कभी आपने सोचा है कि भारत के दूर दराज के जिलों के दलित टॉपर्स के साथ क्या होता है? क्या वो अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख पाते हैं? या फिर वो टॉपर बनने के बाद फिर से उन्हीं कामों की ओर लौट जाते हैं जो काम उनके एक खास जाति में पैदा होने की वजह से उन्हें दे दिए गए हैं? जैसे कि मैला ढोने या फिर उच्च जातियों के खेतों में मजदूरी करने?
आज भारत जब अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और देश के नेता बड़े-बड़े वादे कर कर रहे हैं तो ऐसे कुछ सवाल पूछना वाजिब है.
अगर आपको भी ये सारे सवाल परेशान करते हैं तो आपको पंजाब के मानसा ज़िले की 17 वर्षीय जसप्रीत कौर की यात्रा को ट्रैक करना होगा. ज़ीरो संसाधनों के बावजूद दलित परिवार में जन्मी जसप्रीत ने इस साल पंजाब शिक्षा बोर्ड की 12वीं क्लास में 99.5% नंबर हासिल कर पूरे राज्य में टॉप किया है.
हेडलाइन्स में छाने के 20 दिन बाद एक संगठन, एक प्रोफेसर, एक वकील और कई अन्य लोगों के सामूहिक प्रयासों के बाद जसप्रीत अपने लिए नए अवसरों के बारे में जान पाई हैं. जी हां, एक दलित टॉपर को अपनी पोटेंशियल के बारे में अहसास दिलाने के लिए भी कई लोगों के साझे प्रयास लगे हैं ताकि वो जान सके कि उच्च जातियों के वर्चस्व वाली दुनिया में वो अपना मुकाम बना सके.
बिना किसी सोशल-कल्चरल कैपिटल और फाइनेंशियल स्टैबिलिटी वाली जसप्रीत का असली संघर्ष टॉप करने के बाद शुरू हुआ है. पंजाब की टॉपर से जब मीडिया ने पूछा कि आपका क्या सपना है तो उसने बताया- स्कूल में प्राइमरी टीचर बनना.
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इंटरनेट: उसकी आशा
जब दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले 29 वर्षीय रवि वर्मा ने सोशल मीडिया पर एक न्यूज क्लिप को वायरल होते हुए देखा तो वो हैरान हुए. पूरे राज्य में टॉप करने वाली एक दलित लड़की सिर्फ स्कूल में एक प्राइमरी टीचर बनना चाहती है. आईएएस क्यों नहीं? जज क्यों नहीं? पत्रकार क्यों नहीं? इन सवालों ने रवि को सोचने पर मजबूर कर दिया.
पांच दिन तक जसप्रीत को ढूंढने के बाद आखिरकार वो एक रिपोर्टर से संपर्क करने में कामयाब हुए. रिपोर्टर ने जसप्रीत पर एक खबर बनाई थी. रवि ने उन्हें बताया कि वो जसप्रीत को दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलाना चाहते हैं.
मीडिया में जसप्रीत की खबर को और कवरेज मिली तो न्यूयॉर्क की राग नाम की एक संस्था ने जसप्रीत को एक लाख रुपए का अवॉर्ड देने की घोषणा की. ये खबर केंद्र सरकार में काम कर रहे एक अधिकारी तक भी पहुंची.
अधिकारी ने जसप्रीत को एक स्कॉलरशिप के बारे में बताया. जिसके बाद जसप्रीत ने दलितों के लिए चलाई जा रही पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए भी अप्लाई किया. उसके बाद जब केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल को पता चला तो उन्होंने जसप्रीत को वीडियो कॉल किया.
इन सबके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय की एक प्रोफेसर ने जसप्रीत से टेलिफॉनिक बातचीत कर उसकी काउंसलिंग की और उसे दिल्ली विश्वविद्यालय में हर संभव मदद करने का वादा किया.
जसप्रीत कहती हैं, ‘ये सब इंटरनेट की ताकत है. वरना मेरे लिए इतना समर्थन सोच पाना भी किसी सपने की तरह था.’ जसप्रीत का मनोबल बढ़ाने आ रहे लोग भी ग्यारह सौ या इक्कीस सौ रुपए की मदद करके अपना कॉन्ट्रिब्यूशन कर रहे हैं. फिलहाल जसप्रीत के खाते में डेढ़ लाख रुपए इकट्ठा हो गए हैं.
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एंग्जायटी, टॉन्ट्स और आंकाक्षाएं
जसप्रीत ने कभी मिरांडा हाउस कॉलेज या लेडी श्रीराम कॉलेज के बारे में नहीं सुना है. वो कहती हैं, ‘मैंने तो कभी पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ भी नहीं देखी है. खेत, स्कूल और घर, इसके अलावा कहीं की दुनिया नहीं देखी है.’
जसप्रीत अपने आसपास के सामाजिक ताने बाने और सारी मुश्किलों के बावजूद हासिल की गई इस उपलब्धि को लेकर तो अवेयर हैं लेकिन उसकी कई तरह की चिंताएं भी हैं. वो कहती हैं, ‘हमारे गांव के कुछ लोगों ने हमें ताना मारना शुरू कर दिया है कि ये नंबर मुझे तुक्के से मिले हैं या किस्मत से. इस बात पर मुझे बड़ा गुस्सा आता है कि लोग मेरी मेहनत और लगन पर सवाल उठा रहे हैं. क्या कोई अमीर या उच्च जाति का लड़का/लड़की इतने नंबर लेकर आते तो क्या सब लोगों को ये ही शक होता कि उसको नंबर तुक्के से मिले हैं?’
वो आगे जोड़ती हैं, ‘अगर कुछेक लोग इस तरह से आत्मविश्वास कम कर सकते हैं तो मुझे नहीं पता कि किसी बड़े शहर में मेरी जर्नी को कैसे देखा जाएगा. मैंने फिल्मों में देखा है कि अमीर लोग गरीब लड़कियों की रैगिंग भी करते हैं, इसलिए मुझे डर भी लग रहा है.’
लेकिन जसप्रीत के हिंदी टीचर गुरदास सिंह शुरू से ही समर्थन करते आ रहे हैं. वो ‘तुक्के से आए होंगे नंबर’ जैसी बातों को खारिज करते हुए कहते हैं, ‘सारे लोग ये बात नहीं पचा पाते कि एक गरीब घर की लड़की भी पढ़ाई में इतनी होशियार हो सकती है. ये ताने लोगों की खुद की असुरक्षा और ईर्ष्या से निकले हैं. मैंने जसप्रीत को पहली क्लास से पढ़ाया है. वो मेहनती लड़की है जो हर काम लगन से करती है.’
इंटेलेक्चुअल एकाधिकार को तोड़ना
भले ही जसप्रीत मिरांडा हाउस या लेडी श्रीराम जैसे इलीट कॉलेज का हिस्सा बन जाएं, उनके लेफ्ट आउट महसूस करने की संभावना बनी रहेगी. हर बार जब उनके आस पास के बच्चे सिनेमा, नेटफ्लिक्स, फैशन, लिट्रेचर या पॉप्युलर कल्चर की बात करेंगे तो वो आश्चर्य चकित रहेंगी. क्योंकि पंजाब के एक छोटे गांव से निकल आने वाली जसप्रीत के पास वो कल्चरल कैपिटल नहीं होगा जो बाकी अपर क्लास और कास्ट के बच्चों के पास रहेगा. इंग्लिश में बोलने वाला अभिजात्य वर्ग उन्हें एलियन नज़र आएगा.
अभी तक अपने गांव में जसप्रीत ने जातीय भेदभाव और गैर-बराबरी एक खास पैटर्न में देखी थी और उसके साथ रहना सीख भी लिया था. जैसे उनके पिता नाई की दुकान ही चलाएंगे और भाई हलवाई का ही काम सीखेगा. वो और उनकी मां दूसरों के खेतों में ही काम करेंगी.
लेकिन अब चीजें उनके लिए बदलेंगी. जितनी अपार संभावनाएं उनका इंतज़ार कर रही हैं, उसके साथ-साथ उतने ही तरह के सोशल डिस्क्रिमिनेशन भी. देश की राजधानी में वो ‘शहरी सोशल डिस्क्रिमिनेशन’ से रूबरू होंगी क्योंकि वो उच्च जातियों के इंटेलेक्चुअल एकाधिकार को अपनी मेरिट से तोड़कर बाहर निकली हैं. उनकी मेरिट को हर दूसरे कदम पर रिजेक्ट करने की कोशिशें की जाएंगी. उनकी हर सफलता को औरों से ज़्यादा जांचा-परखा जाएगा. उनकी मेरिट का पहला रिजेक्शन गांव के उन चंद लोगों से ही आ चुका है जिनको लगता है कि एक दलित लड़की को 99.5% नंबर तुक्के से ही आ सकते हैं.
यही कारण है कि बहुजनों को दुनियाभर की जसप्रीत कौरों के लिए सोशल और कल्चरल ग्रुप्स बनाने होंगे जिससे सपोर्ट सिस्टम की कड़ी ना टूटे. जसप्रीत जैसी लड़कियों के पास कल्चरल कैपिटल का अभाव इसलिए है कि उनके पास वो संसाधन नहीं थे जो अपर क्लास और कास्ट के पास रहे हैं. लेकिन डिजिटल क्रांति के दौर में जसप्रीत जैसी लड़कियां आसानी से चीजें सीख जाएंगी.
इसलिए भारत जैसे रिपब्लिक को देखना होगा कि जसप्रीत सिर्फ एक हेडलाइन बनकर ना रह जाए.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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Wow kamal h what you meant by dalit topper there are also upper class toppers with zero facility but they are not dalit so they not have publicity
Y u use word dalit
Sir congratulations for jaspreet .I bless her for better future.dalit organisation should support her .sir my sister’s daughter also stood 3rd in sr. Sec exam arts stream in July 2020.but who will support and cousel her .she belongs to Punjab village pathankot distt.she belong to uppr class father paralysed due to accident on bed since 2017
If even after reservation this is the ground reality,it means that reservation has become monopoly of elite class of “Dalits” who do not wants anyone means anyone to be successful not even the real Dalits aka backwards let alone general comunity. This little sister got her way but what about others?
Hypocrisy at its peek!!!!!!
ThePrint trying to instigate casteism and classism in society.
कितनी खूबसूरती से एक मेधावी गरीब विद्यार्थी की कहानी को दलित की कहानी बता दी । कहा से लाते हो इतना ढोंग
is article ko bager dalit likhe bhi publish kiya ja sakta tha.