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Wednesday, 20 November, 2024
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लोन रिस्ट्रक्चरिंग क्यों रिजर्व बैंक का एक स्वागत योग्य कदम और अब कर्जदारों के लिए सरकार को क्या करने की जरूरत है

आरबीआई ने कोविड-19 महामारी के असर से निपटने के तरीके के रूप में मोराटोरियम बढ़ाने की बजाए एकमुश्त ऋण पुनर्गठन की बैंकरों की मांग को स्वीकार कर लिया है.

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भारतीय रिजर्व बैंक ने विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर अपने ताजे बयान में कर्जदारों के लिए कोविड-19 महामारी के कारण पड़े बोझ के प्रबंधन में मदद के लिए ऋण के एक बार पुनर्गठन की योजना घोषित की है. खुदरा, एमएसएमई और कॉरपोरेट ऋण के पुनर्गठन को मंजूरी मिली है.

इस योजना का उद्देश्य उन कर्जदारों की मदद करना है जो ऋण चुकाने के मामले में सही राह पर थे लेकिन अपने कारोबार पर कोविड-19 लॉकडाउन के प्रतिकूल असर के कारण इसमें असमर्थ हो गए हैं. ऋण पुनर्गठन पर पिछली घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कई एहतियाती कदम उठाए गए हैं जिनके कारण एनपीए संकट दूर करने में तो सफलता नहीं मिली थी बल्कि ‘एक्सटेंड और प्रिटेंड’ की रणनीति को बढ़ावा मिला था जहां बैंक बीमार कंपनियों को नए सिरे से कर्ज़ जारी करते रहे जबकि वह पुराना कर्ज़ चुकाने में ही मुश्किलों का सामना कर रही थीं.

कॉरपोरेट्स के लिए यह योजना केवल उन कर्जदारों के खातों पर लागू होगी जिन्हें मानक श्रेणी में रखा गया है और जो 1 मार्च 2020 तक 30 दिनों से अधिक के लिए डिफाल्टर नहीं रहे हैं. पुनर्गठन को 31 दिसंबर 2020 तक लागू किया जाना है. इसमें बैंकों की तरफ से कई डिस्क्लोजर देने की जरूरत होगी और बड़े कर्जों के पुनर्गठन की प्रक्रिया के सत्यापन के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है.


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एक आवश्यक कदम

कोविड-19 महामारी से प्रभावित कंपनियों को सहारा देने के लिए एक मुश्त ऋण पुनर्गठन की घोषणा किए जाने की आवश्यकता थी. आरबीआई ने इससे पहले कर्जदारों के लिए 1 मार्च 2020 से 31 अगस्त 2020 तक छह महीने के लिए समान रूप से मोराटोरियम की घोषणा की थी.

लेकिन बाद में बैंकरों ने कहा था कि मोराटोरियम बढ़ाया नहीं जाना चाहिए और जहां जरूरी हो उन्हें अपने कर्ज़ की वापसी के लिए व्यापक छूट मिलनी चाहिए.

ऋण पुनर्गठन का उद्देश्य बैंकों को राहत पहुंचाना है और इसकी जरूरत भी थी क्योंकि वर्ष के अंत तक बैंकों के एनपीए अनुपात में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि का जोखिम बना हुआ है. आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों के एनपीए, जिनमें अब तक कमी का रुख नज़र आ रहा था, मार्च 2021 तक 12.5 प्रतिशत बढ़ जाने के आसार हैं. अगर आर्थिक माहौल और बिगड़ता है तो एनपीए 14.7 प्रतिशत तक बढ़ जाने का अनुमान है.

एक हालिया अध्ययन का अनुमान है कि कोविड-19 के कारण तीन लाख करोड़ का कर्ज एनपीए में डूबने का खतरा है, यदि बैंकों की तरफ से इनका पुनर्गठन नहीं किया जाता. बैंकों को कर्ज का पुनर्भुगतान न होने को कुछ शर्तों के तहत इसे एनपीए श्रेणी में न डालने की अनुमति देने वाली यह योजना उन्हें काफी राहत देगी.


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गैर-वित्तीय फर्म

गैर-वित्तीय सूचीबद्ध फर्मों की फाइनेंशियल परफॉर्मेंस एक चिंताजनक तस्वीर पेश करती है.

गैर-वित्तीय फर्मों की बिक्री में सितंबर 2019 से ही गिरावट का रुख है लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद पहली तिमाही अप्रैल-जून में इस गिरावट में 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. अप्रैल-जून की तिमाही में ऐसी कंपनियों का ऑफ्टर टैक्स प्रॉफिट 92 प्रतिशत तक कम हो गया है जो यह दर्शाता है कि लॉकडाउन ने उनके वित्तीय प्रदर्शन पर कितना प्रतिकूल असर डाला है.

इस कठिन समय में व्यवसायों को राहत पहुंचाने के उपाय आवश्यक हैं क्योंकि यह मालिकों या प्रबंधकों के फैसलों का नतीजा नहीं है बल्कि एक महामारी का परिणाम है. एमएसएमई के लिए ऋण गारंटी योजना, लोन मोराटोरियम और इसके बाद अब कर्ज के एकमुश्त पुनर्गठन कर्जदारों और कर्जदाताओं दोनों की मुश्किलें घटाने वाले कदम हैं.


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कर्ज लेने वालों को फायदा

ऋण पुनर्गठन योजना कर्ज़ लेने वालों को ब्याज और मूल राशि के पुनर्भुगतान को आगे टालने या आसान नियमों और शर्तों पर कर्ज लौटाने तक में मदद करती है. इन उपायों से उन्हें अपना तात्कालिक राजस्व नुकसान घटाने में सहायता मिलती है.

हालांकि, जैसा आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी के कारण पर्यटन, हॉस्पिटैलिटी और विमानन जैसे क्षेत्र सबसे ज्यादा बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी संभावनाएं विवेकाधीन खपत खर्च पर निर्भर करती हैं.

आरबीआई के कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे के ताजा चरण से संकेत मिलता है कि अधिकांश लोगों को आने वाले वर्ष में भी गैर-जरूरी खर्च में वृद्धि की उम्मीद नहीं है. इससे पता चलता है कि अगले कुछ महीनों में इन सेक्टर में किसी तरह के उछाल की संभावनाएं कम हैं.

जब तक मांग नहीं बढ़ती, कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता कमजोर ही रहेगी. ऐसे में उनके लिए लोन रिकास्ट स्कीम पर्याप्त नहीं होगी.

सरकार को अब एक ऐसी योजना तैयार करने की आवश्यकता है कि आने वाले महीनों में उनके लोन और डिफाल्ट की समस्या को कैसे हल किया जाए.

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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