कांग्रेस के पास आज एक नई शुरुआत और बदलाव करने का अवसर था. लेकिन दुर्भाग्यवश पार्टी के लिए सीडब्ल्यूसी की बैठक में आत्मचिंतन की बात धोखा साबित हुई जो कि पूर्वानुमानित था और बदलव की बात गांधी परिवार के लिए एक अपमान की तरह था.
आजादी के पहले हर साल कांग्रेस की सालाना अधिवेशन में नए अध्यक्ष का चुनाव होता था, आजादी के बाद भी गैर नेहरू गांधी परिवार से अध्यक्ष चुना जाता रहा 1978 तक। उसके बाद नरसिम्हा राव के 5 साल और सीताराम केसरी के 3 साल हटा दें तो 34 साल अध्यक्ष पद पर नेहरू गांधी परिवार का कब्जा रहा है 1978 से अबतक। शायद यही कारण है कि कांग्रेस आम जनता के मन से दूर हट गई और एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई है। और इसके लिए जिम्मेदार हैं वही गुलामी करने वाले लोग जिन्हें भक्त लोग चमचा कहते हैं। जिसमें सबसे बड़े वाले हैं दिग्गी राजा।
यदि अब भी कांग्रेस परिवारवादी सोच से बाहर नहीं निकली तो अस्तित्व ख़त्म ही है।
हमें हर पार्टी चाहिए इस देश में , क्योंकि सभी पार्टियाँ स्वाभाविक रूप से उपजी हुई हैं, जिन्हें जनता ने समय की मांग के अनुरूप आगे बढ़ाया है। जो पार्टी जनमासम में यह विचार निरूपित नहीं कर पाएगी कि ” यह पार्टी हमारे जैसे आम जन की ही पार्टी है ” वह अस्तित्व विहीन हो जाएगी। जनता को जब लगता है कि यह पार्टी अब आम नहीं बल्कि विशेष हो गई है तो जनता उसको निपटा देती है। इसलिए लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।
आजादी के पहले हर साल कांग्रेस की सालाना अधिवेशन में नए अध्यक्ष का चुनाव होता था, आजादी के बाद भी गैर नेहरू गांधी परिवार से अध्यक्ष चुना जाता रहा 1978 तक। उसके बाद नरसिम्हा राव के 5 साल और सीताराम केसरी के 3 साल हटा दें तो 34 साल अध्यक्ष पद पर नेहरू गांधी परिवार का कब्जा रहा है 1978 से अबतक। शायद यही कारण है कि कांग्रेस आम जनता के मन से दूर हट गई और एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई है। और इसके लिए जिम्मेदार हैं वही गुलामी करने वाले लोग जिन्हें भक्त लोग चमचा कहते हैं। जिसमें सबसे बड़े वाले हैं दिग्गी राजा।
यदि अब भी कांग्रेस परिवारवादी सोच से बाहर नहीं निकली तो अस्तित्व ख़त्म ही है।
हमें हर पार्टी चाहिए इस देश में , क्योंकि सभी पार्टियाँ स्वाभाविक रूप से उपजी हुई हैं, जिन्हें जनता ने समय की मांग के अनुरूप आगे बढ़ाया है। जो पार्टी जनमासम में यह विचार निरूपित नहीं कर पाएगी कि ” यह पार्टी हमारे जैसे आम जन की ही पार्टी है ” वह अस्तित्व विहीन हो जाएगी। जनता को जब लगता है कि यह पार्टी अब आम नहीं बल्कि विशेष हो गई है तो जनता उसको निपटा देती है। इसलिए लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।