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Friday, 22 November, 2024
होमइलानॉमिक्सप्याज के निर्यात पर रोक समस्या का हल नहीं, ये किसानों को नुकसान पहुंचाने के साथ बतौर निर्यातक भारत की छवि खराब करेगा

प्याज के निर्यात पर रोक समस्या का हल नहीं, ये किसानों को नुकसान पहुंचाने के साथ बतौर निर्यातक भारत की छवि खराब करेगा

भारी बारिश और फसल की बर्बादी के कारण बढ़ा प्याज का दाम कोविड-19 के चलते घटी आमदनी से पहले से ही परेशान उपभोक्ताओं को और रुला सकता है. 

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केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगाने की अधिसूचना जारी कर दी है. इसकी वजह यह है कि पिछले दो महीने से प्याज की थोक कीमत लगातार बढ़ रही है, खुदरा बाज़ार में यह 35 से 40 रुपये किलो की दर से बिकने लगा है जबकि जून में 25-30 रुपए किलो बिक रहा था.

हाल में इसकी कीमत इसलिए चढ़ गई क्योंकि कर्नाटक में सितंबर के शुरू में बाज़ार भेजे जाने को तैयार प्याज की फसल अगस्त में भारी बारिश के कारण खराब हुई. भारत खाड़ी देशों, श्रीलंका और बांग्लादेश को बराबर प्याज भेजता रहा है. श्रीलंका में इसकी फसल खराब हो जाने के कारण वहां से ज्यादा मांग है.

देश के घरेलू बाज़ार में सप्लाई घटने पर उपभोक्ता खाद्य कीमत सूचकांक (सीपीआई) बढ़ेगा और उपभोक्ताओं को तकलीफ होगी जो कोविड के चलते लॉकडाउन के बाद आमदनी में पहले ही गिरावट से परेशान हैं. प्याज के निर्यात पर रोक प्याज की महंगाई से परेशान उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए लगाई गई है लेकिन इससे किसानों के हितों को चोट पहुंचेगी.


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किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी

सरकार ने किसानों की आय 2024 तक दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है. यह कैसे हासिल होगा? आय में कुछ वृद्धि पैदावार बढ़ाने से आ सकती है तो कुछ वृद्धि पैदावार की कीमत बढ़ाने से आ सकती है. वास्तव में, अगर सप्लाई तेजी से बढ़ती है तो बाज़ार में बाढ़ सी आ जाती है, कीमतें गिरती हैं और किसानों को औने-पौने भाव में अपनी पैदावार बेचने पर मजबूर होना पड़ता है. सड़कों पर टमाटर-प्याज फेंके जाने के दृश्य हाल के वर्षों में खूब सामने आए हैं.

हाल में कृषि पैदावार की मार्केटिंग, कांट्रैक्ट खेती और आवश्यक वस्तुओं के कानून में संशोधन के लिए जो तीन अध्यादेश लाए गए हैं वे किसानों को मुक्त व्यापार करने और बेहतर लाभ दिलाने के लिए ही हैं. सरकार ने हाल में 1 लाख करोड़ रुपये का ‘एग्री इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड’ बनाया है जिसके तहत स्टार्ट-अप्स, किसानों के समूह, कृषि उद्यमी रियायती दर पर ऋण पाकर कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस और दूसरी सुविधाएं खड़ी कर सकेंगे जिनसे पैदावार के बाद के नुकसानों को कम किया जा सके.

ये सारे कदम तो सही दिशा में उठाए गए हैं मगर प्याज के निर्यात पर रोक लगाने से किसानों में असंतोष भड़का है क्योंकि इससे उन्हें नुकसान होगा. प्याज की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव हो रहा है जबकि किसानों को अतिरिक्त सप्लाई और घटी हुई कीमत से घाटा हो रहा है क्योंकि कीमतों की सीमा बांधने या निर्यात पर रोक लगाने से वे फसलों की कमी या अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मांग बढ़ने के कारण कीमतों में उछाल का लाभ नहीं उठा पाते हैं. चूंकि सप्लाई कम है, तब फसल बर्बाद होने से किसानों की कुल आय घट जाती है. ऐसे में कीमत बढ़ने से उनकी भरपाई हो सकती थी.

वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आ गई लेकिन राहत की बात है कि खेती और इससे जुड़ी गतिविधियों में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि पिछले साल इसी तिमाही में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. आम तौर पर मैनुफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र जीडीपी में वृद्धि कराते हैं. लेकिन इस अप्रत्याशित संकट के दौर में कृषि को उम्मीद की किरण के रूप में देखा जा रहा है. बेहतर बुवाई और अच्छे मानसून कृषि में वृद्धि की उम्मीद जगाते हैं लेकिन ‘एग्रीकल्चरल ग्रौस वैल्यू एडेड’ (जीवीए) में टिकाऊ वृद्धि के लिए किसानों को बेहतर कीमतें देना जरूरी है.

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में ज़ोर देकर कहा है कि व्यापार शर्तों को कृषि के लिए अनुकूल बनाना महत्वपूर्ण है. मजबूत कृषि ‘जीवीए’ के लिए अनुकूल व्यापारिक शर्तें जरूरी हैं.


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राजनीतिक मुद्दा

शहरी उपभोक्ताओं की ओर से भारी मांग के कारण प्याज एक राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. लेकिन मौसमी कारणों से उसकी सप्लाई हमेशा प्रभावित होती रही है.

प्याज की कीमत बढ़ने से उपभोक्ताओं को कितना फर्क पड़ता है यह इस पर निर्भर है कि उनके घरों में प्याज की खपत पर कितना खर्च होता है. उपभोक्ताओं के खर्चों के बारे में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वे के आंकड़ों पर आधारित अनुसंधान से पता चलता है कि खानपान पर उनके खर्चों में कमी आई है. 2004-05 से 2011-12 के बीच उपभोक्ताओं ने अनाजों पर खर्च में सबसे ज्यादा कटौती की है. इसके बाद सब्जियों, दालों का नंबर रहा है. दूध, फल, अंडों, मांस-मछली पर अनुपात ऊंचा था.

आवश्यक वस्तु कानून में प्रस्तावित संशोधन से निर्यातकों को निर्यात पर मनमाने प्रतिबंधों से सुरक्षा मिलेगी. दरअसल, ‘फॉरेन ट्रेड (डेवलपमेंट ऐंड रेगुलेशन) एक्ट’ ही मनमानी और अप्रत्याशित प्रतिबंधों का स्रोत रहा है. इस कानून की प्रस्तावना कहती है कि इसका उद्देश्य निर्यातों को बढ़ावा देना है लेकिन यह केंद्र सरकार को सामान के निर्यात पर रोक लगाने, नियंत्रित और प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है.

सरकार ने 2014 से 2019 के बीच प्याज निर्यात के नियमों में 17 बार परिवर्तन किए यानि हर साल औसतन करीब तीन बार. निर्यात करने वाले किसानों के लिए कोई स्थिर नियम नहीं हैं. यह प्याज के भरोसेमंद निर्यातक के रूप में भारत की छवि के लिए घातक है.

और भी कुछ करना होगा

कृषि वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आसान बनाने के लिए कानूनी ढांचे को और बेहतर बनाने की जरूरत है ताकि भारतीय किसान अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भागीदारी कर सकें. निर्यातों पर अक्सर कीमत की सीमा थोप दी जाती है. इस बार तो सरकार ने निर्यात को पूरी तरह से रोक ही दिया है.

उपभोक्ता सब्जियों के लिए ज्यादा कीमतें दे रहे हैं लेकिन इससे किसानों को खास फायदा नहीं हो रहा है. थोक और खुदरा कीमतों में वृद्धि का अंतर सब्जियों और दालों में सबसे ज्यादा रहा है और लॉकडाउन के कारण यह अंतर और बढ़ा ही है. आज जरूरत इस बात की है कि सप्लाई में बाधाओं को दूर किया जाए ताकि खुदरा कीमतें संतुलित हों.

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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