नई दिल्ली: चीन पर निगाह रखते हुए भारत- ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ मिलकर वृहत इंडो-पैसिफिक ढांचे के अंदर ही एक छोटा समूह बनाने जा रहा है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
ये कदम तब उठाया गया है जब नई दिल्ली, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समानांतर सप्लाई चेन की सक्रिय सदस्य बन गई है.
भारत के कूटनीतिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि समूह के लिए ‘आगे का एजेंडा’ तय करने के वास्ते, इन तीन देशों के विदेश मंत्री- भारत के एस जयशंकर, ऑस्ट्रेलिया के मैरिस पेन और इंडोनेशिया के रेतनो मरसूदी- इस महीने के अंत में एक वर्चुअल मुलाकात करेंगे.
मिनीलेटरल के सदस्य देश के एक कूटनीतिज्ञ ने कहा, ‘चीन के उत्थान और आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) के अंदर उसके सत्ता प्रदर्शन ने सबको प्रभावित किया है. इस मिनीलेटरल का मकसद निश्चित तौर पर क्षेत्र के एक समान सोच वाले देशों के बीच सुरक्षा कड़ियों का नेटवर्क बनाकर चीन के खिलाफ खड़ा होना है’.
सूत्रों का कहना है कि ये ग्रुप इंडोनेशिया के दिमाग की उपज है और इसे इंडो-पैसिफिक सेटअप के भीतर कुछ देशों का नेटवर्क बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया जा रहा है ताकि चीन के बढ़ते लड़ाकू तेवर काबू में रखे जा सकें और एक वैकल्पिक सैन्य तथा आर्थिक गठबंधन तैयार हो सके.
पिछले हफ्ते एक ट्वीट में मरसूदी ने कहा, ‘ऑस्ट्रेलिया के एफएम @MarisePayne से फोन पर अच्छी बात हुई. कई विषयों पर बात हुई, जिनमें कोविड-19 सहयोग, इंडोनेशाया, ऑस्ट्रेलिया व भारत के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय मीटिंग और साथ ही 2+2 इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया मीटिंग शामिल हैं.
Good phone call with FM @MarisePayne of Australia ??(26/08).
Discussed various issues including Covid-19 cooperation, upcoming Trilateral Foreign Ministers Meeting Indonesia – Australia and India; as well as 2+2 Indonesia – Australia meeting. pic.twitter.com/IQ4GdZiNLg
— Menteri Luar Negeri Republik Indonesia (@Menlu_RI) August 26, 2020
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‘चीन के खिलाफ साझेदारी को मज़बूत करना’
इंडोनेशिया और भारत ने सबसे पहले 2013 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिंद महासागर तटीय सहयोग संघ के तहत ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक त्रिपक्षीय बनाने का विचार पेश किया था. लेकिन उस समय वो आगे नहीं बढ़ सका था.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फैलो एंड हेड (न्यूक्लियर एंड स्पेस पॉलिसी इनीशिएटिव), राजेश्वरी पिल्लई राजगोपालन ने कहा, ‘इस मिनीलेटरल का असली एजेंडा चीन के खिलाफ क्षेत्रीय साझेदारी को मज़बूत करना है. वो सब देश जो चीन की आक्रामकता को झेल रहे हैं, अब एक साथ आ रहे हैं. चाइना फेक्टर अब बहुत अहम हो गया है’.
राजगोपालन ने कहा, ‘इन देशों के अंदर सैन्य क्षमताएं हैं लेकिन अब समय इसका है कि कूटनीतिक क्षमताओं का एक नेटवर्क तैयार किया जाए जिनके निशाने पर चीन हो क्योंकि आपके पास भले ही कितने भी राफेल लड़ाकू विमान हों, चीन के खिलाफ आपको एक सीधे और स्पष्ट एजेंडे की ज़रूरत है’.
उन्होंने कहा कि भारत अब ऐसे मिनीलेटरल समूहों का हिस्सा बनने को तैयार है जिसमें अमेरिका मौजूद न हो, चूंकि नई दिल्ली नहीं चाहती कि उसे वॉशिंगटन के सहयोगी के रूप में देखा जाए. उन्होंने आगे कहा, ‘बेशक, इंडो-पैसिफिक में अमेरिका की एक अहम भूमिका है जिसके बिना उसका कोई प्रभाव नहीं होगा. लेकिन मिनीलेटरल्स भी अच्छे हैं, कुछ न होने से तो बेहतर ही है’.
ये मिनीलेटरल्स समान सोच वाले देशों के छोटे समूह हैं जो वृहत इंडो-पैसिफिक सेटअप के भीतर अपने खुद के गठबंधन बना रहे हैं.
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चीन को घेरने के ऑस्ट्रेलिया के कदम
कोविड-19 प्रकोप के बाद चीन के साथ तेज़ी से बिगड़ते अपने रिश्तों के बीच ऑस्ट्रेलिया ने ऐसे मिनीलेटरल्स स्थापित करने में पहल की है. उसने कोरोनावायरस की जड़ में जाने के लिए जांच की भी मांग की थी.
जुलाई में कैनबरा और बीजिंग के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र ऑस्ट्रेलिया ने एक नई आक्रामक रक्षा रणनीति से पर्दा उठाया. एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए उसने अपना रक्षा बजट 40 प्रतिशत बढ़ा दिया.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में नेशनल सिक्योरिटी कॉलेज के प्रमुख रोरी मेडकॉफ ने कहा, ‘भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों की इंडो-पैसिफिक रणनीति का फोकस अब ओवरलैपिंग त्रिकोणों का एक जाल बनाने पर है. भारत, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया अब अपने अधिकारियों से भौगोलिक रूप से मिले हुए इलाकों की समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करा रहे हैं’.
मेडकॉफ ने कहा, ‘अगर आप गौर करें तो भारत और ऑस्ट्रेलिया साथ मिलकर इस क्षेत्र के समुद्री मार्गों की एक प्रभावी ऑपरेटिंग तस्वीर बनाकर इंडोनेशिया की मदद कर सकते हैं…सच्चाई तो ये है कि ऑस्ट्रेलिया, भारत और इंडोनेशिया जैसे क्षेत्रीय साझीदारों के बीच मज़बूत सहयोग, अमेरिकी गठबंधन सिस्टम का पूरक बनेगा और अमेरिकियों को इसमें बने रहने के लिए प्रोत्साहित करेगा क्योंकि हम बाकी देश भी क्षेत्रीय सुरक्षा के बोझ को साझा करने की अपनी इच्छा का इज़हार कर रहे होंगे’.
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भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया त्रिकोण, क्वॉड भी पकड़ रहा तेज़ी
एक और मिनीलेटरल जो तेज़ी से बढ़ रहा है वो है भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया ग्रुप, जो एक वैकल्पिक सप्लाई चेन बना रहा है और जिसके व्यापारिक और निवेश के रिश्तों में चीन को किनारे किया जा रहा है.
मंगलवार को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अपने ऑस्ट्रेलियाई व जापानी समकक्षों- साइमन बर्मिंघम और काजियामा हिरोशी के साथ एक वीडियो कॉनफ्रेंस की जिसमें इंडो-पैसिफिक रीजन में मज़बूत सप्लाई चेन नेटवर्क्स बनाने की ज़रूरत पर चर्चा की गई.
एक संयुक्त विज्ञप्ति में इन देशों ने कहा कि उन्होंने तय किया है कि ‘इंडो-पैसिफिक रीजन में सप्लाई चेन्स के लचीलेपन को बढ़ाया जाएगा’ और व्यापार व निवेश के लिए एक ऐसा वातावरण बनाया जाएगा जो मुक्त, निष्पक्ष, समावेशी, भेदभाव रहित, पारदर्शी और पूर्वानुमेय होगा’ और ‘उनके बाज़ार खुले रखेगा’.
कंटेस्ट फॉर दि इंडो-पैसिफिक: व्हाई चाइना वोंट मैप द फ्यूचर नामक किताब के लेखक मेडकॉफ ने कहा, ‘भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया की रिश्ते इन तीनों देशों के एक विश्वसनीय रणनीतिक डायलॉग पर आधारित है जो वो कई वर्षों से करते आ रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘समय के साथ इन सारे सुरक्षा त्रिकोणों में विश्वास और व्यवहारिक सहयोग का एजेंडा शामिल हो जाएगा- जो संभावित रूप से विस्तृत होते हुए महामारी प्रतिक्रिया, सप्लाई चेन्स, टेक्नोलॉजी, इंटेलिजेंस वगैरह को भी शामिल कर लेगा. इसलिए हम इंडो-पैसिफिक के एक लंबे खेल की शुरूआत में हैं’.
इस बीच अमेरिका भी भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया को पुश कर रहा है कि वो क्वॉड सिक्योरिटी डायलॉग के अंदर ज़्यादा सक्रिय हों जो चीन को रोकने की कोशिश में एक ‘औपचारिक’ शक्ल लेकर जोर पकड़ रहा है.
सोमवार को अमेरिका के डिप्टी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट स्टीफन बीगन ने कहा कि दिल्ली में क्वॉड के मंत्रियों की एक बैठक की योजना बन रही है जो इस महीने या अक्टूबर के शुरू में होने की संभावना है.
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