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Thursday, 25 April, 2024
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500 वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने मंत्रालय को बताया कि कैसे EIA मसौदा ‘पर्यावरण सुरक्षा के लिए खतरा’ है

पर्यावरण मंत्रालय को लिखे खुले पत्र में शोधकर्ताओं ने कहा है कि पर्यावरण इम्पैक्ट असेसमेंट संबंधी मसौदा अधिसूचना को वापस लिया जाना चाहिए, इसकी जगह पर्यावरण संबंधी फैसलों के लिए एक बेहतर और समावेशी प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए.

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नई दिल्ली: पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन (ईआईए) संबंधी अधिसूचना 2020 के मसौदे को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त करने के लिए बुधवार को 130 से अधिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के 500 शिक्षाविद, वैज्ञानिक और शोधकर्ता एक साथ आ गए.

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को संबोधित पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं ने मंत्रालय से ईआईए अधिसूचना वापस लेने की मांग की और साथ ही कहा कि इसकी जगह 2006 की ही ईआईए अधिसूचना को कुछ नए प्रस्तावों के साथ सशक्त बनाया जाए.

पत्र में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र (एनसीबीसीएस) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) आदि से जुड़े लोगों के हस्ताक्षर हैं.

इसमें कहा गया है, ‘यह मसौदा अधिसूचना ईआईए प्रक्रिया मजबूत करने के बजाए पर्यावरण की कीमत पर औद्योगीकरण को बढ़ावा देती है.’

प्राकृतिक संसाधनों के नियमन से जुड़े फैसलों में सरकार को ज्यादा विवेकाधीन शक्तियां देने को लेकर इस ईआईए मसौदे की पिछले कुछ महीनों में अन्य समूहों की तरफ से भी आलोचना की गई है.

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बुधवार को लिखे खुले पत्र में पर्यावरण संबंधी फैसले लेने की एक बेहतर और समावेशी प्रक्रिया की जरूरत बताई गई है. इसमें यह भी कहा गया कि ईआईए अधिसूचना का सीमित सर्कुलेशन व प्रचार और इसका अधिकांश भारतीय भाषाओं में उपलब्ध न होना ‘सही मायने में सार्वजनिक स्तर पर सबकी भागीदारी’ को बाधित करता है.

पत्र में तर्क दिया गया कि ग्रामीण भारत का जनजातीय समुदाय, जो आमतौर पर विकासात्मक परियोजनाओं से सबसे अधिक प्रभावित होता है, सुविधा और तकनीकी पहुंच की कमी के कारण सार्वजनिक स्तर पर जारी परामर्श की प्रक्रिया में हिस्सा लेने में सक्षम नहीं रहा.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने यह भी कहा कि मसौदा अधिसूचना अपने मौजूदा स्वरूप में ‘हमारे देश की पारिस्थितिकी और पर्यावरण सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है’, क्योंकि यह न तो पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उद्देश्यों को पूरी करती है और न ही अन्य तमाम अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लेकर भारत की प्रतिबद्धता को.

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत, भारत ने 1994 में पहली बार पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के मानदंड तय किए थे. ये मानदंड देश में प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और उसे प्रभावित करने वाली गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा निर्धारित करते हैं. हर नई विकास परियोजना को ईआईए प्रक्रिया के तहत पर्यावरणीय मंजूरी लेनी होगी.

नई मसौदा अधिसूचना ईआईए पर 1994 में तय मानदंडों के 2006 वाले संशोधित संस्करण में बदलाव करने से जुड़ी है. ईआईए मसौदे पर उठाए गए मुद्दों में सार्वजनिक सहभागिता को सीमित करना, परियोजना को सार्वजनिक परामर्श से छूट देना और सरकार को यह तय करने का अधिकार देना कि कौन-सी परियोजनाएं रणनीतिक हैं जिनके बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी, आदि शामिल हैं.


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‘भारत को पारिस्थितिकी के अनुरूप विकास उपायों की जरूरत’

पत्र में ईआईए के मसौदे से जुड़ी सात मुख्य चिंताओं को सूचीबद्ध किया गया है जिसमें ‘एक्स पोस्ट फैक्टो’ पर्यावरण मंजूरी को वैध करना और बिना मंजूरी काम शुरू करने वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करना शामिल है.

अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को पब्लिक कंसल्टेशन से बाहर रखना और कंपनियों की क्लियरेंस के बाद की निगरानी घटाना भी एक अन्य प्रमुख चिंता में शामिल है.

वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2020 में भारत के खराब प्रदर्शन (यह 180 देशों में से 168वें स्थान पर था) का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया है कि भारत को ‘तत्काल प्रो-इन्वायरमेंट और पारिस्थितिकी के लिहाज से मज़बूत विकास उपायों’ की जरूरत है जिस पर ईआईए के मसौदे में कोई चर्चा नहीं की गई है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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