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Saturday, 21 December, 2024
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भारत में स्पेशलिस्टों की भरमार है, जबकि कहीं अधिक ज़रूरत फैमिली डॉक्टरों की है

भारत के हर कस्बे और शहर में एक मल्टी-स्पेशियलिटी क्लिनिक या अस्पताल है. लेकिन हमारे परिवार के चिकित्सक कहां हैं जो हमें बता सकते हैं कि ’डॉक्टर के पास जाएं’?

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यदि आप किसी मध्यम या बड़े शहर में रहते हों तो पूरी संभावना है कि आपके घर के पास ही कोई प्राइवेट मेडिकल क्लिनिक या अस्पताल मौजूद हो. इस बात की भी संभावना है कि वो खुद को ‘मल्टी-स्पेशियलिटी क्लिनिक’ के रूप में प्रचारित करता हो और उसके रिसेप्शन एरिया में आपके परामर्श के लिए विशेषज्ञों की एक लंबी लिस्ट टंगी हो. बेंगलुरु में मेरे इलाके के सबसे छोटे क्लिनिक में भी लगभग दर्जन भर विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं उपलब्ध हैं. मेरे घर के पांच किलोमीटर के दायरे में न्यूरोसर्जरी से लेकर मनोचिकित्सा, और इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी से मैक्सिलोफेशियल सर्जरी तक हरसंभव चिकित्सा के स्पेशलिस्ट उपलब्ध हैं.

एकमात्र समस्या ये है, कि मान लीजिए किसी को भयानक सिरदर्द हो जाए तो उसे ये नहीं पता होता कि वह कहां जाए और इनमें से किस स्पेशलिस्ट से परामर्श करे. अधिक संभावना इस बात की है कि ऐसा मरीज अपने इलाके में मौजूद विशेषज्ञ डॉक्टरों में से किसी के यहां जाए, उनके कहे अनुसार जांच और स्कैन कराए, और ये सब कराने के बाद उसे बताया जाए कि दरअसल उसकी समस्या किसी अन्य स्पेशलिस्ट की विशेषज्ञता के दायरे में आती है. यह न सिर्फ अक्षमता का उदाहरण और मरीज के लिए एक तनाव भरा अनुभव है, बल्कि इससे व्यवस्था में भरोसा कम होता है, स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार प्रभावित होता है और अंतत: इसका असर समग्र स्वास्थ्य पर दिखता है.


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कहां गए फैमिली डॉक्टर

हमारे लिए स्पेशलिस्टों की तो भरमार है, लेकिन पर्याप्त संख्या में ‘डॉक्टर’ उपलब्ध नहीं हैं. सामान्य चिकित्सकों या फैमिली डॉक्टरों की कमी भारत की चिकित्सा व्यवस्था की सबसे कमज़ोर कड़ी है. उनकी कमी शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी है, हालांकि इसके अलग-अलग कारण हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में विशेषज्ञता का रुझान अभी जारी रहने वाला है. पोस्टग्रेजुएट कोर्सों की सीटें बढ़ाए जाने के कारण, इस साल पढ़ाई पूरी करने वाले 54,000 नए डॉक्टरों में से कम-से-कम 44,000 स्पेशलिस्ट बनने की राह पर चलेंगे. इससे भी बुरी बात ये है, जैसा कि एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. रमन कुमार बताते हैं, कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के 890 पृष्ठों के भारी-भरकम नए एमबीबीएस पाठ्यक्रम में ‘एक बार भी ‘जनरल प्रैक्टिस’ या ‘फैमिली मेडिसिन’ या ‘फैमिली फिजिशियन’ का नाम नहीं लिया गया है’, और इसके कारण ‘छात्रों के पास स्पेशलिस्ट बनने और अस्पतालों में तृतीयक स्तर  (टरशियरी लेवल) की देखभाल के रास्ते पर चलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया है’.

जैसा कि डॉ. कुमार बताते हैं, आज एमबीबीएस के किसी छात्र को लगभग संपूर्ण प्रशिक्षण तृतीयक अस्पतालों ((टरशियरी अस्पतालों) में ही मिलता है, और इस कारण वे क्लिनिकों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के बहुमूल्य अनुभवों से वंचित रह जाते हैं. दूसरे शब्दों में, नीट परीक्षा के ज़रिए इस साल मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले करीब 80,000 छात्रों में से बहुत कम को एक विषय के रूप में फैमिली मेडिसिन पढ़ने का मौका मिलेगा, और उनमें से बहुत कम को व्यावहारिक प्रशिक्षण के तौर पर ‘जनरल प्रैक्टिस’ का अनुभव प्राप्त हो सकेगा. संभावना यही है कि राजनीतिक आर्थिक कारकों के चलते सरकारें पोस्टग्रेजुएट स्तर पर सीटों की संख्या बढ़ाती रहेंगी, और इस प्रकार 80,000 नए डॉक्टरों में से अधिकांश अब से कुछ वर्षों में स्पेशलिस्ट चिकित्सक बन जाएंगे.

बेशक भारत को स्पेशलिस्टों की ज़रूरत है. लेकिन देश को सामान्य चिकित्सकों की कहीं अधिक ज़रूरत है. चिकित्सा प्रणाली के स्पेशलिस्टों के पक्ष में असामान्य झुकाव के कई कारण हैं: शहरी क्षेत्र में चिकित्सकों की अपेक्षाकृत बहुतायत के कारण प्रतिस्पर्धी दबाव, अधिक आय की संभावना, समकक्षों के बीच ऊंचे स्टेटस, समाज में अधिक प्रतिष्ठा, मरीजों के बीच अधिक मान्यता आदि से स्पेशलाइजेशन को हवा मिलती है. जैसा कि पाठ्यक्रम में परिवर्तनों और पोस्टग्रेजुएट सीटों में बढ़ोत्तरी से जाहिर है, मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में चिकित्सा स्नातकों की प्राथमिकताओं को समग्र स्वास्थ्य प्रणाली की ज़रूरतों पर तरजीह दी जाती है. साफ है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय लक्ष्यों और एमसीआई की मेडिकल शिक्षा प्राथमिकताओं के बीच सामंजस्य बढ़ना चाहिए. एक सरल समाधान है एमबीबीएस सीटों की संख्या बढ़ाना – वैसे भी भारत को कहीं अधिक संख्या में डॉक्टरों की ज़रूरत है – और उसके साथ ही पोस्टग्रेजुएट स्तर पर फैमिली मेडिसिन की पढ़ाई के लिए भी सीटों में बढ़ोत्तरी करना.


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नर्सों की कुशलता बढ़ाना

उपरोक्त नीतिगत बदलाव ज़रूरी हैं, लेकिन यदि इन्हें कल से ही लागू कर दिया जाए — जबकि हम उस स्थिति से बहुत दूर हैं — तो भी ज़मीनी स्तर पर बदलाव दिखने में लगभग एक दशक का वक्त लगेगा. इस दरम्यान हम क्या कर सकते हैं? हमें नर्सों और प्रशिक्षित आशा कार्यकर्ताओं को उच्च कौशल और प्रौद्योगिकी से लैस कर ‘चार्टर्ड नर्सों’ के रूप में अपग्रेड करना चाहिए, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वे नागरिकों का प्राथमिक संपर्क बन सकें. बुनियादी चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के साथ ही उनकी प्राथमिक भूमिका चिंतित मरीजों का उचित स्वास्थ्य केंद्रों के बारे में मार्गदर्शन करने वाले स्वास्थ्य सलाहकारों की होगी. वास्तव में, किसी को ‘डॉक्टर के पास जाने’ की सलाह देना स्वास्थ्य सेवा संबंधी सबसे प्रभावी दखल होती है.

स्मार्टफोन, इंटरनेट कनेक्शन और सस्ते नैदानिक उपकरण सुलभ होने के कारण चार्टर्ड नर्सों के लिए एक बुनियादी टेक्नोलॉजी किट के सहारे मरीज की ‘जांच’ करना, संबंधित सूचनाओं की पूर्ण व्याख्या के लिए विश्लेषण केंद्र तक भेजना, और आगे के कदम के बारे में मरीज का मार्गदर्शन करना संभव होगा. करीब 20 लाख चार्टर्ड नर्सों की मौजूदगी के कारण हर 100 परिवारों के लिए एक चार्टर्ड नर्स निर्दिष्ट किया जा सकेगा. भारत में करीब 9 लाख आशा कार्यकर्ता और 30.7 लाख रजिस्टर्ड नर्स हैं, जिन्हें प्रशिक्षण और उच्च कौशल प्रदान कर और तकनीकी समर्थन के सहारे चार्टर्ड नर्स बनाया जा सकता है.

बीते जमाने की फिल्मों में, किसी के बीमार पड़ने पर डॉक्टर घर आता था. मेरे खुद के बचपन में, जो लोग सौभाग्यशाली थे उनके लिए फैमिली डॉक्टरों का घर पर आना एक आम बात थी. दुनिया अब आगे बढ़ चुकी है और शायद घरों में जाकर बीमारों को देखने वाले डॉक्टरों पर केंद्रित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा स्थापित करना व्यावहारिक नहीं हो, लेकिन 20 लाख चार्टर्ड नर्सों की फौज खड़ी करने का काम कुछ ही वर्षों में किया जा सकता है. यदि जांच-पड़ताल और विश्लेषण के अपने सस्ते और विश्वसनीय उपकरणों के सहारे कोई नर्स ये बता सके कि सिरदर्द सामान्य किस्म का है जिस पर चिंतित होने की ज़रूरत नहीं, या कि मामला गंभीर है और मरीज को तुरंत उचित अस्पताल में ले जाना चाहिए, तो हम हर तरफ बहुतायत में मौजूद स्पेशलिस्टों से लाभांवित हो सकेंगे.

(लेखक लोकनीति पर अनुसंधान और शिक्षा के स्वतंत्र केंद्र तक्षशिला संस्थान के निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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