वेदना के साथ ही मानसिक अवसाद से भी रूबरू होना पड़ता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2019 में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य पद्रेश और हरियाणा में सबसे ज्यादा सामूहिक बलात्कार के अपराध हुए. वर्ष 2020 में भी लगभग यही सिलसिला है. चालू वर्ष के दौरान सितंबर के अंत तक देश में सामूहिक बलात्कार की 158 घटनायें हुईं हैं. इस बार अभी तक उत्तर प्रदेश सबसे आगे है जबकि राजस्थान दूसरे नंबर पर है. सामूहिक बलात्काल के अपराध के मामले में झारखंड, तमिलनाडु, मप्र, महाराष्ट्र, हरियाणा, और तमिलनाडु भी बहुत पीछे नहीं हैं.

सामूहिक बलात्कार की घटनाओं और इस तरह के अपराध करने वाले आरोपियों की विकृत मानसिकता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने तीन साल की बच्ची से लेकर 75 साल की वृद्धा तक को अपनी हवश का शिकार बनाया. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि सामूहिक बलात्कार करने वालों में किशोर लड़के भी हैं और इनमें से झारखंड के एक मामले में तो आरोपी लड़के की उम्र सिर्फ 11 साल ही थी.

देश की राजधानी में दिसंबर, 2012 में हुये निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड से करीब दो महीने पहले अक्टूबर, 2012 में न्यायालय ने बेंगलुरू में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया की कानून की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था.

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले महीने इस लोमहर्षक अपराध को निर्भया सामूहिक बलात्कार को हत्या से भी ज्यादा घृणित बताते हुये सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिये उम्र कैद और जुर्माने के मौजूदा प्रावधान के अलावा मौत की सजा की भी सिफारिश की है. उच्च न्यायालय ने इस अपराध के सभी सात दोषियों की उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुए कानून में संशोधन कर इसमें मौत की सजा का प्रावधान करने की सिफारिश की है.

न्यायालय ने यह सिफारिश करते समय इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बावजूद पीड़ित लड़की द्वारा अपने ‘धर्म’ की रक्षा के लिये आरोपियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने के उसके साहस की सराहना की.


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न्यायालय ने ‘सामूहिक बलात्कार’ की बढ़ती समस्या पर अंकुश पाने के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 10 में ‘महिला’ की परिभाषा को इंगित किया है और कहा कि इसे ध्यान में रखते हुये भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी- सामूहिक बलात्कार के प्रावधानों में संशोधन कर इसमें उम्र कैद और जुर्माने के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी और धारा 376 डीबी के प्रावधानों के समान मौत की सजा का भी प्रावधान करने की सिफारिश की जाती है.

न्यायालय ने अपने फैसले मे कहा कि दोषी व्यक्तियो ने पीड़िता के साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार किया. कुछ दोषियों ने तो उसे एक से ज्यादा बार अपनी हवश का शिकार बनाया जो क्रूर जानवरों से भी कहीं ज्यादा बर्बरतापूर्ण था.

उच्च न्यायालय ने चूंकि अपने फैसले में धारा 376डी के साथ ही धारा 376एबी और धारा 376डीबी का उल्लेख किया है. इसलिए इन धाराओं के बारे में भी जानना जरूरी है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी के अंतर्गत अगर किसी महिला से एक या अधिक व्यक्ति सामूहिक रूप से समान आशय से बलात्कार करते हैं तो ऐसे अपराध के लिये कम से कम 20 साल या आजीवन कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है. जुर्माना ऐसा, जो पीड़ित की चिकित्सा खर्चो को पूरा करने और उसके पुनर्वास के लिए न्यायोचित होगा.
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी 12 साल से कम आयु की महिला से बलात्कार के अपराध में सजा से संबंधित है. इस धारा के तहत दोषी व्यक्ति को कम से कम 20 साल, जिसे उम्र कैद में बढ़ाया जा सकता है, जिसका मतलब जीवन पर्यन्त जेल और जुर्माना या मौत की सजा दी जा सकती है.

इसी प्रकार, भारतीय दंड संहिता की धारा 376 डीबी का संबंध 12 साल से कम आयु की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के अपराध में सजा से है. इस अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों को जीवन पर्यन्त कैद या मौत की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. जुर्माने की राशि दोषियों को पीड़ित महिला को देनी होगी.

बेंगलुरू विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत और एनएलएसआईयू के बीच स्थित सड़क पर 13 अक्टूबर, 2012 को घातक हथियारों से लैस व्यक्तियों ने इस लड़की और उसके मित्र की कार घेर ली थी. वे इस युवती को बलपूर्वक कार से बाहर खींच कर पास के जंगली इलाके में ले गये जहां उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया.


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निचली अदालत ने इस मामले में सभी आरोपियों को दोषी ठहराते हुये उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. देश के विभिन्न राज्यों में किसी न किसी बच्ची या युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सुर्खियों में आती है लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ शांत हो जाता है. ऐसी स्थिति में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि इस समस्या से कैसे निबटा जाये.

इस संबंध में लगातार लैंगिंक समानता पर जोर दिया जा रहा है, साथ ही लैंगिक समानता को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने का भी सुझाव दिया जा रहा है. उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में लैंगिक समानता को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने और लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने के सुझाव दिये हैं.

उप्र के हाथरस और राजस्थान के अलवर जिले की सामूहिक बलात्कार की घटनाओं के प्रति पुलिस-प्रशासन का रवैया आलोचनाओं का केन्द्र रहा है, बार-बार यह सुझाव दिया जा रहा है कि पुलिसकर्मियों और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को भी महिलाओं के साथ यौन हिंसा के अपराधों के बारे अधिक संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.

न्यायिक निर्देशों के बावजूद महिलाओं के प्रति यौन हिंसा के अपराध के मामले में पुलिस के रवैये मे अपेक्षित बदलाव नहीं आया है, इसलिए जरूरी है कि पुलिस प्रशासन की कार्यशैली में व्यापक सुधार किये जायें.

सामूहिक बलात्कार जैसे घृणित अपराध के मामले में पुलिस का रवैया अक्सर बहुत ही ढुलमुल रहता है और यही वजह है कि बार बार देश की सर्वोच्च अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ रहा है. यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि न्यायपालिका की चिंता के साथ केन्द्र और राज्य सरकारें भी सुर मिलाती हैं लेकिन इसके बावजूद ऐसे अपराधों को लेकर अक्सर लीपा पोती के प्रयास होते रहते हैं.

ऐसे अपराधों पर अंकुश अपाने के लिये अगर सरकारें वास्तव में गंभीर हैं तो उन्हें जहां सामूहिक बलात्कार के अपराध की सजा और कठोर करने की दिशा में कदम उठाने होंगे वहीं उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं के साथ यौन हिंसा के अपराध से संबंधित मामलों की जांच और मुकदमों की सुनवाई कानून में निर्धारित समय सीमा के भीतर ही पूरी की जाये.

अगर राज्य सरकारें ऐसा करने में कामयाब रहीं तो यह माना जायेगा कि राज्यों में सत्तारूढ़ दल वास्तव में महिलाओं के हितैशी हैं वरना यही माना जायेगा कि इनके पास गाल बजाने के अलावा कोई काम नहीं है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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