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Friday, 1 November, 2024
होमदेशअपराधछत्तीसगढ़ में माओवादियों ने सामूहिक पिटाई की तो विरोध में उतरे दंतेवाड़ा के ग्रामीण- दर्ज कराई FIR, पुलिस बोली- ऐसा पहली बार हुआ है

छत्तीसगढ़ में माओवादियों ने सामूहिक पिटाई की तो विरोध में उतरे दंतेवाड़ा के ग्रामीण- दर्ज कराई FIR, पुलिस बोली- ऐसा पहली बार हुआ है

2018 से 2020 के बीच नक्सलियों ने बस्तर में ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई की चार बार की है, लेकिन पिछले एक महीने में हुई तीन पिटाई के खिलाफ गांव वालों ने एफआईआर दर्ज कराई है.

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रायपुर: नक्सली प्रभावित छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में रहने वाले गांव वालों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है. अब ये ग्रामीण खुलकर नक्सलियों के खिलाफ सामने आ रहे हैं. पुलिस और प्रशासन का साथ देने वालों के खिलाफ नक्सलियों ने सामूहिक पिटाई की तो गांव वाले भी खुलकर सामने आए और उन्होंने माओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है.

दंतेवाड़ा पुलिस के अनुसार, पिछले महीने नक्सलियों ने चिकपाल, परचेली और नहाड़ी गांव में ग्रामीणों को सामूहिक रूप से पीटा था.

ग्रामीणों द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, पहली एफआईआर भी कटेकल्याण थाने के परचेली गांव में 17 जुलाई को माओवादियों द्वारा ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई के मामले में दर्ज कराई थी. इसमें ‘7 नामजद और कई अज्ञात माओवादियों’ के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. पुलिस के अनुसार माओवादियों ने परचेली के कुछ 10-15 ग्रामीणों के जनानांगों पर मारा था जिसके कारण उन्हें चलने में भी कठिनाई हो रही थी.

बाद में पीड़ितों को पुलिस द्वारा जिला अस्पताल पहुंचाया गया.

दूसरी एफआईआर 24 जुलाई को अरनपुर पुलिस थाने में नहाड़ी गांव के ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई के मामले में दर्ज की गयी थी. यह केस ’11 नक्सलियों के खिलाफ नामजद और कुछ अज्ञात के खिलाफ दर्ज किया गया है.’

सामूहिक बर्बरता की घटनाएं जिनमें माओवादियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई हैं उनमें हालिया वारदात 19 अगस्त को कटेकल्याण थाने के चिकपाल गांव की है. माओवादियों ने 19 अगस्त की रात में चिपकल के करीब 20-25 ग्रामीणों की बेरहमी से पिटाई की थी जिनमें 10 की हालात काफी खराब हो चली थी. इनमें 12 साल की एक नाबालिग और 25 साल की लड़की शामिल है.

25 साल लड़की की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार नक्सलियों ने उसे बड़ी क्रूरता से पीछे पैरों के ऊपर और कमर के नीचे मारा था. इसके विरोध में उसके पिता ने 25 माओवादियों के खिलाफ नामजद एफआईआर 20 अगस्त को दर्ज कराई.

चिकपाल गांव में 19 अगस्त की रात में हुई नक्सली सामूहिक पिटाई की घटना के शिकायतकर्ता पिता और उनके परिवार की जान को खतरा अब बढ़ गया है. उनके 30 वर्षीय बेटे बावन मरकाम जिसको माओवादियों के आने से पहले गांव से भागना पड़ा.

बावन ने बताया, ‘मै 19 अगस्त की रात में घर छोड़कर जंगल के रास्ते भागकर गांव से 10 किलोमीटर कटेकल्याण आ गया. तभी से यही पर रह रहा हूं क्योंकि गांव में पूरे परिवार को जान का खतरा है. मेरे माता पिता ने भी गांव वापस आने ने मना कर दिया है. वे कह रहे हैं कि माओवादी भले उन्हें जान से मार दें लेकिन मुझे घर वापस नही आना है.’

मरकाम ने आगे बताया, ‘गांववालों की नक्सलियों द्वारा सामूहिक पिटाई उनके द्वारा सड़क, स्कूल और अच्छे घर की मांग करने के खिलाफ हुई है.’

मारकर के अनुसार, ‘मेरे परिवार के साथ सभी गांववालों ने 15 अगस्त के दिन झंडा वंदन के लिए आए दंतेवाड़ा एसपी अभषेक पल्लव के सामने रखा था. इस बात की जानकारी किसी ने माओवादियों को दे दी जिसके बाद उन्होंने गांव पर हमला कर दिया. इस हमले में मेरे माता-पिता और दो बहनों की बुरी तरह से पिटाई हुई थी. वे मेरे पिता से 4000 रुपए और एक मोबाइल फोन भी छीनकर ले गए.’

मरकाम ने दिप्रिंट को बताया, ‘दूसरे ग्रामीण जिनकी पिटाई हुई थी ने नक्सलियों का दबी जुबान से पूरा विरोध किया था लेकिन केस दर्ज कराने की हिम्मत किसी ने नही की. मैं वापस नहीं जा सकता. हालांकि, ग्रामीण अब धीरे धीरे माओवादियों से दूर जाने लगे हैं. रात में पुलिस द्वारा सुरक्षा दी जा रही है लेकिन परिवार की जान को खतरा बना हुआ है.’

हालांकि पुलिस ने अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं की है.


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माओवादियों के खिलाफ सामने आए गांव वाले

दंतेवाड़ा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉक्टर अभषेक पल्लव का कहना है, ‘ऐसा पहली बार हुआ कि ग्रामीणों ने नक्सली हिंसा के विरोध में केस दर्ज कराया हैं. इतना ही नही एफआईआर दर्ज कराकर ये ग्रामीण अपने गांव वापस भी जा रहें हैं जो पहले संभव नही था.

पल्लव ने यह भी कहा ,’सितंबर 2018 को दंतेवाड़ा के फूलपद गांव में नक्सलियों ने ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई की पहली वारदात को अंजाम दिया जिसमें 15-20 लोगों को बड़ी बेरहमी से मारा था. लेकिन किसी पीड़ित ने हमारे समझाने के बावजूद भी केस दर्ज नही कराया था. वहीं 17 जुलाई और 19 अगस्त 2020 के बीच हुई तीनों घटनाओं के विरोध मैं ग्रामीण ने नक्सलियों के विरुद्ध एफ आईआर दर्ज कराया है.’

बता दें की फुलपद की घटना को काफी मीडिया पब्लिसिटी मिली थी जिसके बाद शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्तओं की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने गांव जाकर घटना की जांच की थी. यह टीम ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई के कारणों का पता लगाने आई थी.

फैक्ट फाइंडिंग टीम, जिसमें जानी मानी शिक्षाविद बेला भाटिया भी शामिल थी, ने जांच में टिप्पणी करते हुए कहा कि,’गामीणों के बताए अनुसार माओवादी उनसे सरकार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों में जुड़ने से नाराज चल रहे थे. उदाहरण के लिए प्रधामनंत्री ग्रामीण आवास योजना के गृह निर्माण कार्य, एप्रोच रोड का निर्माण और स्थानीय प्रशासन द्वारा क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन जिसमें भाजपा का एक नेता शामिल था.”

पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, ‘2018 से 2020 के बीच नक्सलियों ने बस्तर में ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई की चार घटनाओं को अंजाम दिया जिसमें अंतिम तीन पिछले करीब एक महीनों के दौरान हुई हैं.’

अधिकारियों ने यह भी बताया ‘ माओवादियों की सामूहिक पिटाई के शिकार गांव के हर वर्ग के लोग हैं. इनमें महिलाएं और नाबालिग लड़कियां भी हैं.’ अधिकारियों के अनुसार पहली घटना को छोड़कर ग्रामीणों ने तीनों वारदातों में कई नक्सलियों के खिलाफ नामजद केस दर्ज कराया है. केस दर्ज करवाने से पहले पीड़ितों ने अपना मेडिकल परीक्षण कराकर रिपोर्ट भी थाने में जमा करवाई है.’

बस्तर और दंतेवाड़ा के वरिष्ट पुलिस अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों द्वारा ग्रामीणों को प्रताड़ित करना कोई नई बात नही है लेकिन उनके द्वारा ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई और बर्बरता अपना वर्चस्व बनाए रखने का अब एक नया तरीका है. हालांकि सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि ग्रामीणों द्वारा माओवादियों की खिलाफत और अपने गांव बिना रोक टोक वापस लौट जाना यह दर्शा रहा है कि नक्सलियों की ग्रामीणों पर पकड़ कमजोर हो रही है. उनके अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि माओवादियों ने सामूहिक पिटाई की घटनाओं को अंजाम अपने गढ़ वाले क्षेत्रों में दिया है और वहीं पर ग्रामीणों ने भी जवाब में केस दर्ज कराया है.

बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि माओवादियों की पकड़ वाले कई क्षत्रों में सुरक्षाबलों की पहुंच बढ़ने के कारण ग्रामीणों का भी आत्मबल बढ़ा है. सुंदरराज कहते हैं, ‘पिछले कुछ सालों में पुलिस ने माओवादियों के गढ़ में अपनी पहुंच बढ़ाई है. जिन गांवों में माओवादियों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं वहां पिछले कुछ सालों में सुरक्षाबलों ने अपने नए कैम्प स्थापित किए हैं. इससे गावों में सुरक्षाबलों के प्रति विश्वास बढ़ा है और माओवादियों के प्रति सहानुभूति रखनेवाले लोगों की तादात कम हुई है.’


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बस्तर और दंतेवाड़ा के वरिष्ट पुलिस अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों द्वारा ग्रामीणों को प्रताड़ित करना कोई नई बात नही है लेकिन उनके द्वारा ग्रामीणों की सामूहिक पिटाई और बर्बरता अपना वर्चस्व बनाए रखने का अब एक नया तरीका है.

हालांकि, सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि ग्रामीणों द्वारा माओवादियों की खिलाफत और अपने गांव बिना रोक टोक वापस लौट जाना यह दर्शा रहा है कि नक्सलियों की ग्रामीणों पर पकड़ कमजोर हो रही है. उनके अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि माओवादियों ने सामूहिक पिटाई की घटनाओं को अंजाम अपने गढ़ वाले क्षेत्रों में दिया है और वहीं पर ग्रामीणों ने भी जवाब में केस दर्ज कराया है.

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