पुणे: महाराष्ट्र में कोरोना के कारण पहले से बदहाल किसान और अधिक संकट का सामना कर रहे हैं. राज्य में पिछले छह महीने के दौरान एक हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. दूसरी तरफ, कोरोना संक्रमण के चलते राज्य के सौ से अधिक पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है.
महाराष्ट्र में इस वर्ष जनवरी में 198, फरवरी में 203, मार्च में 176, अप्रैल में 109, मई में 182 और जून में 216 किसानों ने आत्महत्या की है. यह आंकड़ा राज्य के किसान परिवारों द्वारा राज्य सरकार को दिए आत्महत्या संबंधी आवेदनों से सामने आया है. हालांकि, इनमें से केवल 322 किसान परिवारों को सरकार से सहायता प्राप्त हुई है.
जबकि, 268 किसान परिवारों द्वारा दिए गए आत्महत्या संबंधी आवेदनों को सरकार ने अयोग्य घोषित किया है. शेष आत्महत्या करने वाले 494 परिवारों को अभी भी मदद के लिए इंतजार करना पड़ रहा है. दूसरी ओर, लॉकडाउन के कारण कार्यालयों में पर्याप्त स्टाफ नहीं है. इसलिए, आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों के आवेदनों का सत्यापन नहीं हो पा रहा है.
प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहे अन्नदाता किसान परिवारों को अभी तक जीवन सुरक्षा गारंटी नहीं मिली है. 2 लाख रुपये से अधिक कर्ज चुकाने वाले किसानों को कर्जमाफी का इंतजार है और अब किसानों के सामने कोरोना का संकट मंडरा रहा है. इस संकट से उनकी आर्थिक तंगी और बढ़ गई है. इससे उभरने के लिए वे निजी कर्ज और सूदखोरी के जाल में फंसने लगे हैं. यही वजह है कि जनवरी से जून 2020 तक राज्य में 1,084 किसानों ने आत्महत्या की. इनमें अमरावती और औरंगाबाद में आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक थी.
हालांकि, महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार ने राज्य में किसानों को 2 लाख रुपये की कर्ज माफी की घोषणा की है. इससे पहले भाजपानीत देवेंद्र फडणवीस सरकार की कर्ज माफी का कई किसानों को लाभ नहीं मिला है.
दूसरी ओर, कुछ शर्तों के कारण बैंक ऋण प्रदान नहीं करते हैं. अच्छी फसल मिलने के बावजूद बाजार में संतोषजनक कीमत नहीं मिल पा रही है. इन विपरीत परिस्थितियों के कारण अकेले अमरावती जिले में सर्वाधिक 129 किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है.
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संभागवार किसान आत्महत्या संबंधित आवेदन
पुणे: 17, नासिक: 141, औरंगाबाद: 358, अमरावती: 469, नागपुर: 99= कुल: 1084
इस बारे में सहकारिता मंत्री बालासाहेब देशमुख ने कहा है कि सरकार ने दो लाख से अधिक किसानों को कर्ज माफी का लाभ दिया गया है. अब दो लाख से अधिक किसानों और नियमित कर्जदारों को बाद में लाभ दिया जाएगा.
स्पेशल पैकेज के बावजूद नहीं घटी आत्महत्याएं
पिछले साल नवंबर और दिसंबर महीने में राज्य के 550 किसानों ने आत्महत्या की थी. इस वर्ष मार्च में पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार ने बताया था कि वर्ष 2019 में अमरावती संभाग के 11 जिलों के कुल 1,286 किसानों ने आत्महत्या की थी. इसे देखते हुए महाविकास अघाड़ी सरकार ने पिछले साल दिसंबर में ही किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा की थी. वहीं, पिछली 6 मार्च को विधान परिषद ने किसानों की कर्ज माफी के लिए 24,710 करोड़ रुपए की अतिरिक्त मांग को भी मंजूरी दे दी थी.
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में विशेषकर विदर्भ और मराठवाड़ा अंचल किसानों की आत्महत्या के लिए पहचानी जाने लगी है. मौजूदा आंकड़े भी इसी कहानी को फिर दोहरा रहे हैं. दरअसल, पिछले तीन दशक से कई सरकारे बदलने के बावजूद स्थितियां नहीं बदल रही हैं.
ताजा आंकड़े सामने रखते हुए यदि और पीछे जाएं तो वर्ष 2018 में जनवरी से नवंबर के बीच राज्य के 2,518 किसानों ने आत्महत्या की थी. लेकिन, अगले वर्ष स्थिति सुधरने की बजाय और अधिक बिगड़ती चली गईं. वर्ष 2019 में जनवरी से नवंबर के बीच राज्य के 2,532 किसानों ने आत्महत्या की थी.
जाहिर है किसानों की आत्महत्याओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई. तब दलील दी गई थी कि बेमौसम बरसात के कारण राज्य के किसानों की फसल चौपट हो गई थी. ठीक इसी समय राज्य में विधानसभा चुनाव का प्रचार, मतदान प्रक्रिया और सत्ता के लिए राजनीतिक दलों की आपसी उठापटक के कारण किसान आत्महत्या से जुड़ी ज्वलंत समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा सका था. लेकिन, पिछले छह महीने में हजार से अधिक किसानों की खुदखुशी ने इसके कारणों और सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं.
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जानकर इसे खासकर पिछले पांच सालों में खेतीबाड़ी पर आ रहे संकट के रुप में देखते हैं. एक तरफ खेती के उत्पादन के दामों में गिरावट आ रही है तो दूसरी ओर खेती और अन्य खर्च बढ़ते ही जा रहे हैं. यदि इसे किसानों के लिए जोखिम संबंधित उपायों की दृष्टि से देखें तो स्पष्ट होता है कि यह बीमा योजना की असफलता का संकेत है. दूसरी तरफ, किसानों की कर्ज माफी उन्हें संकट से बाहर निकालने का एक अस्थायी विकल्प है.
लेकिन, कोई भी सरकार यह बात सुनिश्चित करने की तरफ ध्यान नहीं दे रही है कि किसानों की आमदनी किस तरह बढ़ाई जाए. ऐसे में कोरोना संक्रमण की सबसे बुरी मार महाराष्ट्र पर पड़ने का अर्थ है कि इस राज्य की कृषि प्रधान चरमरा जाएगी और नुकसान की ज्यादा से ज्यादा मार आखिर किसानों पर ही पड़ेगी.