कोरोनावायरस महामारी कब समाप्त होगी? ये सवाल सबके मन में है, और जहां ज्योतिषियों और नेताओं के पास इसका जवाब है, बहुत कम वैज्ञानिक इस संबंध में कोई भविष्यवाणी करने का खतरा मोल लेना चाहते हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के हाल के एक बयान के अनुसार भारत में कोरोनावायरस के प्रसार पर पहले ही नियंत्रण पाया जा चुका है क्योंकि ‘कुल मामलों में आधे मात्र तीन राज्यों से और 30 प्रतिशत सात अन्य राज्यों से हैं.’ लेकिन भारत ने 20 लाख कोविड-19 पॉजिटिव मामलों का आंकड़ा पार कर लिया है और ये संख्या बढ़ती ही जा रही है.
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महामारी का अंत
जैसा कि जीना कोलाता ने पिछले दिनों न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था, मेडिकल इतिहासकार महामारियों के अंत को दो तरह से देखते हैं. एक तो चिकित्सीय अंत जब बीमारी का प्रसार रुक जाता है; और दूसरा सामाजिक अंत जब लोग अपनी चिंताओं को पीछे छोड़ देते हैं. इसमें एक तीसरे तरह के अंत को जोड़ना उचित होगा: राजनीतिक अंत, जब सरकार ये तय करती है कि उसके हिसाब से महामारी समाप्त हो चुकी है. इन तीनों में से कोई भी अंत बाकियों से पहले हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक नेता और समाज इस बात की परवाह किए बिना आगे बढ़ने का फैसला कर सकते हैं कि संक्रमण का प्रसार कम हुआ या नहीं. यदि हम आज की दुनिया पर विचार करें तो ये निष्कर्ष निकालना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि राजनीतिक नेता आगे बढ़ने का विकल्प चुनेंगे, और समाज सोशल मीडिया संचालित आक्रोशों के चक्र के कारण इतना अधीर हो चुका है कि वह अक्सर व्याप्त महामारी की अनदेखी करता है. संभवत: भारत इस बिंदु पर पहले ही पहुंच चुका है.
चिकित्सीय अंत की क्या स्थिति है? वैज्ञानिक जगत की राय के बारे में ब्रितानी सेलुलर माइक्रोबायोलॉजिस्ट साइमन क्लार्क कहते हैं, ‘इस बारे में कोई तारीख बता पाना असंभव है. यदि कोई तारीख बता रहा हो तो समझिए उसके पास दिव्यदृष्टि होगी. वास्तविकता ये है कि यह रोग हमेशा के लिए हमारे साथ रहने वाला है क्योंकि यह अब पूरा फैल चुका है.’ यह जवाब विवेकपूर्ण और सतर्कता भरा भले ही हो, संतोषजनक नहीं है. लोगों के लिए इस कदर अनिश्चित जवाब को स्वीकार करना कठिन होता है और नीति निर्माताओं के लिए भी ये उपयोगी नहीं है क्योंकि वे किसी ठोस परिदृश्य पर ही काम कर सकते हैं.
टीके में छुपे हैं अधिकांश जवाब
‘कोविड-19 के नए मामलों में गिरावट कब शुरू होगी’ के सवाल का जवाब सामान्यतया इस बात पर निर्भर करता है कि टीका कब आता है. जब एक सुरक्षित और प्रभावी टीका खोजा जाएगा, उसका परीक्षण और निर्माण किया जाएगा, और आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण होगा, तो उस स्थिति में समाज कोविड-19 वायरस के खिलाफ सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता या ‘हर्ड इम्यूनिटी’ हासिल कर सकेगा, और महामारी पर काबू पाया जा सकेगा. एक अनुमान के अनुसार आबादी के 50 से 75 प्रतिशत हिस्से को – संक्रमण या टीकाकरण के ज़रिए – प्रतिरोधक क्षमता हासिल करनी होगी, तभी हर्ड इम्यूनिटी प्रभावी हो सकेगी.
इसमें कितना वक्त लगेगा? दुनिया के शीर्ष टीका विशेषज्ञों में से एक और अमेरिकी सरकार के ऑपरेशन वार्प स्पीड प्रोजेक्ट के मुख्य सलाहकार मोंसेफ़ स्लाई को पूरा विश्वास है कि फरवरी 2021 तक अमेरिका में सर्वाधिक जोखिम वाले चार करोड़ लोगों को टीके लगाए जा चुके होंगे. गोल्डमैन सैक्स का भी ऐसा ही अनुमान है और उसका मानना है कि अमेरिकी औषधि नियामक संस्था से 2020 में कम से कम एक टीके को मंज़ूरी मिलेगी और ‘अमेरिका एवं यूरोप की आबादी के बड़े हिस्से का क्रमश: जून और सितंबर 2021 तक टीकाकरण’ हो सकेगा. हालांकि अमेरिका के पूर्व सर्जन-जनरल विवक मूर्ति इस संबंध में थोड़ी सतर्कता बरतते हुए आगाह करते हैं कि महामारी का 2022 से पहले खात्मा नहीं हो पाएगा. रूस की इसी महीने टीका जारी करने की योजना है, जबकि चीन साल के अंत तक ऐसा कर सकता है, लेकिन भारत में हम तक टीके पहुंचने में कम से कम एक वर्ष लग सकता है.
टीकों से शायद स्थाई प्रतिरक्षा मिले भी नहीं और कोविड-19 को दूर रखने के लिए नियमित रूप से टीकाकरण की ज़रूरत पड़े. भारत के टीका निर्माता उत्पादन क्षमता बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं, और जैसा कि मैंने दलील दी थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को कोविड-19 के खिलाफ राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान की योजना तैयार करने में कोई देर नहीं करनी चाहिए. आशावादी नज़रिए से देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि 2021 के उत्तरार्ध तक भारत में व्यापक टीकाकरण हो सकेगा.
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टीके के बिना हर्ड इम्यूनिटी
याद रहे कि हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने का एक और ज़रिया है – जब संक्रमण के ज़रिए पर्याप्त संख्या में लोग वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लें. इस बारे में एक अतिशय आशावादी कच्चा हिसाब (कोबोट) निम्नांकित है.
ये मान लेते हैं कि भारत कोविड-19 के मामलों की असल संख्या से कम का हिसाब रख रहा है.
ऐसा मानना उचित भी है क्योंकि स्विटज़रलैंड जैसे देश तक का अनुमान ये है कि ‘हर ज्ञात पॉजिटिव मामले के साथ ही समुदाय में संक्रमण के कुल 11.6 मामले होंगे’. यदि हम मान लेते हैं कि भारत में भी छुपे मामलों का स्तर यही होगा, तो इस समय भारत में दो करोड़ से अधिक पॉजिटिव मामले हो सकते हैं, और लगभग 20 दिनों में ये संख्या दुगुनी हो जाती है. यदि यही क्रम चलता रहता है तो 2020 के नवंबर के मध्य तक आधी आबादी में प्रतिरोधक क्षमता आ चुकी होगी, और इस तरह देश हर्ड इम्यूनिटी की दहलीज पर होगा. मुंबई के धारावी इलाके में 40 फीसदी निवासियों में संक्रमण होने के बाद ही महामारी का प्रकोप कम होने लगा था.
ये एक अच्छी खबर है. वास्तव में, छुपे संक्रमणों की संख्या जितनी अधिक होगी हम उतनी जल्दी हर्ड इम्युनिटी के करीब होंगे. यदि संक्रमण के सारे मामले दर्ज किए जा रहे हों तो भी दोगुना होने की मौजूदा दर के हिसाब से देश की आधी आबादी 2021 के गणतंत्र दिवस तक प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुकी होगी.
लेकिन बेशक ये बुरी खबर भी है. वास्तव में बहुत बुरी खबर, क्योंकि संक्रमित लोगों में मृत्यु दर 2 प्रतिशत है. जो कई अन्य देशों की तुलना में कम है, लेकिन भारत जैसे देश के लिए ये फिर भी एक बड़ी संख्या है.
मेरा कोबोट आकलन आईआईटी बंबई के भास्करन रमन और उनके सहयोगियों के आकलन के अनुरूप है जिन्होंने माइकल लेविट के मॉडल के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि भारत में महामारी का प्रकोप अक्तूबर 2020 तक कम होने लगेगा. उसी मॉडल का उपयोग करते हुए, लेकिन अलग मान्यताओं के साथ, मेरे सहयोगी कार्तिक शशिधर ने महामारी के ‘अंत’ का समय फरवरी 2021 निर्धारित किया है. लेविट का मॉडल पूरी तरह ‘कर्व केंद्रित’ है जो अन्यत्र निकाले गए निष्कर्षों पर आधारित है. इसमें ये पता नहीं चलता है कि मामले क्यों अपने चरम पर पहुंचेंगे और फिर कम होने लगेंगे. ये मेरे कोबोट मान्यताओं के कारण हो सकते हैं. जो भी हो, ये आकलन मेरी ट्विटर रायशुमारी में शामिल अधिकांश लोगों के ‘नवंबर 2021 या उसके बाद’ के अनुमान की तुलना में कहीं अधिक आशावादी हैं.
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ये वैज्ञानिकों की बुद्धिमता है कि वे महामारी के अंत की भविष्यवाणी के खेल में नहीं पड़ते क्योंकि यह अनेक कारकों पर निर्भर करता है. सिर्फ विश्लेषक ही इस संबंध में थोड़ी स्वतंत्रता ले सकते हैं: मैं समझता हूं संक्रमण और टीके के संयोग से 2021 के अंत तक स्थिति सुधर सकेगी, संभवत: इस नवंबर से ही इसकी शुरुआत हो जाए. जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है, इस बारे में धैर्य रखना महत्वपूर्ण है.
(लेखक लोकनीति पर अनुसंधान और शिक्षा के स्वतंत्र केंद्र तक्षशिला संस्थान के निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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