नई दिल्ली: दिल्ली में पिछले महीने हुए तीसरे कोविड-19 सीरोलॉजिकल सर्वे में 25.1 फीसदी प्रतिभागियों में कोरोनावायरस एंटीबॉडीज का पता चला है.
दिप्रिंट को मिले नतीजों के मुताबिक इस माह के सर्वेक्षण में पता चला है कि सीरोप्रिवलेंस अगस्त के 28.36 प्रतिशत की तुलना में कम है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कई कारणों से हो सकता है, जिसमें सर्वेक्षण की सीमाओं से लेकर एक निश्चित समय बाद कोविड-19 एंटीबॉडी खत्म होना तक शामिल है. जुलाई में हुई पहले सीरोसर्वे में सीरोप्रिवलेंस 22.83 प्रतिशत पाया गया था.
सीरो सर्वे पर ताजा रिपोर्ट बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में पेश की गई. हाई कोर्ट ने 16 सितंबर को एक सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार से कहा था कि पिछले दो सीरो सर्वे के विपरीत यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने से पहले अदालत में पेश की जाए.
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11 जिलों में किया गया सर्वे
1 से 15 सितंबर के बीच हुए इस सर्वेक्षण में दिल्ली के सभी 11 जिलों में से हर एक में कुल 17,409 नमूनों का अध्ययन किया गया. अगस्त और जुलाई के दौर में क्रमशः 15,046 और 22,853 नमूने लिए गए थे.
अध्ययन एक मल्टीस्टेज रैंडम सैंपलिंग पद्धति पर आधारित था, जहां प्रत्येक जिले के प्रतिभागियों का चयन अगस्त के सर्वे में पाए गए सीरोप्रिवलेंस के आधार पर किया गया—यानी प्रतिभागियों को उन क्षेत्रों से चुना गया जहां पिछले सर्वेक्षण के दौरान सीरोप्रिवलेंस अधिक पाया गया था.
दूसरा और तीसरा सर्वेक्षण दिल्ली सरकार द्वारा संचालित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की तरफ से किया गया, जबकि पहला सर्वेक्षण नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) ने किया था, जो केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन आता है.
उच्चतम और निम्नतम प्रसार
तीसरे सीरोसर्वे के मुताबिक एंडीबॉडी का सबसे ज्यादा यानी 31.8 प्रतिशत प्रसार उत्तर-पश्चिमी जिले में पाया गया, जबकि सबसे कम 12.2 प्रतिशत पूर्वोत्तर जिले में पाया गया.
अगस्त के सर्वेक्षण में दक्षिणपूर्व जिले में सबसे अधिक 33.2 प्रतिशत प्रिवलेंस पाया गया था और यह दक्षिण-पश्चिम में सबसे कम 1.4 फीसदी पाया गया था. पहले सीरोसर्वे में सबसे ज्यादा प्रसार 27.8 प्रतिशत मध्य जिले में था और सबसे कम के मामले में 12.9 प्रतिशत के साथ दक्षिण-पश्चिम एकदम दूसरे छोर पर था.
नवीनतम सर्वेक्षण में केवल तीन जिलों– नॉर्थवेस्ट, पूर्व (31.1 प्रतिशत) और दक्षिण (30.1 प्रतिशत) में 30 प्रतिशत से अधिक सीरोप्रिवलेंस पाया गया है.
अन्य जिलों में घटते क्रम में सीरोप्रिवलेंस इस प्रकार है, शाहदरा (28.7 प्रतिशत), पश्चिम (27.9 प्रतिशत), दक्षिण पूर्व (27 प्रतिशत), उत्तर (24.1 प्रतिशत), मध्य (21.7 प्रतिशत), नई दिल्ली (18.6 प्रतिशत) और दक्षिण-पश्चिम (14.6 प्रतिशत).
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किशोरों में सबसे ज्यादा जोखिम
अगस्त के सर्वेक्षण के तरह ही सितंबर में भी सबसे अधिक प्रसार 5-17 आयु वर्ग में पाया गया, जो 27.2 प्रतिशत रहा और इसके बाद 50 और उससे अधिक आयु वर्ग में 26 प्रतिशत प्रसार दर्ज किया गया.
18-49 आयु वर्ग में यह दर सबसे कम 23.5 प्रतिशत रही. अगस्त के सर्वेक्षण में भी 5-17 आयु वर्ग में 31.1 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक सीरोप्रिवलेंस दर्ज किया गया था. इसके बाद 50 से अधिक आयु वर्ग में यह आंकड़ा 30.7 प्रतिशत और 18-49 आयु वर्ग में सबसे कम 26.5 प्रतिशत ही दर्ज किया गया था.
महिलाओं में उच्च प्रसार
अगस्त के सर्वेक्षण की तरह ही एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि तीनों आयु समूहों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच सीरोप्रिवलेंस अधिक पाया गया है. 50 और उससे अधिक आयु वर्ग में महिलाओं में सबसे अधिक प्रसार 28.5 प्रतिशत रहा, इसके बाद 5-17 आयु वर्ग में 27.9 प्रतिशत और 18-49 आयु वर्ग में 24.7 प्रतिशत पाया गया.
पुरुषों में 5-17 आयु वर्ग में 26.7 प्रतिशत के साथ सीरोप्रिवलेंस सबसे अधिक पाया गया. इसके बाद 50-और ऊपर के आयु वर्ग में जहां सीरोप्रिवलेंस 23.9 फीसदी था, वहीं 18-49 आयु वर्ग में 22.5 फीसदी था.
सर्वेक्षण में प्रतिभागियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति के लिहाज से कोरोना की चपेट में आने के जोखिम पर भी अध्ययन किया गया. सर्वे से पता चला कि 5000 रुपये से कम प्रतिव्यक्ति आय के साथ सामाजिक आर्थिक स्तर के लिहाज से निचले पायदान पर आने वालों में कोविड सीरोप्रिवलेंस उच्चतर था. 5,000 रुपये से कम आय वाले प्रतिभागियों को कोविड की चपेट में आने का अनुमान जहां 26.1 प्रतिशत है, वहीं 5,000 रुपये से अधिक की आय वाले लोगों के बीच यह आंकड़ा 20.5 प्रतिशत ही पाया गया है.
सर्वेक्षण में पुनर्वास कॉलोनियों, शहरी मलिन बस्तियों, अनधिकृत कॉलोनियों की तुलना में सुनियोजित ढंग से बसाई गई कॉलोनियों में सीरोप्रिवलेंस कम पाया गया, जो 25.9 प्रतिशत के मुकाबले 22.9 प्रतिशत रहा.
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‘बुजुर्गों पर विशेष ध्यान’
सर्वेक्षण के ट्रेंड के बारे में पूछे जाने पर विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि 5-17 आयु वर्ग में एक उच्च सीरोप्रिवलेंस पाए जाने का यह मतलब कतई नहीं है कि बुजुर्गों पर ध्यान देना कुछ कम कर देना चाहिए, जो कि कोविड-19 की चपेट में आने के लिहाज से अब भी सबसे गंभीर और ज्यादा जोखिम वाले वर्ग में आते है.
एम्स दिल्ली में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने कहा, ‘हालांकि, संक्रमण का खतरा 5-17 आयु वर्ग के बीच सबसे अधिक हो सकता है, लेकिन हमें बुजुर्गों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि उनमें मृत्यु दर अधिक है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर उनमें (बुजुर्गों में) एंटीबॉडी विकसित हो भी जाती हैं तो भी किशोरों की तुलना में तेजी से खत्म हो जाएंगी, जो उनमें जोखिम को बढ़ाता है.’
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सैंपल लेने के तरीके के आधार पर सीरोसर्वे की अपनी सीमाएं हैं और हर अध्ययन को एकदम सटीक नहीं माना जाना चाहिए.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के कोविड-19 कार्यबल के सदस्य और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, ‘सीरोसर्वे व्यवस्थित आधार पर आबादी का रैंडम सैंपल लेकर किया गया जाता है. यदि नमूना फ्रेम या नमूना पद्धति में कोई बदलाव होता है तो रिपीट सर्वे के अनुमानों में भिन्नता आ सकती है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा कोविड-19 एंटीबॉडी तीन महीने में घट जाती है या खत्म हो जाती है. इसलिए मार्च से जुलाई के दौरान संक्रमित लोगों का परीक्षण निगेटिव हो सकता है यदि वे संक्रमित हुए हों लेकिन टेस्ट कई हफ्ते बाद किया गया हो. इसके अलावा, किसी भी अनुमान को उससे संबंधित सीमा के सही प्रतिनिधित्व के लिए 95 प्रतिशत विश्वास की सीमा के साथ सूचित किया जाना चाहिए.’
विशेषज्ञों ने कहा कि अगर केवल नमूनों को दोहराया जाता है, तभी यह ट्रेंड पता चल पाएगा कि सीरोप्रिवलेंस घटा है या नहीं.
ग्लोबल हेल्थ एंड एंटीबायोटिक्स में रिसर्चर डॉ. अनंत भान कहते हैं, ‘सीरोसर्वे पूरी तरह नमूनों पर आधारित अनुमान हैं. इससे यह पता लगाना मुश्किल है कि प्रसार घटा है. अगर समय के साथ-साथ हम इसे रिपीट करते हैं तो क्या हम यह कह सकते हैं कि यह ट्रेंड है या नहीं, क्योंकि जैसा डाटा बताता है कि संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए हम निश्चित रूप से इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
दिप्रिंट ने दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. नूतन मुंडेजा से संपर्क साधा लेकिन उन्होंने टिप्पणी से इनकार कर दिया. यह पूछे जाने पर कि क्या किशोरों के संबंध में सीरोसर्वे के नतीजे इलाके की रणनीति में बदलाव पर असर डाल सकते हैं, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की डीन डॉ. नंदिनी शर्मा ने कहा कि एंटीबॉडी के आधार पर इलाज की रणनीति तय नहीं की जा सकती है.
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