अगर कंगना रानौत का इरादा राजनीति में आने का है और आपको लगता है कि उन्होंने हाल में जो कुछ किया है और जो कुछ उनके साथ हुआ है, उसके बाद राजनीति में वे आते ही छा जाएंगी, तो आपको फिर से सोचना चाहिए. हिंदी फिल्मों की इस अदाकारा ने मणिकर्णिका फिल्म में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का रोल तो निभा लिया, लेकिन वे वास्तविक जिंदगी में इस फिल्म का एक महत्वपूर्ण सबक भूल गईं. सबक ये है कि हर झांसी की रानी को युद्ध के मैदान में झलकारी बाई के साथ की जरूरत होती है.
कंगना ने आरक्षण के खिलाफ बोलकर वह गलती कर दी है, जो भारतीय राजनीति में कोई नहीं करता और जो ऐसी कोई गलती करता है, उसे माफी मांगनी पड़ती है या अपना बयान वापस लेना पड़ता है. कंगना चाहें तो ये बात आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत से सीख सकती हैं, जिन्होंने 2015 में बिहार चुनाव से ठीक पहले आरक्षण की समीक्षा का बयान दिया और उन्हें अपना बयान वापस लेना पड़ा. हालांकि तब तक इसका असर हो चुका था और बीजेपी बिहार का चुनाव गंवा चुकी थी.
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कंगना का राजनीति में कोई उपयोग नहीं
कंगना ने शिव सेना से लेकर महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से पंगा लेने से पहले आरक्षण के खिलाफ बोलकर न सिर्फ देश की बहुसंख्यक आबादी- एससी-एसटी-ओबीसी को नाराज कर दिया है, बल्कि अब वे किसी राजनीतिक पार्टी के लिए उपयोगी भी नहीं रह गई हैं.
आज स्थिति ये है कि कंगना रानौत का ऑफिस टूटा पड़ा है और मुंबई पुलिस उनके ड्रग से संबंधित कथित आरोपों की जांच करने वाली है. इसके अलावा उद्धव ठाकरे के खिलाफ बयानबाजी के लिए उनके खिलाफ पुलिस ने शिकायत भी दर्ज कर ली है. कोई भी सरकार या सरकारी संस्था इतने हाई प्रोफाइल केस में इतनी सख्ती कर पा रही है, तो इसका कारण कहीं न कहीं ये भी है कि कंगना सामाजिक रूप से बहुजनों से अलग थलग खड़ी हैं.
पहली नजर में ये लग सकता है कि बीजेपी उन्हें हाथों हाथ ले लेगी. ऐसी समझ इसलिए बनी है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देखते ही देखते उन्हें Y-प्लस कटेगरी की सुरक्षा प्रदान कर दी और संबित पात्रा उनके बचाव में उतर आए. इसके अलावा उनके ऑफिस में मुंबई नगर निगम द्वारा की गई तोड़फोड़ पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने कहा कि दाऊद इब्राहिम का बंगला क्यों नहीं तोड़ा गया. लेकिन फडनवीस ने स्पष्ट कह दिया कि कंगना रानौत के बयानों से बीजेपी सहमत नहीं है. बीजेपी से बाहर के दलों को देखें तो सिर्फ आरपीआई नेता रामदास आठवले और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ही कंगना के समर्थन में आए हैं.
मेरी कंगना रानौत को सलाह है कि वे अपनी गलती को समझने के लिए अपनी ही फिल्म मणिकर्णिका को दोबारा देखें, खासकर लगभग 5 मिनट के उन सीन को जब पर्दे पर झलकारी बाई आती हैं, जो झांसी की सेना के कमांडरों में से एक थीं. वैसे भी कंगना का जो ऑफिस टूटा है, उसका नाम मणिकर्णिका ही है.
कौन थीं झलकारी बाई
बचपन की मणिकर्णिका और शादी के बाद झांसी की रानी बनी लक्ष्मीबाई ने अपनी आखिरी लड़ाई झांसी के किले के अंदर नहीं लड़ी. जब उन्हें लगा कि अंग्रेज किले में घुस आएंगे तो अपने बेटे और झांसी के सिंहासन के वारिस दामोदर राव को लेकर वे किले से निकल गई थीं. उनकी अनुपस्थिति में भी झांसी की सेना अंग्रजों से लड़ती रहीं. उसी युद्ध की महानायिका थीं झलकारी बाई कोरी. अपने पति पूरन कोरी और तोपची दस्ते के प्रमुख गौस खान आदि के साथ झलकारी बाई ने अदम्य बहादुरी का परिचय दिया, जिसकी चर्चा अंग्रेजों ने भी की है.
उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट में झांसी के युद्ध के बारे में बताते हुए झलकारी बाई और गौस खान का उल्लेख किया है. जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे, तब सरकार ने झलकारी बाई की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया. डाक टिकट के साथ जारी फर्स्ट कवर में झलकारी बाई की वफादारी, वीरता और शौर्य का विशेष उल्लेख है.
एनसीईआरटी की छठी क्लास की हिंदी की टेक्स्ट बुक में झलकारी बाई की वीरता के बारे में एक पूरा चैप्टर है. 2017 में वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम राम नाथ कोविंद, जो स्वयं झलकारी बाई की जाति से आते हैं, ने भोपाल में झलकारी बाई की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया.
राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने भोपाल में रानी लक्ष्मी बाई की सहयोगी झलकारी बाई की प्रतिमा का अनावरण किया। इस अवसर पर राज्यपाल श्री ओम प्रकाश कोहली एवं मुख्यमंत्री @ChouhanShivraj एवं अन्य जन प्रतिनिधि उपस्थित थे। pic.twitter.com/cxBIssyruP
— CMO Madhya Pradesh (@CMMadhyaPradesh) November 10, 2017
झांसी की रानी की फौज में झलकारी बाई और गौस खान का सेनापति पद पर होना बताता है कि लक्ष्मीबाई ने तमाम सामाजिक समूहों को साथ लेकर मोर्चाबंदी की थी. इसलिए झांसी के युद्ध को इतिहास में इतना महत्वपूर्ण माना जाता है. दलितों को सेना में महत्वपूर्ण पद देना एक क्रांतिकारी काम रहा होगा, क्योंकि दलितों का शस्त्र धारण करना शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है.
कंगना सिर्फ नाम की झांसी की रानी हैं
झांसी की रानी के सामाजिक व्यवहार की तुलना में कंगना रानौत ने बिना किसी उकसावे के आरक्षण के खिलाफ बयानबाजी कर दी. इस क्रम में उन्हें बीजेपी के आईटी सेल का समर्थन तो मिला, लेकिन कोई दल उनके साथ नहीं आया. इजाबेल विलकिरसन की किताब – Caste: The Origins of our Discontents के बारे में लिखे एक लेख से संबंधित एक ट्वीट पर उन्होंने आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ धड़ाधड़ कई ट्वीट कर डाले.
Especially in professions like Doctors engineers, pilots most deserving people suffer reservations, we as a nation suffer mediocrity and brilliance finds a reluctant escape to The United States.. Shame
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) August 23, 2020
जाहिर है कि कंगना का ये न तो क्षेत्र है और न ही ये उनके अध्ययन का विषय है और जाहिर है कि उनकी फिल्मों को सभी जाति और वर्ग के लोग देखते हैं, ऐसे में अपने प्रशंसकों के एक वर्ग के अधिकारों के खिलाफ ट्वीट करने का खयाल कंगना को क्यों आया, ये समझना मुश्किल है. लेकिन उन्हें जो करना था वो कर चुकी हैं. हो सकता है कि उन्हें अब अपनी गलती का एहसास हो रहा हो. उन्होंने अपने ताजा ट्वीट में जिस तरह से आगे बढ़कर डॉ. बी.आर. आंबेडकर का जिक्र किया है, उससे तो ऐसा ही लगता है.
Dear respected honourable @INCIndia president Sonia Gandhi ji being a woman arn’t you anguished by the treatment I am given by your government in Maharashtra? Can you not request your Government to uphold the principles of the Constitution given to us by Dr. Ambedkar?
— Kangana Ranaut (@KanganaTeam) September 11, 2020
कंगना जिस तरह से महाराष्ट्र में शिव सेना और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं, वह बीजेपी के नेताओं को पसंद आ रहा होगा. लेकिन बिहार चुनाव सिर पर होने की वजह से ऐसा लगता नहीं है कि बीजेपी कंगना रानौत को चाह कर भी पार्टी में शामिल कर पाएगी या उनके साथ ज्यादा नजर आना चाहेगी.
(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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आज जो भी पत्रकारिता हो रही मैंने तो टेलीविजन में न्यूज देखना ही बंद कर दिया है आपकी न्यूज पढ़ कर अच्छा लगा भारत में आज की तारीख में कोई भी चैनल भारत की सही तस्वीर नहीं दिखा रहा है सिर्फ रिया सुशांत राफेल राममंदिर यही सब रहा गया है भारत में कोरोना के बाद लोगों का रोजगार चला गया कितने लोग रोज सुसाइड कर रहे है l प्राइवेट सेक्टर के लोग आधी सलेरी में काम करने को मजबूर है
क्यू ये सब पर क्यू डिबेट नहीं होती lekin aap news padkar yaisa lagta hai ki abhi bhi patkarita kinda hai
लेखक लगता है कि कांग्रेस या शिव सेना की टिकट लेने वाले है।।
It depends on what is your priority as a nation. Do we need excellence in the field of science and technology or mediocrity? Hence in those fields merit should take precedence over your caste. Bhagavat Geeta does not promote casteism. It speaks of division of labor based on skills.
कृपया गलत जानकारी न फैलाएं।
1) रानी लक्ष्मीबाई ने अपने विश्वासपात्र सेनानायकों के कहने पर महल छोड़ा था।
2) रानी लक्ष्मीबाई ने पहले महल छोड़ कर जाने से मन कर दिया था। लेकिन उनके सेनानायकों के लगातार कहने पर वह जाने को तैयार हो गईं।
3) रानी लक्ष्मीबाई ने जाने के लिए 50 फ़ीट की दीवार से अपने बेटे सहित घोड़े पर छलांग लगाई।कोई आम व्यक्ति ये नही कर सकता है।
4) झलकारीबाई रानी लक्ष्मीबाई की हमसकल थीं।
5) गौस खान रानी लक्ष्मीबाई के महल छोड़ने के पहले शहीद हो गए थे।
6) झाँसी की सेनानायक रघुनाथ सिंह थे।
7) रानी लक्ष्मीबाई ने अपने महल का सोना-चांदी भी तोप के गोले बरसाने के लिए दे दिए।
8) जब अंग्रेजो ने झांसी पर कब्जा कर लिया तब अंग्रेजो के सामने ही रानी लक्ष्मीबाई महल छोड़ कर गईं।
9) झलकारीबाई ने स्वयं रानी से उनकी जगह युद्ध लड़ने की आज्ञा मांगी थी।
10) रानी लक्ष्मीबाई के जाने के पहले ही उनकी सेना ने युद्ध समाप्त कर दिया था।
आप लोग कंगना रनौत के ख़िलाफ़ है इसलिए उन्होंने जिसका रोल किया है उसके बारे में गलत जानकारी दे रहे है। कृपया रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सही जानकारी दें।
घटिया विश्लेषण, मंडल जैसे एंटी हिन्दू, एंटी सवर्ण, कुंठित मानसिकता के व्यक्ति से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है। कँगना के खिलाफ बोलते बोलते ये मूर्ख रानी लक्ष्मीबाई जी के विरुद्ध भी गलत तथ्यों को पेश करके लॉगो को जातीय् तौर पर लड़ाने का काम कर रहा है। ये बहुत ही सादी हुई मानसिकता का व्यक्ति है।
सभी राजनीतिक पार्टियां मौके का फायदा उठाना चाहती हैं
वही मौके का फायदा आज बीजेपी पार्टी उठा रही है l भाई बिहार में चुनाव जो है, आजकल सब क्षेत्र तो सिर्फ राजनीत से जुड़ा है ना? तो फिर कोई भी मुद्दा हो उस पर राजनीति होना तय है l आजकल सही – गलत कौन देखता है आजकल तो सिर्फ हर काम के पीछे स्वार्थ छिपा है, नियम कानून का आजकल कोई मायने नहीं है बस “जिसकी लाठी उसकी भैस” वाली कहावत आज के समय में बिल्कुल फिट बैठती है l चारों तरफ बस अत्याचार ही अत्याचार!
हर जगह पिसती है तो सिर्फ लाचार, गरीब जनता
भाइयों हम तो बस इतना कहेंगे किसी भी मुद्दा को पहले समझो फिर उसपर कोई कार्यवाही करो, बिना सोचे समझे किसी को ओट दोगे तो बाद में पछतावा और दुःख के शिवा कुछ नहीं मिलेगा l
बिहार चुनाव में सही उम्मीदवार को चुनिए और ऐसे ही भविष्य में आने वाले चुनावों में भी कीजिये l
धन्यवाद!