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Friday, 22 November, 2024
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कांग्रेस के बाद विपक्षी पार्टियों का फेसबुक पर हमला, कंपनी बोली-हिंसा को बढ़ावा देने वाले भाषणों रोकते हैं

फेसबुक ने अपने बयान में कहा है कि हिंसा को बढ़ावा देने वाले भाषणों और सामग्री पर रोक लगाते हैं. हम वैश्विक स्तर पर इन नीतियों को लागू करते हैं. इसमें किसी राजनीतिक दल या विचारधारा का ध्यान नहीं दिया जाता.'

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नई दिल्ली: सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक एकबार फिर निशाने पर है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक खबर को लेकर सोमवार को फेसबुक निशाने पर आ गयी तथा कांग्रेस एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस समाचार की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग की कि फेसबुक भाजपा के कुछ नेताओं को लेकर घृणा भाषणों के नियमों को लागू नहीं करती.

हालांकि सोशल मीडिया की इस दिग्गज कंपनी ने जोर देकर कहा कि उसकी नीतियां वैश्विक रूप से बिना राजनीतिक जुड़ाव देखे लागू की जाती हैं.

कांग्रेस ने कहा कि फेसबुक द्वारा घृणा से भरी सामग्री के खिलाफ ‘कार्रवाई नहीं करने’ से भारत में ‘लोकतंत्र अस्थिर’ हो रहा है और यह कि वह विभिन्न देशों में विभिन्न नियम लागू कर रही है, ‘बिल्कुल अस्वीकार्य’ है.

इस विवाद के बीच भारत में फेसबुक की वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी आंखी दास ने दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि इस खबर के बाद उन्हें ‘जान से मारने की धमकी’ मिल रही है और उन्हें जानबूझकर बदनाम किया गया है.

सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि समिति रिपोर्ट के बारे में फेसबुक का पक्ष जानना चाहेगी. उसके बाद दिल्ली विधानसभा की एक समिति ने भी कहा कि भारत में नफरत भरी सामग्री पर अंकुश लगाने में जानबूझकर निष्क्रियता बरतने की शिकायतों को लेकर वह दास समेत फेसबुक के अधिकारियों को तलब करेगी.


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फेसबुक की सफाई

फेसबुक ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कंपनी के सोशल मीडिया मंच पर नफरत या द्वेष फैलाने वालों ऐसे भाषणों और सामग्री पर अंकुश लगाया जाता है, जिनसे हिंसा फैलने की आशंका रहती है.

कंपनी ने कहा कि उसकी ये नीतियां वैश्विक स्तर पर लागू की जाती हैं और इसमें यह नहीं देखा जाता कि यह किस राजनीतिक दल से संबंधित मामला है.

भारत को अपना प्रमुख बाजार मानने वाली फेसबुक ने साथ ही यह स्वीकार किया है कि वह नफरत फैलाने वाली सभी सामग्रियों पर अंकुश लगाती है, लेकिन इस दिशा में और बहुत कुछ करने की जरूरत है.

अमेरिकी अखबार ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने शुक्रवार को प्रकाशित रिपोर्ट में फेसबुक के अनाम सूत्रों के साथ साक्षात्कारों का हवाला दिया है. इसमें दावा किया गया है कि उसके एक वरिष्ठ भारतीय नीति अधिकारी ने कथित तौर पर सांप्रदायिक आरोपों वाली पोस्ट डालने के मामले में तेलंगाना के एक भाजपा विधायक पर स्थायी पाबंदी को रोकने संबंधी आंतरिक पत्र में दखलंदाजी की थी.

फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हम हिंसा को बढ़ावा देने वाले भाषणों और सामग्री पर रोक लगाते हैं. हम वैश्विक स्तर पर इन नीतियों को लागू करते हैं. इसमें किसी राजनीतिक दल या विचारधारा का ध्यान नहीं दिया जाता.’

अधिकारी ने कहा, ‘हम जानते हैं कि अभी और बहुत कुछ करने की जरूरत है, हम प्रवर्तन की दिशा में प्रगति कर रहे हैं. किसी तरह के पक्षपात को रोकने के लिए हम नियमित रूप से अपनी प्रक्रियाओं का ऑडिट करते हैं.’

विपक्षी दल भी कांग्रेस के साथ

कांग्रेस की मांग से इत्तेफाक जताते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की बात कही है.

वामपंथी दल ने एक बयान में कहा, ‘माकपा पोलित ब्यूरो फेसबुक की भूमिका खासकर भारत के संदर्भ में इसके कामकाज की कड़ी निंदा करता है, जैसा कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खुलासा किया है. फेसबुक सांप्रदायिक नफरत वाली सामग्रियों के संदर्भ में खुद की तय नीति का पालन नहीं कर रहा है.’

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि भारत दुनिया में सबसे संपन्न लोकतंत्र है और कोई भी संगठन लोकतांत्रिक जड़ों को कमजोर करता है तो उससे सवाल पूछा जाएगा. उसकी जवाबदेही बनेगी.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘पूरी जिम्मेदारी से मैं यह कहूंगी कि फेसबुक जो कर रहा है वो भारत की जड़ों को कमजोर कर रहा है. अक्सर कोई कार्रवाई नहीं की जाती और उससे भी बुरा यह है कि संज्ञान में लाए जाने के बावजूद वह द्वेषपूर्ण सामग्री को अपने मंच से नहीं हटाता है.’

श्रीनेत ने दावा किया कि अलग-अलग देशों के लिए फेसबुक के अलग-अलग नियम हैं जो ‘स्वीकार्य नहीं हैं.’

उन्होंने आरोप लगाया कि अलग-अलग देशों के लिए फेसबुक ने अपनी सहूलियत के मुताबिक भिन्न-भिन्न नियम बनाए हैं.

श्रीनेत ने आरोप लगाया, ‘भारत में बाहरी शिकायतों और उनके अपने न्यास और सुरक्षा दल द्वारा लाल झंडी दिखाए जाने के बावजूद द्वेषपूर्ण सामग्री को इरादतन जारी रहने दिया गया.’

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया कंपनी ने भारत में अफवाहों और द्वेषपूर्ण सामग्री को रोकने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए.

श्रीनेत ने दावा किया, ‘ दूसरे देशों में आपत्तिजनक पोस्ट होने पर फेसबुक के पेज हटाए जाते हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं किया गया. हमारे यहां भी नफरत भरी बातें, महिलाओं, समुदाय विशेष, जाति विशेष के खिलाफ बातें की जाती हैं. लेकिन आप (फेसबुक) हाथ खड़ा कर देते हैं.’

उन्होंने सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वॉल स्ट्रीट जर्नल में आई खबर पर प्रतिक्रिया देने की बजाय वह कांग्रेस पार्टी पर निशाना साध रही है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसी मामले को लेकर रविवार को भाजपा और सरकार पर निशाना साधा था. इस पर पलटवार करते हुए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्षी दल को कैंब्रिज एनालिटिका मुद्दे की याद दिलाने का प्रयास किया.

श्रीनेत ने कहा कि फेसबुक से इतर अफवाह, गलत जानकारी और द्वेषपूर्ण भाषण जो व्हाट्सऐप पर बिना किसी रोकटोक जारी होते हैं वे ज्यादा नुकसानदेह हैं.

थरूर की इस टिप्पणी के बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने ट्वीट कर कहा कि समिति को सदस्यों द्वारा ‘अपने-अपने दलों के अहम की संतुष्टि’ के साधन का मंच नहीं बनाया जाना चाहिए.


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तृणमूल कांग्रेस की सांसद और सूचना प्रौद्योगिकी समिति की सदस्य महुआ मोइत्रा और थरूर ने दुबे की टिप्पणी की निंदा की.

इस बीच, शांति और सौहार्द पर दिल्ली विधानसभा की एक समिति ने सोमवार को कहा कि वह सोशल मीडिया मंच फेसबुक के खिलाफ भारत में ‘जानबूझकर और इरादतन द्वेषपूर्ण सामग्री को लेकर कार्रवाई नहीं करने’ के आरोपों पर उसके अधिकारियों को तलब करेगी.

आधिकारिक बयान में कहा गया, ‘फेसबुक के संबंधित अधिकारियों और सबसे महत्वपूर्ण आंखी दास को पेशी के लिए आने वाले समय में समन भेजा जाएगा, जिससे समिति की प्रासंगिक कार्यवाहियों में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित हो और समिति इस हफ्ते अपनी कार्यवाही शुरू करने के लिए बैठक बुलाएगी.’

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