पाकिस्तान के लिए किसी भी संकट के पीछे भारत को दोषी ठहरा देना सबसे आसान विकल्प होता है. एक ऐसा देश जो कठिन परिस्थितियों से निकलने के लिए षड्यंत्र के सिद्धांत पर निर्भर रहता है, वहां लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) असीम सलीम बाजवा के खिलाफ पाकिस्तानी सेना में उनका कद बढ़ने के साथ ही उनका परिवारिक साम्राज्य फैलने का आरोप लगने के बाद इसे भारत की एक बड़ी साजिश करार दिया जाना लाजिमी ही था. लेकिन पाकिस्तान ऐसा करता कैसे है? बहुत ही आसान है: हर तार्किक आलोचना को गद्दारी का जामा पहना दो और इसमें थोड़ा-सा भारत और रॉ को जोड़ दो.
बाजवा तो बहाना है, असल निशाना सीपीईसी है.
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मामले में पाकिस्तान में हमने देखा कि आप तब तक दोषी है जब तक निर्दोष साबित नहीं हो जाते. सत्ता में आने से पहले इमरान खान शरीफ से लंदन में निवेश की रसीदें पेश करने को कहा करते थे. उन्होंने ‘चुराई गई संपत्ति’ के लिए उनसे और उनके परिवार से तलाशी देने तक को कहा. इसके बाद पाकिस्तान में मुख्यधारा की मीडिया ने पैसे के लेन-देने, साक्ष्य, संपत्ति के हस्तांतरण आदि के साथ न जाने क्या-क्या सवाल उठाए.
लेकिन अब वह सब खत्म हो चुका है. इमरान खान सत्ता में हैं तो नियम बदल चुके हैं.
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इसके पीछे की कहानी
27 अगस्त को फैक्ट फोकस ने चार देशों में बाजवा परिवार के व्यवसायों का एक असाधारण लेखा-जोखा प्रकाशित किया, जिसमें पिज्जा फ्रेंचाइजी, कंपनियां, रियल एस्टेट और वाणिज्यिक संपत्तियां शामिल थीं. इस स्टोरी की पुष्टि करने वाले सैकड़ों दस्तावेज होने के बावजूद चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीबीईसी) के चेयरमैन और सूचना मामलों पर प्रधानमंत्री के विशेष सहायक बाजवा के लिए इसे ‘दुर्भावनापूर्ण प्रचार’ कहना बेहद आसान था.
इसके बाद तो साजिश बताने की मानो बाढ़-सी आ गई और पाकिस्तान को बदनाम करने की भारतीय साजिश का रेडीमेड आरोप सामने आया : कैसे एक सेवानिवृत्त भारतीय सैन्य अधिकारी (मेजर गौरव आर्य) ने एक पाकिस्तानी पत्रकार (अहमद नूरानी) को झूठ के जाल में फंसाया’, ‘कैसे’ यहां पर ऑपरेटिव पार्ट बना हुआ है.
लेकिन नियंत्रित मीडिया के ‘देशभक्त’ खोजी यह पूछने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते कि यह कैसे हुआ, उनका काम तो बस किसी बात को ले उड़ना है.
पूरा घटनाक्रम
गौरव आर्य ने 25 जुलाई को अपने एक यूट्यूब शो में दावा किया था कि पाकिस्तान के बाहर बाजवा की पिज्जा फ्रेंचाइजी और अन्य रियल एस्टेट कारोबार है. अब, चूंकि 27 अगस्त को सामने आई स्टोरी-आर्य के शो के बाद आई थी- इसे मिलीभगत का सबूत माना गया. अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सोशल मीडिया पर यह सारी सुगबुगाहट जिसे अब ‘बाजवा लीक्स’ कहा जा रहा, प्रधानमंत्री इमरान खान के सलाहकारों द्वारा 19 जुलाई को अपनी संपत्ति सार्वजनिक किए जाने के बाद से शुरू हुई थी. इसके अलावा, बाजवा ने अपनी घोषणा में कहा था कि उनकी पत्नी की ‘पाकिस्तान के बाहर कोई व्यावसायिक पूंजी’ नहीं है, जो खोजपरक रिपोर्ट का मुख्य आधार है.
लेकिन जब खुलासा करने वाले को आसानी से किनारे किया जा सकता हो तो घटनाक्रम की परवाह कौन करता है. अगर पापा जॉन की फ्रेंचाइजी और भारतीय रॉ के बीच कोई संबंध स्थापित करने की थोड़ी-सी भी संभावना होती, तो पाकिस्तानी स्पिन मास्टर्स अब तक ऐसा कर चुके होते.
एआरवाई न्यूज ने पत्रकार के खिलाफ लगातार अभियान चलाया, नूरानी की तस्वीरों को फ्लैश करते हुए उन्हें एक भारतीय एजेंट तक करार दे दिया गया जो पाकिस्तान के खिलाफ दुष्प्रचार में जुटा है. अभियान कारगर भी साबित हुआ. नूरानी को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. उनके पूर्व नियोक्ता जंग समूह, जिसके मालिक इस समय जेल में हैं, ने एक लेख प्रकाशित करके इमरान खान सरकार से उनकी पाकिस्तानी नागरिकता छीनने तक की मांग कर डाली क्योंकि वह कुछ विदेशी शक्तियों के इशारे पर ‘पाकिस्तान की छवि खराब’ कर रहा था.
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बाजवा को खुली छूट
सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे बाजवा ने प्रधानमंत्री के सलाहकार का पद छोड़ने का फैसला कर लिया, जिसे बाद में ठुकरा दिया गया. लेकिन हाथ धोकर नूरानी के पीछे पड़े लोगों ने यह सोचने की भी जहमत नहीं उठाई कि यदि बाजवा के खिलाफ लगे आरोप भारतीय साजिश का हिस्सा थे तो उन्होंने इस्तीफे की पेशकश क्यों की थी. लेकिन नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि दुनिया के सबसे स्वतंत्र मीडिया को निर्देश था कि इस्तीफे को एक महान मिसाल के रूप ‘सेलिब्रेट’ करें, जिसे पहले किसी नेता ने पेश नहीं किया.
बाजवा पूरे मामले पर एक दिन टीवी पर न्यूज एंकर के साथ नजर आए तो लगा कि वह आरोपों से पूरी तरह हिले भले ही न हों विचलित जरूर हो गए थे. एक शो में उन्होंने एक सवाल पर कॉल ड्रॉप कर दी; दूसरे में वह पैसों के लेन-देन को लेकर किनारा करते नजर आए. उन्होंने उल्टा सवाल ही दाग दिया, ‘कौन-सी मनी ट्रेल’. बाद में तो उन्होंने न्यूज एंकर के साथ कौन बनेगा करोड़पति खेलना शुरू कर दिया, उनसे पूछा कि क्या उनके पास पैसों के लेन-देने के साक्ष्य हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह वही सरकार है जो अपनी और अपने परिवार की संपत्ति को छिपाने के आरोप में उच्चतम न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश जस्टिस काजी फैज ईसा पर मुकदमा चला रही है.
लेकिन प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि वह बिना कागजात के ही बाजवा की सफाई से संतुष्ट हैं और चाहते हैं कि वह पद पर बने रहें. यह उस प्रधानमंत्री के लिए थोड़ा अजीब है, जिसने जवाबदेही सुनिश्चित करने के वादे के बलबूते ही सत्ता हासिल की थी. बाजवा के 64 बिलियन डॉलर के चौकीदार बनने में उन्हें सब ठीक लगना, एक ऐसा बदला हुआ रुख है जिसके लिए लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया था.
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(लेखक पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. विचार उनके निजी हैं.)