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Wednesday, 20 November, 2024
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मोदी के मंत्री क्यों महाभारत के युधिष्ठिर की तरह बोलते नजर आ रहे हैं

लोकतंत्र के मंदिर संसद में आधा सच या आधा झूठ बोलने के लिए किसी एक मंत्री को हम दोष न दें. आखिर, लोगों को तो कोई शिकायत नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बुलंद है. इसलिए, ‘उत्तर-सत्य’ दौर की राजनीति की हकीकत को कबूल करना सीखिए.

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आपको यह तो याद होगा ही कि महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए क्या रणनीति तैयार की थी. द्रोण की एक कमजोरी थी— अपने पुत्र अश्वत्थामा से मोह, जो एक शूरवीर योद्धा था. कृष्ण ने भीम से अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कराया और अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मारा गया. गुरु द्रोण को लगा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन वे इस पर तभी विश्वास कर सके जब न्याय के प्रतीक धर्मराज युधिष्ठिर ने यह कहा— ‘अश्वत्थामा हतो… नरो वा कुंजरो’. द्रोण केवल ‘अश्वत्थामा हतो…’ तक सुन पाए, बाकी हिस्सा कृष्ण के शंखनाद के कारण न सुन पाए. द्रोण ने हताश होकर अपने शस्त्र रख दिए, और कृष्ण की रणनीति के मुताबिक मारे गए.

यह पौराणिक कथा मुझे तब-तब याद आने लगती है जब-जब मैं नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों के बयान सुनता हूं, चाहे यह बयान एलएसी पर चीन के साथ टकराव के मामले पर दिया गया हो या कोविड-19 महामारी से निपटने पर, या अर्थव्यवस्था की बदहाली पर, या शासन व्यवस्था के मामले पर. लगता है कि वे सब युधिष्ठिर जैसी बोली बोल रहे हों, और कृष्ण सही समय पर कानफाडू शंख बजा दे रहे हों.


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चीन के मामले का सच

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में चीन के बारे में जो बयान दिया उसका एक-एक शब्द सच्चा था. वे गरजे थे— ‘दुनिया की कोई भी ताकत हमें लद्दाख सीमा पर गश्त करने से रोक नहीं सकती.’ लेकिन चीन ने लद्दाख के देपसांग और गोगरा में गश्त के कई पारंपरिक स्थलों पर हमें जाने से जो रोक दिया है, उसका क्या? अगर आपने अब तक पूर्व-सत्य नहीं सुना है तो उनके बयान की फिक्र मत कीजिए.

रक्षामंत्री ने संसद के दोनों सदनों में ज़ोर देकर कहा कि चीन ने ‘अतिक्रमण की कोशिशें कीं’ मगर उसे नाकाम कर दिया गया. तो, ये खबरें क्या गलत हैं कि चीन की सेना पीएलए ने पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर 8 से 4 तक के क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है? रक्षामंत्री ने ऐसा तो नहीं कहा! तो क्या वे प्रधानमंत्री मोदी के 19 जून वाले बयान को दोहरा रहे थे कि भारत के क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई है? कतई नहीं! क्या रक्षामंत्री ने ऐसा कहा? नहीं, किसी तरह नहीं!
फिर से कहूंगा, राजनाथ सिंह का कहा एक-एक शब्द तथ्यात्मक रूप से सही है.

महाभारत में युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा के मारे जाने की पुष्टि की थी लेकिन तुरंत अपनी सत्यवादिता साबित करने के लिए सच भी कहा. लेकिन मोदी सरकार में युधिष्ठिर के ये अवतार तो ‘अश्वत्थामा हतो..’ कहकर रुक जाते हैं क्योंकि आगे तो ‘कार्रवाई के ब्यौरे’ हैं.

कोरोना के खिलाफ कवायद

कोविड-19 वायरस से निपटने के मामले में स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने संसद के दोनों सदनों में घोषणा की कि शुरू में ही लॉकडाउन लागू करने से इस वायरस से 14 से 29 लाख मामलों और 37 से 78 हज़ार मौतों को रोक लिया गया. ये अनुमान सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के एक अध्ययन से सामने आए हैं. लेकिन यहां मुद्दा ही अलग है. मंत्री महोदय दूसरे सरकारी संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के सेरोलॉजिकल सर्वे के बारे में खामोश क्यों हैं? इस सर्वे के अनुमान बताते हैं कि मई के शुरू तक करीब 64 लाख लोग कोविड से संक्रमित हो चुके थे, यह संख्या इससे चार महीने बाद, आज संक्रमित लोगों की सरकारी संख्या से 10 लाख ज्यादा है.

तो हम किस सर्वे पर यकीन करें— उस पर, जो एक मंत्रालय द्वारा किया गया और गणितीय मॉडलिंग पर आधारित है या उस पर, जो एक शीर्ष बायो-मेडिकल अनुसंधान संस्था द्वारा किए गए सेरोलॉजिकल सर्वे पर आधारित है? या तो लॉकडाउन ने 14-29 लाख लोगों को संक्रमित होने से बचा लिया, या इसकी वजह से 64 लाख मामले सामने आने से रह गए. स्वास्थ्य मंत्री ने केवल एक सर्वे के बारे में बयान दिया— अश्वत्थामा हतो!

किसानों को दोगुनी आमदनी

आज हर कोई किसानों की बात कर रहा है, तो जरा यह देख लें कि भाजपा ने किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का जो वादा किया था उसके बारे में मोदी सरकार का क्या कहना है. लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कृषि मंत्रालय ने कहा कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए आधार वर्ष 2015-16 रखा गया है. कमिटी के अनुमानों के मुताबिक, 2015-16 में एक कृषि परिवार की औसत वार्षिक आय उस साल की आधार कीमत के हिसाब से 96,703 रुपये थी. वैसे, अलग-अलग राज्य में यह आंकड़ा अलग-अलग है— पंजाब में यह 2.31 लाख रु. है, तो बिहार में 45,000 रु. है.

सवाल पूछने वाले भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह ने यह जानना चाहा था कि आर्थिक वृद्धि की जो चालू दर है उसे देखते हुए क्या 2022 तक उक्त लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा? सरकार ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया, और ‘किसानों के लाभ’ के लिए उसने जो 17 कार्यक्रम शुरू किए हैं और जो कदम उठाए हैं उनकी गिनती बता दी.


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फिर वही अश्वत्थामा हतो!

उस जवाब में यह चेतावनी भी जोड़ दी गई थी— ‘कृषि राज्यों का मामला है, राज्य सरकारें कार्यक्रमों/योजनाओं को लागू करती हैं… केंद्र सरकार राज्य सरकारों के इन प्रयासों में मदद करती है…’ यानी, अगले दो साल में किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई तो राज्य सरकारों को इसके लिए दोषी ठहराए जाने को तैयार रहना चाहिए.

न यह सच है, न झूठ

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि मोदी को उस कालातीत विवेक का वरदान मिला हुआ है, जिसे ‘राजा कालस्य कारणम’ कहा जाता है, वह विवेक जो भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दिया था. मोदी के 70वें जन्मदिन पर आदित्यनाथ ने उनका महिमागान करते हुए इस बात की यह व्याख्या दी— ‘राजा कभी परिस्थितियों का दास नहीं होता, वह अपने कर्मों से परिस्थितियों का निर्माण करता है.’ लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार में कई लोगों ने इस संदेश को गलत समझा है और वे मानते हैं कि वे सत्य के, कम-से-कम पूर्ण सत्य के तो दास नहीं ही हैं.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय सरकार से यह जानना चाहते थे कि ‘क्या नेपाल, चीन, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से हमारे द्विपक्षीय संबंध हाल में खराब हुए है?’ मोदी सरकार ने पिछले बुधवार को लोकसभा में इस सवाल के जवाब में ज़ोर देकर कहा— ‘बिलकुल नहीं!’

यह जवाब दार्शनिक हैरी जी. फ्रैंकफर्त के ‘बकवास’ वाले सिद्धान्त में फिट बैठता है. उनका कहना है कि झूठ बोलने वाले को सच से परेशानी तो होती ही है, तभी तो वह उसे छिपाने की कोशिश करता है. लेकिन ‘बकवास’ करने वाला सच की परवाह ही नहीं करता, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह गलत बोल रहा है या सही. जब कोई विपक्षी नेता ‘पीएम केयर्स फंड’ में पारदर्शिता की कमी की बात करता है, तो एक मंत्री का जवाबी हमला होता है कि इस बात की जांच की जानी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू ने ‘गांधी परिवार की खातिर’ पीएम राष्ट्रीय राहत कोश की स्थापना कैसे की थी.

वैसे, आप इन मंत्रियों को दोष नहीं दे सकते. ‘द न्यू यॉर्कर’ के जिम होल्ट ने 2005 में एक लेख में लिखा था— ‘जब तुम बकवास करके काम चला सकते हो तब झूठ कभी मत बोलना.’ दरअसल वे एरिक एंबलर के एक उपन्यास में बेटे को एक पिता की सीख का हवाला दे रहे थे.

लोकतंत्र के मंदिर संसद में आधा सच या आधा झूठ बोलने के लिए किसी एक मंत्री को हम दोष न दें. आखिर, लोगों को तो कोई शिकायत नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बुलंद है. इसलिए, ‘उत्तर-सत्य’ (बाद के सत्य) दौर की राजनीति की हकीकत को कबूल करना सीखिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(व्यक्त विचार निजी हैं)


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