नई दिल्ली: अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी), जो इस पर नज़र रखती है कि किसी निजी टेलीविजन चैनल ने कब और किस हद तक प्रसारण संबंधी नियमों का उल्लंघन किया, गुरुवार को सुदर्शन टीवी मामले की सुनवाई करेगी. सूचना एवं प्रसारण (आईएंडबी) मंत्रालय ने इस बाबत चैनल को सूचित कर दिया है.
सुदर्शन टीवी अपने विवादास्पद शो बिंदास बोल के कुछ एपिसोड प्रसारित करके मुश्किल में घिर गया है, जिसमें दावा किया गया था कि मुस्लिमों की तरफ से सिविल सेवाओं में घुसपैठ की कथित ‘साजिश’ रची गई है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से 29 सितंबर को लिखे गए एक पत्र, जिसकी प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है, में सुदर्शन टीवी चैनल के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को आईएमसी के सामने व्यक्तिगत तौर पर पेश होकर अपना पक्ष रखने को कहा गया है. आईएमसी ऐसे मामलों में सुनवाई के बाद कार्रवाई की सिफारिश कर सकती है, जिस पर अंतिम फैसला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ही करना है.
यह पत्र मंत्रालय के कारण बताओ नोटिस पर चैनल की तरफ से अपना जवाब पेश करने के एक दिन बाद भेजा गया है, जिसमें कहा गया था कि प्रसारण संबंधी नियमों के उल्लंघन पर उसके खिलाफ क्यों न कार्रवाई की जाए.
23 सितंबर को मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी सूचित किया था कि इस शो- जिसके चार एपिसोड पहले ही प्रसारित हो चुके हैं— ने प्रथम दृष्टया प्रोग्राम कोड का उल्लंघन किया है. मामला शीर्ष अदालत में विचाराधीन है.
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अंतर-मंत्रालयी समिति
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर (ईएमएमसी) सभी निजी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित होने वाले कंटेंट की निगरानी करता है कि कहीं वे कार्यक्रम और विज्ञापन संबंधी संहिता का उल्लंघन तो नहीं कर रहे.
हालांकि, संहिता के उल्लंघन को लेकर विशेष तौर पर आने वाली शिकायतों को निपटाने का जिम्मा अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) के पास है, जिसमें कई मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं. यह निजी उपग्रह टेलीविजन चैनलों के खिलाफ शिकायतों का स्वत: संज्ञान या अन्य आधार पर देखता है. पैनल का नेतृत्व सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव करते हैं.
2016 में आईएमसी ने ही एनडीटीवी इंडिया को केबल टेलीविजन नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2015 के तहत निर्धारित कार्यक्रम संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया था.
इसके बाद मंत्रालय ने चैनल को 24 घंटे के लिए प्रसारण बंद करने के लिए कहा. हालांकि बाद में यह फैसला रोक दिया गया था.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘आईएमसी सिर्फ सिफारिश करने वाली इकाई है और इसे कोई कानूनी ताकत हासिल नहीं हैं. यह प्रसारण नियमों के उल्लंघन के दोषी किसी चैनल के खिलाफ होने वाली कार्रवाई का निर्णय नहीं करता है. इसका फैसला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ही करता है.’
उदाहरण के तौर पर इस साल मार्च में जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यह कहते हुए 48 घंटे के लिए दो मलयालम चैनलों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था कि उनकी रिपोर्ट में अन्य उल्लंघनों के अलावा एक ‘समुदाय विशेष के साथ पक्षपात’ किया गया, तब दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक आईएमसी की बैठक नहीं बुलाई गई थी.
हालांकि, मंत्रालय द्वारा अगले कुछ घंटों के भीतर ही निर्णय को पलट दिया गया था.
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