नई दिल्ली: केंद्र ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए), 2020 का मसौदा संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत सभी 22 भाषाओं में प्रकाशित करने के उसके निर्देश पर पुन: विचार करने का अनुरोध किया है.
याचिका में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि सरकारी दस्तावेजों को केवल हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित करना जरूरी होता है. उसने दावा किया कि अधिसूचना को कानून के तहत स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित करने की जरूरत नहीं है.
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने शुक्रवार को उन पर्यावरणविद को नोटिस जारी किया जिनकी याचिका पर उसने मसौदा ईआईए का 22 भाषाओं में अनुवाद करने का निर्देश दिया था. अदालत ने उनसे 23 सितंबर तक प्रतिक्रिया देने को कहा है.
पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अदालत को ‘गुमराह’ किया जिसके चलते 30 जून का यह आदेश जारी हुआ.
उच्च न्यायालय ने 30 जून के अपने आदेश में मसौदा ईआईए पर राय एवं आपत्तियां जताने के लिए समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त कर दी थी. उसने यह भी कहा था कि फैसले के दस दिन के भीतर अधिसूचना सभी 22 भाषाओं में प्रकाशित की जाए. यह आदेश पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़े की याचिका पर दिया गया था.
उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ केंद्र ने 28 जुलाई को उच्चतम न्यायालय का रूख किया था.
छह अगस्त को तोंगड़े ने याचिका दायर कर 30 जून के आदेश का अनुपालन नहीं करने पर मंत्रालय के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया था.
शीर्ष न्यायालय ने 13 अगस्त को, इस चरण में याचिका की सुनवाई स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. हालांकि उसने केंद्र को यह छूट दी कि वह 30 जून के उच्च न्यायालय की समीक्षा का अनुरोध कर सकता है.
शीर्ष न्यायालय ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका का निस्तारण होने तक केंद्र के खिलाफ अवमानना कार्रवाई पर रोक भी लगा दी थी.
मंत्रालय की ओर से कहा गया कि अधिसूचना या मसौदा अधिसूचनाओं तथा अन्य आधिकारिक दस्तावेजों को केवल हिंदी और अंग्रेजी में जारी करने की जरूरत होती है. कानून के तहत इन्हें स्थानीय भाषाओं में जारी करना आवश्यक नहीं है.
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