रायपुर: माओवादियों के गढ़ में अपनी पकड़ और मजबूत करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार 2020 अंत तक आठ नए पुलिस कैम्प खोलने जा रही है. सात कैंम्प कोरोनाकाल से पहले खोले जा चुके हैं और पांच अन्य फरवरी-मार्च 2021 तक खोले जाएंगे. पुलिस के अनुसार ग्रामीणों द्वारा कैम्पों का कथित विरोध नक्सलियों के दबाव में हो रहा है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार ये आठ पुलिस कैम्प दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिलों में खोले जाएंगे. सरकार और पुलिस के आला अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा कैम्पों का विरोध प्रतीकात्मक है जो माओवादियों के दबाव में हो रहा है.
पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि ‘विरोध कुछ मुट्ठीभर लोग’ कर रहे हैं वो भी ‘स्थानीय नक्सली नेताओं’ को दिखाने के लिए. अधिकारियों के अनुसार ग्रामीणों के विरोध से उन्हें भी आपत्ति नहीं है. पुलिस कैम्प खुल जाने के बाद माओवादियों का ग्रामीणों पर दबाव कम हो जाएगा और विरोध अपने आप ही बंद हो जाएगा.’
नक्सली प्रभावित इलाकों में पुलिस कैंप खोले जाने को लेकर राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज ने दिप्रिंट से कहा, ‘माओवादियों द्वारा निर्दोषों ग्रामीणों को बेवजह मुखबिरी के नाम पर मारा जा रहा है. ग्रामीणों की सुरक्षा सरकार का दायित्व है.’
वह आगे कहते हैं, ‘माओवादियों के पकड़ वाले क्षेत्रों में पुलिस कैम्प खोलना सरकार की नक्सल विरोधी नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कैम्प खुलने के बाद इस क्षेत्र में नक्सलियों की पकड़ स्वयं ही कमजोर होगी और विकास के दूसरे काम भी होंगे.’
बता दें की साहू ने कुछ दिन पहले ही नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों की हत्याओं पर कहा था की उनके कृत्य उनपर भारी पड़ेंगे.
बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी कहते हैं, ‘2020 में राज्य पुलिस के कुल 15 कैम्प को कमीशन करना है. सात कैम्प नारायणपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिलों में फरवरी-मार्च 2020 में स्थापित हो चुके हैं. आठ अन्य कैम्प दिसंबर और पांच मार्च 2021 तक खोले जाएंगे.’
सुंदरराज ने ग्रामीणों द्वारा कैम्पों का विरोध किए जाने पर कहा, ‘ग्रामीणों में तो पुलिस कैम्प के प्रति उत्साह रहता है लेकिन कुछ लोग नक्सलियों के दबाव में आकर प्रतीकात्मक विरोध करते हैं. कैम्प खुलने के बाद वह भी बंद हो जाता है क्योंकि नक्सली गतिविधियों पर सुरक्षाबलों की निगाह रहती है.’
पुलिस महानिरीक्षक ने दिप्रिंट को बताया, ‘कैम्प खुलने से नक्सलियों का सप्लाई चैन और आने-जाने के मुख्य रास्ता भी बंद हो जाता है. ग्रामीणों पर नक्सली दबाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कथित विरोध की बातें स्वयं माओवादी पर्चों के माध्यम से फैला रहें हैं. नक्सली ग्रामीणों की दहशत का फायदा उठाना चाहते हैं.’
आईजी बस्तर ने बताया कि नए खुलने वाले पुलिस कैम्पों के क्षेत्रों का अभी खुलासा नही किया जा सकता क्योंकि इससे स्थानीय लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी. हालांकि, उन्होंने बताया की ये कैम्प दंतेवाड़ा, कोंडागांव, बीजापुर और सुकमा जिलों में खुल रहे हैं.’
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क्या है पुलिस कैंप
पुलिस कैम्प खुलने का सिलसिला प्रदेश में 2016 में करीब 14 कैम्पों से शुरू हुआ था. इसमें छत्तीसगढ़ पुलिस, इंडिया रिज़र्व बटालियन (आईआरबी) और सीआरपीएफ के कैम्प शामिल हैं. राज्य और केंद्र सरकार की नक्सल विरोधी नीति के तहत ये कैम्प मुख्यतः सघन नक्सली क्षेत्रों में ही स्थापित किये गए हैं. एक पुलिस कैम्प में कुल 130 सुरक्षाबल तैनात किए जाते हैं.
इनका मुख्य उद्देश्य धुर नक्सली क्षेत्र में सरकार का आधिपत्य जमाना होता है क्योंकि कैम्प खुलने तक वहां सरकार की कोई पहुंच नही होती. पुलिस कैम्प नक्सली क्षेत्रों में क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे बड़े पुल की सुरक्षा और सामरिक दृष्टि से आवश्यक सड़कों के निर्माण को सुरक्षा देना भी होता है. इसके साथ ही पुलिस कैम्प चालू होने के बाद राज्य सरकार अपनी मूलभूत सुविधाएं जैसे राशन दुकानें, आंगनबाड़ी केंद्र, मितानिन केंद्र और विकास की दूसरी योजनाएं आसानी से लागू कर पाती हैं.
दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव के अनुसार, ‘पिछले चार सालों में राज्य के विभिन्न नक्सली इलाकों में सीआरपीएफ, इंडियन रिज़र्व बटालियन (आईआरबी) और राज्य पुलिस के करीब 55 कैम्प खोले गए हैं. इनमें से 35-40 कैम्प राज्य पुलिस और 15-20 सीआरपीएफ और इंडियन रिज़र्व बटालियन के हैं.
अभिषेक ने दिप्रिंट को बताया, ‘बस्तर में लगातार खुल रहे पुलिस कैम्प नक्सलियों की परेशानी का सबब बन चुके हैं. यही कारण है कि नक्सलियों ने अब पुलिस मुखबिरी के शक में निर्दोष ग्रामीणों की हत्याएं लगातार कर रहें हैं. माओवादियों इस साल अबतक करीब 50 ग्रामीणों की हत्या की है.’ पल्लव के अनुसार आनेवाले दिनों में राज्य पुलिस के अलावा सीआरपीएफ के भी चार कैम्प खुलेंगे लेकिन अभीतक इसपर आधिकारिक मुहर नहीं लगी है.
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में नक्सलियों द्वारा पर्चों के माध्यम से पुलिस कैम्पों का लगातार विरोध किया जा रहा है. पत्रों में नक्सली खुलकर कहते हैं कि ग्रामीणों को सड़क, सुरक्षा और पीडीएस दुकानों की आवश्यकता नहीं है लेकिन चिकित्सा और खाद्य सामाग्री चाहिए.
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