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Friday, 1 November, 2024
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हाथरस पहला मामला नहीं जब केरल के PFI पर ‘आतंक फैलाने’, ‘देश को तोड़ने’ का आरोप लगाया गया

एजेंसियों ने आरोप लगाया है कि केरल स्थित मुस्लिम संगठन पीएफआई ने युवाओं को कट्टर आतंकवाद की ओर धकेलने और जबरन धर्मांतरण के अलावा दिल्ली और मंगलुरु में सीएए विरोधी प्रदर्शन और हिंसा के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराई.

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नई दिल्ली: हाथरस में 14 सितंबर को एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हमले की घटना के बाद केरल स्थित मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर एक बार फिर उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की ‘साजिश’ रचने का आरोप लगा है. घटना के दो हफ्ते बाद नई दिल्ली में युवती की मौत हो गई थी जिसे लेकर महिला सुरक्षा, खासकर दलित महिलाओं को लेकर जनाक्रोश भड़का और इस घटना ने मीडिया और राजनीतिक स्तर पर भी काफी ध्यान खींचा.

यूपी पुलिस ने हाथरस की घटना के सिलसिले में अब तक 19 एफआईआर दर्ज किए हैं, जिसमें राज्य में शांति भंग की कोशिश, देशद्रोह, साजिश और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए हैं.

यूपी पुलिस को यह जानकारी मिलने के बाद कि ‘कुछ संदिग्ध लोग दिल्ली से हाथरस की ओर जा रहे हैं’ केरल की एक लोकप्रिय वेबसाइट के लिए काम करने वाले पत्रकार और तीन अन्य लोगों को पीएफआई से कथित संबंध को लेकर सोमवार को मथुरा में गिरफ्तार कर लिया गया था.

पुलिस के अनुसार उनके मोबाइल फोन, एक लैपटॉप और ‘राज्य में शांति एवं कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकने वाला’ कुछ साहित्य जब्त किया गया है.

यह पहली बार नहीं है जब पीएफआई पर ‘सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सरकारी मशीनरी को बाधित करने’ में शामिल होने का आरोप लगा है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पिछले साल नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शनों में कथित तौर पर शामिल होने को लेकर पीएफआई पर पाबंदी लगाने की मांग से लेकर दिल्ली के शाहीन बाग में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन के वित्त पोषण में कथित भूमिका और यहां तक कि फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों जिसमें 53 लोग मारे गए थे, तक में संगठन का नाम कई बार संवेदनशील मामलों के ‘साजिशकर्ता’ और यहां तक कि ‘फाइनेंसर’ के तौर पर सामने आया है.

दिप्रिंट ने कुछ ऐसे हाई-प्रोफाइल मामलों पर नजर डाली जिसमें पीएफआई के संलिप्त होने का आरोप लगा है.


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पीएफआई क्या है?

पीएफआई केरल स्थित एक मुस्लिम राजनीतिक संगठन है, जिसके पूर्ववर्ती नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) का गठन 1993 में मुसलमानों के उत्पीड़न के खिलाफ कथित रूप से ‘जिहाद’ के लिए किया गया था.

नेशनल वुमेंस फ्रंट, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, कर्नाटक फोरम फॉर डेमोक्रेसी, मनीता नीति पासराई, गोवा में सिटिजन्स फोरम, दि एसोसिएशन ऑफ जस्टिस इन आंध्र प्रदेश जैसे कई संगठन पीएफआई के तहत ही आते हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि हथियार प्रशिक्षण की कक्षाएं चलाने के साथ भर्ती के लिए अपेक्षित कुर्बानी का महिमामंडन भी करते हैं.

उन्हें कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय द्वारा झेली गई यातना के वीडियो दिखाए जाते हैं और संगठन और इस्लाम के नाम पर निष्ठा की शपथ लेने को कहा जाता है.

2009 में एनडीएफ की जगह लेने वाली एसडीपीआई एक राजनीतिक पार्टी है, जिसने तमिलनाडु (2016), कर्नाटक (2013 और 2018) और केरल (2016) में विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन कोई सीट नहीं जीत पाई. एनआईए ने इसके खिलाफ कई बार छापे मारे और उस पर 2013 में नाराथ में हथियार प्रशिक्षण शिविर चलाने का आरोप लगाया, जहां से 21 पीएफआई सदस्य गिरफ्तार किए गए थे.

केरल में पीएफआई के बारे में कहा जाता है कि उसके तीन लाख समर्थक और 25,000 सदस्य हैं. अक्टूबर 2018 में बेंगलुरु में आरएसएस नेता रुद्रेश सहित कम से कम 30 हाई-प्रोफाइल हत्याओं में शामिल होने का आरोप लगने के बावजूद अब तक किसी भी सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध नहीं लगाया है.

‘सीएए विरोधी प्रदर्शनों के लिए धन मुहैया कराया’

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस साल जनवरी में गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें कहा गया कि पीएफआई ने ‘सीएए बिल के खिलाफ प्रदर्शनों और घेराव पर आने वाले खर्च के लिए 6 जनवरी 2020 तक’ वित्तीय मदद मुहैया कराई थी.

ईडी के सूत्रों के अनुसार एजेंसी को यह जानकारी धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत 2018 में दर्ज एक मामले में पीएफआई की भूमिका की जांच के दौरान ‘अचानक’ ही मिली थी. ईडी ने दावा किया था कि यह बैंक खाते के ब्यौरे से सामने आया जिसमें पीएफआई से संबंधित खातों में 120.50 करोड़ रुपये जमा हुए थे, और इन खातों से जमा और निकासी की तारीखों और देश के विभिन्न हिस्सों में सीएएस विरोधी प्रदर्शनों की तिथियों के बीच सीधा संबंध है.

ईडी की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि यूपी के बहराइच, बिजनौर, हापुड़, शामली, डासना जैसे जिलों के बैंक खातों में पीएफआई के सिंडिकेट बैंक, नेहरू प्लेस, नई दिल्ली स्थित खाते के माध्यम से बड़े पैमाने पर नकद जमा किया गया था.

एजेंसी ने बाकायदा एक ग्राफ तैयार किया है जिसमें 4 दिसंबर 2019 से 6 जनवरी 2020 के बीच पीएफआई और पीएफआई से ही जुड़े संगठन रिहैब इंडिया फाउंडेशन के खातों से धन निकासी की तारीखों और प्रदर्शनों और उनकी तीव्रता—हिंसक या शांतिपूर्ण—के बीच संबंध दिखाया गया है.

पीएफआई महासचिव मोहम्मद अली जिन्ना ने ईडी के दावों को ‘पूरी तरह से आधारहीन’ करार दिया है.

उन्होंने कहा, ‘जो लोग ऐसे आरोप लगा रहे हैं, उन्हें इन दावों को साबित भी करना चाहिए.’

यूपी प्रशासन ने जब सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप को लेकर पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग की, तो संगठन ने फिर इन सभी आरोपों से खारिज किया. जिन्ना ने इन्हें ‘बेतुका’ और उत्तर प्रदेश पुलिस की अपना ‘चेहरा बचाने की कोशिश’ बताया.


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‘उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के लिए धन दिया’

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में अपनी चार्जशीट में पीएफआई पर आरोप लगाया है कि उसने इस साल फरवरी में दंगाइयों को रसद और वित्तीय सहायता मुहैया कराई.

चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि जेएनयू स्कॉलर उमर खालिद धन मुहैया कराने वाले पीएफआई के सदस्यों के लगातार संपर्क में थे.

इस साल मार्च में पीएफआई के दिल्ली के अध्यक्ष परवेज अहमद और सचिव मोहम्मद इलियास को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

पीएफआई अध्यक्ष ओ.एम.ए सलाम ने हालांकि इसे ‘निशाना बनाया’ जाना करार दिया था.

सलाम ने कहा, ‘सीएए विरोधी प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले छात्र कार्यकर्ताओं का कड़े कानूनों के तहत निशाना बनाना सांप्रदायिक और राजनीतिक प्रतिशोध के अलावा कुछ और नहीं है.’

पुलिस के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा, जो दंगों के समय ही हुई थी, के दौरान भीड़ जुटाने के लिए देशभर में भड़काऊ भाषण दिए गए.

इसके अलावा, ईडी ने आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन के साथ-साथ पीएफआई पर भी मनी लांड्रिंग और कथित रूप से सांप्रदायिक दंगों के लिए धन मुहैया कराने का मामला दर्ज किया है. अधिकारियों का आरोप है कि रसद की व्यवस्था करने के लिए हुसैन को पीएफआई से ही धन मिला था.

यह मामला सीएए विरोधी प्रदर्शनों के लिए कथित तौर पर धन मुहैया कराने की जांच के लिए पीएफआई के खिलाफ पहले से ही दर्ज एक केस से अलग है.

मंगलुरु हिंसा

कर्नाटक के मंगलुरु में पिछले साल दिसंबर में सीएए के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे जिसमें दो लोगों की मौत हुई थी.

कुछ हफ्ते बाद मंगलुरु पुलिस ने ऐसे अहम सबूत जुटाने का दावा किया कि हिंसा भड़काने के लिए पीएफआई और उसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) जैसे संगठनों की तरफ से भड़काऊ संदेश शेयर किए गए थे.

मामले में दो लोगों अबू बकर सिद्दीकी और मोइदीन हमीज को गिरफ्तार किया गया और पीएफआई और एसडीपीआई सदस्यों समेत 30 अन्य को नोटिस भेजा गया. दोनों आरोपियों पर देशद्रोह की धारा 124ए सहित भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे.

इस संबंध में पीएफआई की तरफ से कोई बयान नहीं जारी किया गया था.

पीएफआई-तबलीगी जमात के बीच लिंक

इस साल अप्रैल में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पीएफआई और तबलीगी जमात के बीच लिंक होने का दावा किया था. मार्च में दिल्ली में मजहबी आयोजन के लिए तबलीगी जमात की काफी आलोचना हुई थी जिसके कारण कोविड-19 संक्रमण फैला था.

पुलिस का दावा था कि जमात को इस आयोजन के लिए धनराशि पीएफआई की तरफ से मुहैया कराई जा रही थी. अप्रैल में ईडी ने भी आयोजन का ‘वित्तीय स्रोत’ पता लगाने के लिए तबलीगी जमात के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया था.

अपराध शाखा ने तबलीगी जमात को सवालों की एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त भी भेजी थी जिसमें न केवल जमात और उसमें हिस्सा लेने वालों की जानकारी मांगी गई थी बल्कि संगठन का पिछले तीन साल का आयकर रिटर्न, बैंक खातों का ब्यौरा और पैन नंबर आदि भी मांगा गया था.

पीएफआई ने इस घटनाक्रम पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.


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‘श्रीलंका ईस्टर बम धमाकों के कट्टरपंथी मास्टरमाइंड’

मई 2019 में पीएफआई कार्यालयों पर छापा मारा गया क्योंकि भारतीय खुफिया अधिकारियों को संदेह था कि तमिलनाडु के तौहीद जमात के साथ इस संगठन की भी एक माह पहले श्रीलंका में ईस्टर बम धमाकों के मास्टरमाइंड को कट्टरपंथ की ओर धकेलने में भूमिका रही थी. इन धमाकों में 250 से अधिक लोग मारे गए थे.

एनआईए ने पीएफआई के आठ कार्यालयों और तमिलनाडु तौहीद जमात के तीन ठिकानों पर छापे मारे थे. एसडीपीआई के कार्यालयों पर भी छापे मारे गए, हालांकि ये 5 फरवरी को पीएमके नेता रामलिंगम की हत्या से संबंधित थे.

हालांकि, यह एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है लेकिन पीएफआई एनआईए के राडार पर रहा है क्योंकि इसके सदस्य केरल में आईएसआईएस मॉड्यूल से जुड़े थे जो आतंकी संगठन में शामिल होने चले गए थे.

एनआईए ने सितंबर 2017 में गृह मंत्रालय को भेजी एक विस्तृत रिपोर्ट में दावा किया कि पीएफआई ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा’ है और मलप्पुरम में सत्य सरनी जैसे संगठनों का उपयोग ‘जबरन धर्मांतरण’ के लिए कर रहा है.

‘लव जिहाद’

2017 में विवादास्पद हादिया ‘लव जिहाद’ मामले की जांच करते हुए एनआईए ने महिलाओं को जबरन इस्लाम धर्म कबूल कराने के दो मामलों के बीच मजबूत संबंध का दावा किया था.

एनआईए ने कहा था कि चार लोगों, जो कथित तौर पर पीएफआई से जुड़े हैं, ने केरल निवासी अखिला असोकन को धर्मांतरण और हादिया नाम अपनाने के लिए बाध्य किया था, और अथिरा नांबियार को धर्मांतरण के लिए ‘प्रेरित’ करने के पीछे भी उन्हीं का हाथ होने का संदेह है.

केरल पुलिस ने जबरन धर्मांतरण से जुड़े 94 संदिग्ध मामलों की एक सूची भी सौंपी थी, जिसमें केंद्रीय एजेंसी से उनकी जांच करने और यह पता लगाने को कहा गया था कि क्या इनमें कोई खास पैटर्न है. एनआईए का दावा था कि इनमें से कम से कम 23 विवाह कराने में पीएफआई ने मदद की थी.

अक्टूबर 2018 में एनआईए ने अभियोजन चलाने के लिहाज से ‘पुख्ता सबूत’ न मिलने पर मामले की जांच बंद कर दी थी.

इसके तुरंत बाद कोस्टल डाइजेस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में जिन्ना की प्रतिक्रिया आई जिसमें कहा गया कि ‘लव जिहाद का अस्तित्व न होने’ का एनआईए का निष्कर्ष ‘सच्चाई की जीत’ और ‘झूठ पर जीने वाली ताकतों के लिए करारा झटका’ है.

(रोहिनी स्वामी के इनपुट के साथ)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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