नई दिल्ली: स्वाद और खुशबू के लिए पहचाने जाने वाले बासमती चावल को लेकर मध्यप्रदेश और पंजाब के मुख्यमंत्री आमने-सामने आ गए हैं. मामला इतना बढ़ गया है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है जिसमें मध्यप्रदेश को बासमती चावल की जीआई टैग दिए जाने का विरोध किया है. मामला बासमती चावल के जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग को लेकर है. मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस पत्र की कड़ी आलोचना की है.
कैप्टन अमरिंदर की एमपी के किसानों से क्या दुश्मनी है: शिवराज
शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा, ‘मैं पंजाब की कांग्रेस सरकार द्वारा मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैगिंग देने के मामले में प्रधानमंत्री जी को लिखे पत्र की निंदा करता हूं और इसे राजनीति से प्रेरित मानता हूं.
चौहान ने आगे लिखा, ‘मैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर से यह पूछना चाहता हूं कि आखिर उनकी मध्यप्रदेश के किसान बन्धुओं से क्या दुश्मनी है? यह मध्यप्रदेश या पंजाब का मामला नहीं, पूरे देश के किसान और उनकी आजीविका का विषय है.’
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चौहान ने एक के बाद एक ट्वीट कर लिखा, मध्यप्रदेश को मिलने वाली जीआई टैगिंग से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत के बासमती चावल की कीमतों को स्टैबिलिटी मिलेगी और देश के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में वर्ष 1908 से बासमती चावल का उत्पादन हो रहा है, इसका लिखित इतिहास भी है.
सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में अंकित है कि वर्ष 1944 में प्रदेश के किसानों को बीज की आपूर्ति की गई थी.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राईस रिसर्च, हैदराबाद ने अपनी ‘उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट‘ में दर्ज किया है कि मध्यप्रदेश में पिछले 25 वर्ष से बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है. पंजाब और हरियाणा के बासमती निर्यातक मध्यप्रदेश से बासमती चावल खरीद रहे हैं. भारत सरकार के निर्यात के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं. भारत सरकार वर्ष 1999 से मध्यप्रदेश को बासमती चावल के ब्रीडर बीज की आपूर्ति कर रही है.
चौहान ने कहा, पाकिस्तान के साथ एपीईडीए मामले का मध्यप्रदेश के दावों से कोई संबंध नहीं है क्योंकि यह भारत के जीआई एक्ट के तहत आता है और इसका बासमती चावल के अंतर्देशीय दावों से इसका कोई जुड़ाव नहीं है.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस संदर्भ में पत्र लिखा है. उन्होंने मध्यप्रदेश के बासमती चावल के एतिहासिक संदर्भ का उल्लेख करते हुए प्रदेश के किसानों एवं बासमती चावल आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये प्रदेश के बासमती चावल को जीआई दर्जा प्रदान करने का अनुरोध किया है.
एमपी बासमती का उत्पादन करने वाले विशेष क्षेत्र में नहीं आते : अमरिंदर
पंजाब के सीएम ने अपने पत्र में पीएम मोदी को लिखा था कि, मध्य प्रदेश बासमती का उत्पादन करने वाले इस विशेष क्षेत्र में नहीं आते हैं. इसीलिए इसे पहले बासमती की जीआई टैगिंग के लिए शामिल नहीं किया गया था. मध्य प्रदेश को जीआई टैगिंग में शामिल करना ना सिर्फ जीआई टैगिंग एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन होगा बल्कि यह जीआई टैगिंग के उद्देश्य को ही बर्बाद कर देगा.
बासमती की जीआई टैगिंग व्यवस्था में छेड़छाड़ से भारतीय बासमती के बाजार को नुकसान हो सकता है और इसका लाभ पाकिस्तान को मिल सकता है. भारत से हर साल 33 हजार करोड़ रु. का बासमती चावल का निर्यात होता है.भारत में हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश और जम्मू और काश्मीर के कुछ क्षेत्र में पैदा होने वाली बासमती की ही जीआई टैगिंग की जाती है.
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ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन ने भी बासमती की जीआई टैगिंग करवाने के मध्य प्रदेश के दावे का ‘कड़ा विरोध’ किया है. भारत में बासमती की खेती करने वाले किसानों और निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए वे अधिकारियों को जीआई टैगिंग की व्यवस्था में छेड़छाड़ करने से रोकें.
जीआई टैग दिलाता है विशेषाधिकार
जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग) किसी भी प्रांत को उसकी विशिष्टता के आधार पर तैयार उत्पाद पर दिया जाता है. जीआई एक ऐसा नाम या प्रतीक होता है जिसे कृषि, प्राकृतिक, मशीनरी और मिठाई आदि से संबंधित उत्पादों के लिए किसी क्षेत्र विशेष (देश, प्रदेश या टाउन) के किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या संगठन को दिया जाता है.
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जीआई टैग उस खास भौगोलिक परिस्थिति में पाए जाने वाली विशेष चीजों का दूसरे स्थानों पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है. संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था. इसके तहत भारत के किसी भी राज्य या क्षेत्र में पाए जाने वाले विशिष्ट वस्तुओं का कानूनी अधिकारी उस राज्य को दिया जाता है.
किसी भी उत्पाद पर जीआई सर्टिफिकेशन मिलने के बाद किसानों को मार्केंटिंग के दौरान कम प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है.जीआई को एक तरह का क्वालिटी का मानक भी माना जाता है.