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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतभारतीय बाज़ार के आकार को रणनीतिक हथियार बना रहे हैं मोदी, चीन लंबे वक्त तक ऐसा कर चुका है

भारतीय बाज़ार के आकार को रणनीतिक हथियार बना रहे हैं मोदी, चीन लंबे वक्त तक ऐसा कर चुका है

भारत ने अपनी क्रयशक्ति का अब तक शायद ही इस्तेमाल किया है. इसकी वजह यह है कि मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं का बाज़ार पहले इतना बड़ा नहीं था.

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अभी दो वर्ष भी नहीं बीते हैं जब सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 6.2 अरब डॉलर मूल्य का कर्ज (जिसका करीब आधा हिस्सा उधार पर तेल के रूप में) दिया था. उस समय पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कर्ज का भुगतान न कर पाने के कगार पर पहुंच चुका था. अब उसने कर्ज का भुगतान कर दिया है और उधार पर तेल लेने की सुविधा खत्म कर दी है. चीन ने उसे आपात नकदी मुहैया कराई है लेकिन इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ उसका 6 अरब डॉलर के कर्ज पर समझौता ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते में खटास आ गई है. इसकी वजह है कश्मीर क्योंकि खाड़ी में बदलती सियासत के कारण यूएई और सऊदी अरब ने इस मामले में पाकिस्तान की ख्वाहिशों की अनदेखी कर दी है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है. जब बाज़ार में माल सरप्लस में हो तब ग्राहकों को नाराज़ नहीं किया जाता, उसे खुश रखा जाता है. यह सबक मलेशिया को जनवरी में तब मिला जब कश्मीर को लेकर उसकी टिप्पणियों के बाद भारत ने उससे पाम ऑइल लेना बंद कर दिया.

भारतीय बाज़ार का आकार वह हथियार है जिसे इस्तेमाल किया जाना बाकी है. यह सर्वविदित है कि भारत मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार, सौर ऊर्जा संयंत्रों का तीसरा सबसे बड़ा और हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. इसके अलावा यहां फेसबुक और हाल तक टिकटॉक जैसी कंपनियों के लिए सबसे बड़ा उपभोक्ता आधार मौजूद है. भारत ने अपनी क्रयशक्ति का अब तक शायद ही इस्तेमाल किया है. इसकी वजह यह है कि मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं का बाज़ार पहले इतना बड़ा नहीं था. भारत हाल में ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है. कुछ वजह यह भी है कि हाल में ही दुनिया नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था से आगे बढ़ी है और द्विपक्षीय व्यवहारिक पहल करने की गुंजाइश बनी है.

चीन लंबे समय से अपनी बाज़ार तक पहुंच की छूट देने के लिए दूसरे देशों को झुकने पर मज़बूर करता रहा है. हाल में उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसा किया जबकि पहले वह फिलीपींस, बोलीविया और दूसरे देशों के साथ यह कर चुका है. उसने भारत से निर्यातों को भी व्यवस्थित रूप से हतोत्साहित किया है और भारत की टेक कंपनियों के लिए वहां काम करना मुश्किल कर दिया है. उसने ताकतवर देशों के साथ भी मनमानी की है क्योंकि जापानी, अमेरिकी, जर्मन कंपनियां चीन में अपने कारोबार पर काफी निर्भर रही हैं जबकि एपल, नाइके और वस्त्रों की कंपनियां चीनी सप्लायरों पर बुरी तरह निर्भर रही हैं.


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अब भारत लद्दाख में चीनी घुसपैठ के कारण मज़बूर होकर उसे उसी भाषा में जवाब दे रहा है, जो भाषा उसे समझ में आती है. मुख्य सेक्टरों में मैनुफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देने की नरेंद्र मोदी की नई योजना अपने मकसद (एक हॉटहाउस मार्केट बनाना, जिसके साथ ऊंची लागत वाली अर्थव्यवस्था का खतरा रहता है) को पूरा कर सकती है या नहीं भी कर सकती है. लेकिन यह चीन को वहां चोट पहुंचा रही है जहां उसे सबसे ज्यादा दर्द महसूस हो रहा है क्योंकि अमेरिका के बढ़ते दबाव और चीन के अंदर बढ़ती लागत के कारण निर्यात आधारित उसका मैनुफैक्चरिंग आधार पहले ही सिकुड़ने लगा है.

इस बीच, तेल निर्यातक देश भारत के प्रधानमंत्री को खुश रखने के लिए उन्हें अपने देश के ऊंचे राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित कर रहे हैं. इसी तरह, अमेरिका सौदेबाज डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ व्यापार के मोर्चे पर असंतोष के बावजूद भारत के कंधे पर अपना हाथ रखे हुए है तो इसकी वजह यह है कि भारत उसकी बोइंग जैसी कंपनियों को रक्षा उपकरणों की खरीद के लगातार ऑर्डर देता रहा है.

चीन दवाओं के अवयवों जैसी महत्वपूर्ण सामग्री के मामले में मुश्किलें पैदा कर सकता है क्योंकि वह उनका प्रमुख सप्लायर है. इस आशंका के मद्देनज़र भारत को सावधानी से कदम बढ़ाना होगा. भारत को अभी भी सबसे ज्यादा रक्षा साजोसामान सप्लाई करने वाले रूस ने पाकिस्तान को इनकी सप्लाई के लंबे समय से जारी रोक को हटा लिया. हाल में उसने उसे युद्धक हेलिकॉप्टर भेजे. इसके बाद टैंक और मिसाइल भी दे सकता है. रक्षा खरीद में पाकिस्तान भारत की बराबरी नहीं कर सकता. वैसे भी उसके पास विदेशी मुद्रा की कमी है. तथ्य यह है कि घरेलू मैनुफैक्चरिंग में भारत जितना सफल होगा, उसे रूस की उतनी ही कम जरूरत पड़ेगी. भारत-रूस व्यापार मुख्यतः रक्षा क्षेत्र में ही केंद्रित रहा है. उसे बहुत सावधानी से व्यापक बनाने की जरूरत है.

यही बात पड़ोसी देशों के मामले में भी लागू है. भूटान को छोड़ बाकी सबके चीन के साथ करीबी रक्षा संबंध हैं. पड़ोसी देशों के लिए भारत के बाज़ार को खोलना उतना ही महत्वपूर्ण हो सकता है जितना दूसरों के लिए उसे बंद करना. खेल दोनों तरह से खेला जा सकता है, चाहे इससे वे घरेलू व्यवसाय गुट नाराज़ हों जो आज इसलिए खुश हैं कि सरकार ने बाज़ार तक पहुंच को नियंत्रित किया है और कल इसलिए नाखुश थे कि श्रीलंका के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया गया.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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10 टिप्पणी

    • भारत आत्मनिर्भर बनाने की बात है या दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बनाना है
      पहले ये तय कर लीजिये.
      फेंकना बंद हो

    • India needs scam free economy.there are so many talanted economists.every person has retirement age which he(Manmohan singh) already been attained

    • मनमोहन सिंह एक अच्छा अर्थशास्ति हो सकता ह ,लेकिन वह सबसे चापलूस PM था,उसके जमाने में सबसे ज्यादा घोटाले हए औऔर ये सब देखता रहा,जेसे रोम जलता रहा औऔर रोम का बादशाह बंसी बजाता रहा,सोनिया गांधी आऔर उसके बेटी दामाद देश को लूट रहे थे,गरीब आऔर मधयम वर्ग पिस रहा था,इसने कुछ नहीं किया।इसको तो जेल होनी चाहिये

  1. भारत आत्मनिर्भर बनाने की बात है या दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बनाना है
    पहले ये तय कर लीजिये.

  2. भारत आत्मनिर्भर बनाने की बात है या दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बनाना है
    पहले ये तय कर लीजिये.
    फेंकना बंद हो

  3. पढ़कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल हैं। मोदी मंत्र जाप के अलावा कुछ ठोस नहीं हैं इसमें। हमारी मीडिया को एक आंख बन्द करके देखने की अब आदत पड़ गई हैं ।

  4. भाईयो अगर प्रधानमंत्री मोदी जी जितने भी सांसद, एम एल ए,या राज्य सभा, लोकसभा के सदस्य है और वह जितनी बार जीतेगे उतनी ही बार उन की पेंशन मिलेगी यानी कि 5 बार जीते तो 5 पेंशन मिलेगी उनकी ये सुविधाएं बंद होनी चाहिए उनसे कोई भी नहीं पूछता इतने रूपए कहा से आए। कभी किसी मंत्री का बेटा फोज में भर्ती हुआ देखा है हमारे लिए कोई नोकरी भी नहीं मोज मस्ती तो ये बड़े लोग ही ले रहे है

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