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Friday, 22 November, 2024
होमदेशलेट्रल एंट्री वाले विशेषज्ञ भी 'अन्य IAS अधिकारियों की तरह हो गए हैं', एक साल पहले ही हुई थी भर्ती

लेट्रल एंट्री वाले विशेषज्ञ भी ‘अन्य IAS अधिकारियों की तरह हो गए हैं’, एक साल पहले ही हुई थी भर्ती

नागरिक सेवाओं के भीतर के कुछ संशयवादी लोग मानते हैं कि लेट्रल एंट्री में हो रही देरी उनकी इस बात का प्रमाण है कि नौकरशाही को कुछ पेशेवरों को शामिल कर ठीक नहीं किया जा सकता है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने लेट्रल एंट्री प्रक्रिया के माध्यम से नई प्रतिभाओं को लाकर नागरिक सेवाओं में सुधार करने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा करने के लगभग दो साल बाद भी इस ओर तेजी से कदम नहीं बढ़ाया है. पिछले साल आठ मंत्रालयों में आठ संयुक्त सचिव स्तर की नियुक्तियों के बाद से ऐसी कोई भर्ती नहीं हुई है.

2018 में सरकार ने कहा था कि लेट्रल एंट्री से सिविल सर्विसेज में डोमेन विशेषज्ञता लाने और केंद्र में आईएएस अधिकारियों की कमी की समस्या को दूर करने के दोहरे उद्देश्य की पूर्ति होगी लेकिन पिछले साल कहा गया कि इस योजना के माध्यम से संयुक्त सचिवों की भर्ती की आगे कोई और योजना नहीं है.

इसके बजाए सरकार ने कहा कि वह निदेशक स्तर पर लेट्रल एंट्री के माध्यम से 40 पेशेवरों को काम पर रखेगी.

जुलाई 2019 में संसद को दिए एक बयान में कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2017 में नीति आयोग और सचिवों के क्षेत्रीय समूह (जीओएस) की सिफारिशों के आधार पर कहा, ‘उप सचिव/निदेशक स्तर पर 40 पदों पर बाहर के विशेषज्ञों की नियुक्ति तय की गई है. हालांकि, इस मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.’


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आगे की भर्ती पर कोई प्रगति नहीं

बयान दिए एक साल से अधिक समय हो गया है, हालांकि प्रस्ताव पर कोई प्रगति नहीं हुई है और यूपीएससी- जो निकाय भर्तियां करने वाला है- सरकार द्वारा अभी तक किसी भी अन्य भर्तियों के बारे में सूचित नहीं किया गया है.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक अधिकारी ने कहा, ‘यह प्रस्ताव स्पष्ट नहीं है.’ ‘कोविड-19 महामारी ने सरकार की बहुत सारी योजनाओं को पटरी से उतार दिया है, इसलिए भर्ती इस वर्ष नहीं हो सकी. और लेट्रल एंट्री जैसे सुधार के लिए समय चाहिए… लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सुधार नहीं हुआ है.’

हालांकि नागरिक सेवाओं के भीतर के कुछ संशयवादी लोग मानते हैं कि लेट्रल एंट्री में हो रही देरी उनकी इस बात का प्रमाण है कि नौकरशाही को कुछ पेशेवरों को शामिल कर ठीक नहीं किया जा सकता है.


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‘लेट्रल एंट्री सिविल सर्विस का कायापलट नहीं कर सकती’

दिप्रिंट ने जब आईएएस अधिकारियों और अन्य हितधारकों से बात की तो उन्होंने कहा कि ये प्रणाली इतनी विस्तृत है कि कुछ लेट्रल एंट्री से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

एक सेवारत आईएएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम में से बहुत से लोग पिछले साल इस कदम से चिंतित थे, लेकिन बहुत से लोग जानते थे कि लेट्रल एंट्री के माध्यम से 10 या 50 पेशेवरों को शामिल करने से सरकार के कामकाज में बदलाव नहीं हो सकता है या सरकारी कामकाज की प्रकृति को मौलिक रूप से नहीं बदला जा सकता है.’ ‘जब तक सरकार में कामकाज का परिदृश्य नहीं बदलता है, तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता कि पद पर आसीन व्यक्ति एक आईएएस अधिकारी है या आईपीएस, आईआरएस या लेट्रल एंट्री से आया हुआ अधिकारी.’

यूपीएससी द्वारा पिछले साल लेट्रल एंट्री से भर्ती किए गए आठ में से एक अधिकारी ने आंशिक रूप से इस बात से सहमति जताई. उन्होंने कहा, ‘अभी यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन अगर मैं खुद के लिए बोलूं तो कह सकता हूं कि मैं इस व्यवस्था को बदलने की तुलना में ज्यादा धस चुका हूं.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा यह कहना नहीं है कि मैंने कोई योगदान नहीं दिया है लेकिन मुझे लगता है कि यह उचित है कि सैकड़ों लोगों के मंत्रालय में भर्ती होने वाला एक अधिकारी इस संस्कृति को बदल नहीं सकता.’ ‘लेट्रल एंट्री को शुरू करने के लिए तीन साल एक अच्छा समय हो सकता है लेकिन शासन में परिवर्तन को प्रभावित करने के मामले में यह बहुत कम समय साबित होगा.’


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‘उद्देश्य पूरा नहीं हुआ’

लेट्रल एंट्री से आठ पेशेवरों को जिस मंत्रालय में भर्ती किया गया उन्हीं में से एक के सचिव ने कहा कि लेट्रल एंट्री का उद्देश्य जो कि डोमेन विशेषज्ञों का इस्तेमाल करना था वो प्रयोजन पूरा नहीं हुआ.

अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘वे किसी भी अन्य निदेशक या जेएस के हस्ताक्षर वाली फाइलों की तरह बन गए हैं.’ ‘दूसरी समस्या यह है कि उनके पास विशेषज्ञता के बहुत सीमित क्षेत्र हैं. इसके अलावा, वे किसी भी अन्य क्षेत्रों में योगदान करने के लिए संघर्ष करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यह मुख्य रूप से है क्योंकि आप डोमेन विशेषज्ञता को सामान्यीकृत डोमेन, अर्थात प्रशासन में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं.’

वो अच्छी तरह से काम करे इसके लिए अधिकारी ने कहा कि उनके प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान देना चाहिए था. उन्होंने कहा, ‘इन लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि शासन कैसे काम करता है, उन्हें इसमें प्रशिक्षण की आवश्यकता है.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा सुझाव यह होगा कि उन्हें भर्ती के बाद कुछ समय के लिए प्रशिक्षण के लिए मसूरी (जहां लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी स्थित है) के लिए भेजा जाना चाहिए.’

लेट्रल एंट्री से भर्ती हुए अधिकारियों ने पिछले साल अपनी भर्ती के बाद भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. आईआईपीए में उन्हें सिखाया गया कि कैबिनेट नोट कैसे बनाया जाए और संसदीय प्रक्रियाओं के तहत कैसे काम किया जाए. हालांकि, यह केवल दो सप्ताह की अवधि के लिए था.


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लेट्रल एंट्री पर अधिकांश महत्वाकांक्षी सिफारिशें स्वीकार नहीं की गईं

जबकि लेट्रल एंट्री के माध्यम से पेशेवरों की भर्ती करने के सरकार के निर्णय को एक बड़े सुधार के रूप में लाया गया लेकिन इसके संबंध में कुछ अधिक महत्वाकांक्षी सिफारिशों को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए दस्तावेज़ों के अनुसार, शासन पर सचिवों का समूह (जीओएस) जिसने पहली बार 2017 में संयुक्त सचिवों के स्तर पर लेट्रल एंट्री की सिफारिश की थी, उन्हें अतिरिक्त सचिवों के स्तर पर पदोन्नत करने या यहां तक ​​कि उन्हें आईएएस में शामिल करने का सुझाव दिया था. लेकिन इन सिफारिशें को सरकार द्वारा तुरंत स्वीकार नहीं किया गया.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक दस्तावेज को दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किया गया, जिसमें स्पष्ट है कि फरवरी 2017 में जीओएस ने कहा था, ‘वर्तमान कमी संयुक्त सचिव के स्तर पर है. इसलिए, अगले सात वर्षों के लिए वार्षिक आधार पर संयुक्त सचिव स्तर पर प्रत्येक 15 अधिकारियों को एक लिखित प्रतियोगी परीक्षा और साथ ही यूपीएससी के माध्यम से आयोजित व्यक्तित्व परीक्षण/ प्रस्तुति के माध्यम से वार्षिक आधार पर चुना जा सकता है.’

जीओएस की सिफारिश में कहा गया, ‘ऐसे अधिकारियों के मामले में, अगर विस्तार के लिए विचार किया जाता है तो उन्हें अतिरिक्त सचिव स्तर तक नियुक्ति के लिए भी विचार किया जा सकता है.’

इसके अनुसार, ‘उनके विस्तार के बारे में एक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण संभव होना चाहिए क्योंकि इन अधिकारियों के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट)/360 डिग्री मूल्यांकन उपलब्ध होगी.’

हालांकि सरकार ने पेशेवरों की भर्ती के लिए जीओएस की लेट्रल एंट्री वाली सिफारिश को स्वीकार कर लिया लेकिन प्रतिस्पर्धी परीक्षा के माध्यम से ऐसा करने की सिफारिश और अगले सात वर्षों के लिए प्रत्येक वर्ष तक ऐसा करने वाली मांगों को स्वीकार नहीं किया.


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‘सीधा आईएएस में भर्ती’

दस्तावेज़ के अनुसार, जीओएस की एक और सिफारिश यह थी, ‘यदि प्रयोग सफल साबित होता है और सरकार वास्तव में सक्षम अधिकारियों की सेवा प्राप्त करती है तो इस योजना को बाद में आईएएस और केंद्र की अन्य ग्रुप ए सेवाओं में उनके लेट्रल एंट्री के लिए रास्ता खोला जा सकता है.’

इसमें कहा गया, ‘उनके लेट्रल एंट्री के तौर-तरीकों को प्राथमिकता दी जाए क्योंकि उन्हें तब राज्य सरकार के लिए कम से कम तीन साल तक काम कराया जा सकता है, जहां उन्हें फील्ड अनुभव प्राप्त हो सकता है जिसे वे बाद में नीति-निर्माण के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं. ऐसी स्थिति में संशोधित नियमों की व्यवहार्यता का पता लगाया जा सकता है.’

हालांकि इन सिफारिशों को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन सूत्रों का कहना है कि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि उन्हें स्वीकार किया जा सकता है. दिप्रिंट से बात करने वाले आईएएस अधिकारियों ने भी सिफारिशों को अवांछनीय बताया.

डीओपीटी के पूर्व सचिव एसके सरकार ने कहा, ‘सिफारिशें लागू करना संभव नहीं हैं. आईएएस के लिए भर्ती केवल यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है. इसे वैसे ही दरकिनार नहीं किया जा सकता है.’

मनोनयन के बिना अतिरिक्त सचिवों के रूप में लेट्रल एंट्री वालों को बढ़ावा देने की सिफारिश पर सरकार ने कहा, ‘यह भेदभावपूर्ण होगा. केंद्रीय कर्मचारी योजना के तहत जेएस (संयुक्त सचिव) से एएस (अतिरिक्त सचिव) तक पदोन्नत होने के लिए एक को पदावनत किया जाना चाहिए. आप कुछ चुनिंदा लोगों के लिए इस प्रक्रिया को दरकिनार नहीं कर सकते.’

उक्त सचिव ने कहा कि लेटरल एंट्री के सफल बनाने के लिए एक उचित प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है जिसमें ये हो कि 10 प्रतिशत आईएएस अधिकारी इस मार्ग से आएं. उन्होंने कहा, ‘यह मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता है जहां आपके पास यादृच्छिक संख्या में भर्तियां होती हैं और फिर आप कहते हैं कि इन अधिकारियों को प्रमोट कर उन्हें स्थायी आईएएस अधिकारी भी बना दें.’

दिप्रिंट ने जीओएस सिफारिशों के बारे में टिप्पणी के लिए कॉल, संदेश और ईमेल के माध्यम से डीओपीटी प्रवक्ता से संपर्क किया लेकिन इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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