पटना: बिहार में 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर होने वाले पहले चरण के विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का नामांकन गुरुवार से शुरू हो गया. लेकिन चुनाव में हिस्सा ले रहे दो प्रमुख गठबंधनों- महागठबंधन और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को अपने-अपने सीट बंटवारे के फार्मूले को अंतिम रूप देना अभी बाकी है.
चुनाव तीन चरणों में होने वाले हैं. 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर, 3 नवंबर को 94 सीटों और 7 नवंबर को 78 सीटों पर मतदान होना है जिसके नतीजे 10 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. तीनों चरणों के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख क्रमशः 8, 16 और 20 अक्टूबर है.
महागठबंधन के मोर्चे पर राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस को राज्य की 243 में से 60 सीटों की पेशकश की है और यह संख्या आगे बढ़ाने को तैयार नज़र नहीं आ रहा है. गठबंधन को पहले ही एक झटका लग चुका है क्योंकि उसके सबसे बड़े वामपंथी घटक दल भाकपा-माले ने वार्ता प्रक्रिया से बाहर होकर अपने 30 प्रत्याशी मैदान में उतारने की घोषणा कर दी है.
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सीटों की संख्या के बारे में अंतिम फैसला पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी कर सकती हैं. बिहार कांग्रेस के प्रमुख मदन मोहन झा ने दिप्रिंट को बताया, ‘गुरुवार रात तक तस्वीर साफ हो जानी चाहिए’.
उधर, एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने केंद्रीय गृह मंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दखल के बावजूद इस पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है कि वह मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार के साथ बने रहेंगे.
कांग्रेस का मामला
2015 के विधानसभा चुनावों में जब नीतीश के नेतृत्व वाले जदयू ने लालू प्रसाद के राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, मुख्यमंत्री की पहल पर राष्ट्रीय पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए 41 सीटें दी गई थीं, हालांकि लालू उसे 25 से अधिक सीटें देने को राजी नहीं थे. अब जब नीतीश कुमार इस समीकरण से बाहर हो चुके हैं तो कांग्रेस कम से कम 75 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.
कांग्रेस में इस बात को लेकर भी रोष है कि 60 में से कई सीटें तो उसके लिए ‘मृतप्राय’ ही हैं.
कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘हमें नालंदा और पटना में सीटें दी जा रही हैं, जहां राजद के लिए भी जीत मुश्किल है क्योंकि वे जदयू और भाजपा के गढ़ हैं. वास्तव में जीतने योग्य सीटों की संख्या काफी कम है.’
वरिष्ठ नेता ने बताया कि बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता चाहते हैं कि पार्टी अकेले ही मैदान में उतरे, ‘लेकिन अंत में राजद ही इसका कुछ रास्ता निकालेगा.’
इस बीच, राजद 160 सीटों पर चुनाव लड़ने का इच्छुक है. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस को यह तथ्य मानना होगा कि महागठबंधन में राजद सबसे बड़ा घटक है. अगर हमें एनडीए को हराना है तो उसे तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार करना चाहिए और हम जितनी सीटें दे रहे हैं, उन पर चुनाव लड़ना चाहिए. हमने उसे वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट की भी पेशकश की है जहां पर उपचुनाव होने जा रहा है.’
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उन्हें लालू की कमी खल रही है जो इस समय चारा घोटाले के सिलसिले में रांची की जेल में सजा काट रहे हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘लालू भले ही फोन पर कांग्रेस नेताओं से बात कर रहे हों लेकिन आगे चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं. तेजस्वी क्या तय कर सकते हैं इसकी भी एक सीमा है. लालू जमीनी हकीकत अच्छी तरह समझते हैं और वह उन मांगों को स्वीकार भी करेंगे, जो उन्हें तर्कसंगत लगती हैं.’ उन्होंने साथ ही इस पर भी जोर दिया कि यह कुछ ऐसा लग रहा था मानो तेजस्वी जीतने के लिए नहीं बल्कि विधानसभा में नेता विपक्ष का पद बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं.
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भाकपा-माले का वाकआउट
एनडीए को हराने के लिए राजद सभी वाम दलों को साथ लाने की कवायद में जुटा था. लेकिन राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ कई दौर की बातचीत के बाद सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी भाकपा-माले ने गठबंधन से हटकर 30 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर दी.
भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेंद्र झा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम 30 सीटें मांग रहे थे और यहां तक कि हमने अपनी मांग घटाकर 20 तक कर दी थी. लेकिन राजद हमें उन जिलों में सीटें देने को तैयार नहीं था, जहां हमारे पास मजबूत पार्टी नेटवर्क है, जैसे पटना, औरंगाबाद, जहानाबाद और बक्सर.’
उन्होंने आगे कहा, ‘एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर नहीं लड़ पाना दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इसके लिए राजद को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.’
2019 के लोकसभा चुनावों में राजद ने भाकपा-माले के लिए आरा सीट छोड़ी थी. लेकिन इस बार करीब 23 सीटें हैं जिन पर राजद को भाकपा, माकपा और मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को समायोजित करना है. और इसे लेकर ये सभी नाराजगी जता रहे हैं.
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एनडीए में चिराग पासवान की समस्या
एनडीए के मोर्चे पर नीतीश कुमार और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के बीच पिछले तीन महीने से सिर फुटव्वल की स्थिति बनी हुई है, जिसमें एक सहयोगी दल होने के बावजूद चिराग बिहार सरकार की आलोचना करने में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव से कहीं ज्यादा मुखर रहे हैं. यही वजह है कि जदयू ने तो बयान जारी कर कह दिया कि वह लोजपा को सहयोगी दल नहीं मानता है और भाजपा के लिए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे को गठबंधन का हिस्सा बने रहने के लिए समझाना काफी कठिन साबित हो रहा है.
लोजपा ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ने और जदयू और एक अन्य सहयोगी दल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की चेतावनी भी दे डाली है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने बुधवार को इस पर भरोसा जताया कि लोजपा एनडीए का हिस्सा बनी रहेगी और साथ ही बताया कि बिहार चुनाव के लिए भाजपा के प्रभारी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नीतीश और चिराग पासवान दोनों से बातचीत करेंगे.
यादव का बयान पासवान की अमित शाह से बातचीत के बाद आया. लेकिन इसके तुरंत बाद लोजपा की तरफ से एक वीडियो क्लिप जारी की गई जिसमें चिराग पासवान अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्हें हर संभावित स्थिति के लिए तैयार रहने को कहते नज़र आ रहे हैं.
उन्होंने ऐलान किया, ‘पार्टी किसी भी व्यक्ति से बड़ी है. हम किसी को भी अपनी पार्टी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करने देंगे.’
लोजपा को इस बार 20 सीटों की पेशकश की जा रही है लेकिन वह 42 सीटें चाहती है जितनी उसे 2015 के चुनाव में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन के खिलाफ भाजपा के सहयोगी दल के रूप में मिली थीं.
पासवान के करीबी और लोजपा प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने कहा, ‘पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की तरफ से हमारे ऊपर 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का बहुत दबाव है लेकिन हम चिराग पासवान के हर फैसले पर उनका साथ देंगे.’
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