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Wednesday, 8 May, 2024
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कोरोना काल में टीवी सीरियल की शूटिंग तो हुई शुरू पर कई कलाकार और तकनीशियन हो गए बेरोजगार

महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी के लगभग 90 सीरियलों की शूटिंग शुरू हो गई है. लेकिन, इनमें से लगभग 20 प्रतिशत तकनीशियन, कलाकार और कर्मचारी ही सेट पर आ रहे हैं.

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पुणे: महाराष्ट्र सरकार ने जून से लॉकडाउन में ढील देते हुए टेलीविजन सीरियलों की अनुमति दी है. लेकिन, इस दौरान निर्माताओं के लिए कुछ नियम और शर्तों का पालन करना अनिवार्य है. इन्हीं में से एक शर्त यह है कि शूटिंग के दौरान कोई निर्माण कंपनी कुल मानव संसाधन का 33 प्रतिशत ही उपयोग कर सकती है. लिहाजा, इस सेक्टर से जुड़े अनेक तकनीशियन, कलाकार और कर्मचारियों की रोजी रोटी पर आफत आ गई है.

यही वजह है कि शूटिंग के दौरान कुल कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी दिखाई दे रही है. बताया जा रहा है कि राज्य में हिंदी और मराठी के लगभग 90 सीरियलों की शूटिंग शुरू हो गई है. लेकिन, इनमें से लगभग 20 प्रतिशत तकनीशियन, कलाकार और कर्मचारी ही सेट पर आ रहे हैं. जाहिर है कि निर्माण के अन्य विभागों से एक बड़ी संख्या में जूनियर कलाकार और कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं.

इस बारे में कई निर्माताओं का कहना है कि वे सेट पर शूटिंग के दौरान कम से कम लोगों की उपस्थिति में काम करने के लिए बाध्य हैं. उन्हें शूटिंग की अनुमति भी इसी शर्त पर दी गई है. फेडरेशन ऑफ़ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज के अध्यक्ष बी एन तिवारी कहते हैं, ‘आमतौर पर हिंदी में एक सीरियल के सेट पर 100 से 150 कलाकार और तकनीशियन उपस्थित रहते हैं. जबकि, मराठी में एक सीरियल के सेट पर 70 से 80 कलाकार और तकनीशियन होते हैं. नए नियमों के मुताबिक यदि निर्माता सभी अभिनेताओं और तकनीशियनों में से महज 33 प्रतिशत के साथ काम करने के लिए बाध्य है तो जाहिर है कि बाकी स्टॉफ के लिए काम की कोई गुंजाइश नहीं.’


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लिहाजा, कई सह कलाकार को नहीं बुलाया जा रहा है. इन कलाकारों में पुरुष और महिला शामिल हैं. इसी तरह, कई कोरियोग्राफर, फाइट मास्टर्स और सेट डिजाइनर भी प्रभावित हुए हैं. वहीं, सभी विभागों के वरिष्ठ तकनीशियन और कलाकारों का कहना हैं कि पहले उनके सहायक होने से उनका काम बहुत आसान हो जाता था. हर काम खुद करना बहुत मुश्किल है. फिर इसमें काफी समय भी खर्च होता है.

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दूसरी तरफ, जिनके पास काम हैं उनकी भी परेशानियां बढ़ गई हैं. इस बारे में एक लाइटमैन बताते हैं, ‘लोग कम हैं तो सबका काम बहुत बढ़ गया है. इसलिए हर एक पर पहले से अधिक जिम्मेदारी बढ़ गई है. लेकिन, ज्यादातर कर्मचारियों के भुगतान में कोई बढ़ोतरी नहीं की जा रही है.’

मराठी टेलीविजन सीरियलों के निर्माता सुबोध खानोलकर बताते हैं कि हमारे आधे से भी कम तकनीशियन सेट पर काम कर रहे हैं. हम अभी तक सभी को बिना काम के भी आधा वेतन देते आ रहे हैं. उन्हें हर महीने का राशन खरीदने लायक भुगतान तो किया ही जाना चाहिए पर, सवाल है कि ऐसा हम कब तक करते रहेंगे.

इसी तरह, अन्य निर्माता भी यही सोचते हैं. मराठी टेलीविजन सीरियल के निर्माता नितिन वैद्य कहते हैं, ‘हमें इस बात का अंदाजा नहीं है कि सेट पर नियमित रूप से शूटिंग कब शुरू होगी, इसलिए हमारे सामने सवाल यह है कि हमारी पूरी टीम के हर सदस्य को काम कैसे दिया जाए. हर निर्माता इस समस्या को अपनी-अपनी तरह से हल कर रहा है.’


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फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज की तरफ से राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि शूटिंग के दौरान शर्तों में और अधिक ढिलाई दें. वहीं, शूटिंग संबंधी चुनौतियों को लेकर निर्माता संघ जल्द ही बैठक आयोजित करने पर भी विचार कर रहा है.

दूसरी तरफ, कुछ विज्ञापन निर्माता बताते हैं कि शूटिंग के लिए नए नियमों और सुरक्षा उपायों के कारण कुल लागत में 22 से 28 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. कोरोना की वजह से सिर्फ सुरक्षा उपायों पर हर दिन तीस हजार रुपए तक खर्च किया जा रहा है.

शूटिंग के दौरान अधिक खर्च की दूसरी वजह है कि इन दिनों शूटिंग के लिए केवल एक शिफ्ट उपलब्ध कराई जा रही है. इसके तहत सुबह सात से दो या सुबह नौ से छह बजे तक का ही समय इस्तेमाल किया जा सकता है. लिहाजा, पहले जो काम एक दिन में पूरा हो जाता था, उसके लिए अब दो दिन लग रहे हैं.

इसी तरह, अधिकतर टेलीविजन सीरियलों की शूटिंग बहुत धीमी गति से चल रही हैं. इसकी एक वजह है कि कई तकनीशियन और कलाकार स्वास्थ्य व सुरक्षा संबंधी कारणों के चलते सेट पर आने से बच रहे हैं. वहीं, कई लोग शूटिंग में होने के बावजूद कोरोना संक्रमण के खतरे से डरे हुए हैं.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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