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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनकेरल के देवस्वोम बोर्ड में अरबी शिक्षक भर्ती का वीएचपी और कालीकट यूनिवर्सिटी में अरुंधति रॉय को पढ़ाने का एसएसयूएन ने किया विरोध

केरल के देवस्वोम बोर्ड में अरबी शिक्षक भर्ती का वीएचपी और कालीकट यूनिवर्सिटी में अरुंधति रॉय को पढ़ाने का एसएसयूएन ने किया विरोध

इसके पहले आरएसएस समर्थित एसएसयूएन ने कहा कि अरुंधती रॉय का 'राष्ट्र विरोधी भावना' को बढ़ावा देने वाला भाषण तत्काल प्रभाव से कालीकट यूनिवर्सिटी में बी.ए. अंग्रेज़ी साहित्य की किताब से हटाया जाए.

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नई दिल्ली: केरल के त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड में अरबी भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने इसे हिंदुओं के खिलाफ बताते हुए विरोध किया है. इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (एसएसयूएन) ने केरल के ही कालीकट यूनिवर्सिटी के तृतीय वर्ष के पाठ्यक्रम में ‘राष्ट्र विरोधी सामग्री’ शामिल किए जाने का विरोध किया है.

मीडिया को जारी किए गए एक बयान में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने कहा कि यह आश्चर्यचकित करने वाला है कि केरल का त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड अपने अधीन आने वाले विद्यालयों में अरबी-भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति कर रहा है.

वीएचपी के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने बुधवार को कहा, ‘अरबी भारतीय भाषा नहीं है. यह भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं की अनुसूची में भी नहीं है. पवित्र कुरान को पढ़ने, समझने और याद रखने के लिए इस भाषा का अधिक अध्ययन किया जाता है.’

उन्होंने कहा कि अरबी भाषा का शिक्षण हिंदुओं के धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्य के लिए नहीं होता है. आलोक कुमार के मुताबिक, ‘हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा मंदिरों में दान किए जाने वाले पैसे से चलने वाले विद्यालयों में अरबी पढ़ाया जाना एक ग़लत ख़र्च है.’

केरल सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा करते हुए वीएचपी ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड का गठन त्रावणकोर कोचीन हिंदू धार्मिक संस्था अधिनियम, 1950 के अंतर्गत किया गया है. इस बोर्ड में तीन सदस्य हैं, जिनमें से दो केरल सरकार के मंत्रिपरिषद के हिंदू सदस्यों और तीसरे सदस्य केरल की विधानसभा के हिंदू सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं.

वीएचपी के मुताबिक इससे साफ है की तीनों ही सदस्य राज्य की सत्ताधारी पार्टी से नामित हैं. वीएचपी के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष ने यह भी कहा, ‘यह वाम मोर्चा सरकार के नामित सदस्यों द्वारा हिन्दुओं पर किया गया एक और हमला है. हिंदुओं द्वारा अपने ईष्ट देवी-देवताओं को श्रद्धापूर्वक अर्पित किया गया धन अरबी भाषा के शिक्षण के लिए जाएगा. यह स्वीकार्य नहीं है.’

फैसले की निंदा करते हुए उन्होंने बोर्ड से इसे वापस लेने और केरल की जनता से इसका प्रचंड विरोध करने की अपील की. आलोक कुमार ने ये मांग भी की कि संस्कृत भाषा सहस्र वर्षों की परम्परा में प्राप्त भारतीय आध्यात्मिक धरोहर का अमूल्य भंडार है और इसका शिक्षण त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में अनिवार्य किया जाना चाहिए.

हालांकि बोर्ड के अध्यक्ष टीएम वासु ने द्रिप्रिंट से कहा कि बोर्ड द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों में से महज़ एक में अरबी पढ़ाई जा रही है. ये स्कूल मुस्लिम बहुल इलाके में है. उन्होंने कहा कि ये कई सालों से पढ़ाई जा रही है और शिक्षकों की नियुक्ति के फैसले में कुछ नया नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अरबी पढ़ाने वाले शिक्षक रिटायर हो गए हैं ऐसे में हम नए शिक्षक की बहाली की प्रकिया आगे बढ़ा रहे हैं. मेरिट लिस्ट की घोषणा हो गई है लेकिन अभी नियुक्ति नहीं हुई है. मुझे नहीं समझ आ रहा कि इस पर विवाद क्यों हो रहा है.’

अरुंधती रॉय के भाषण का विरोध, बताया ‘राष्ट्रद्रोह’ जैसा

वहीं इससे पहले एसएसयूएन के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने प्रधानमंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री और केरल के राज्यपाल को पत्र लिखकर कालीकट यूनिवर्सिटी में बीए अंग्रेज़ी साहित्य के तृतीय वर्ष के पाठ्यक्रम में राष्ट्र विरोधी सामग्री को तत्काल प्रभाव से हटाने का आग्रह किया है.

कालीकट यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में ‘कम सितम्बर’ (Come September) नाम का ये भाषण अरुंधती रॉय द्वारा साल 2002 में अमेरिका में दिया गया था.

अतुल कोठारी ने कहा, ‘इस भाषण में अरुंधती रॉय ने हिंदू धर्म का उल्लेख ‘सांप्रदायिक फासीवादी’ के तौर पर किया है. स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व की तत्कालीन सरकार को भी फासीवादी एवं कश्मीर में राज्य प्रायोजित आतंकवाद चलाने वाली सरकार कहा गया है. साथ ही 2002 के गुजरात में हुए दंगों को ‘राज्य समर्थित नरसंहार’ की उपमा दी है. आत्मघाती हमला करने वाले आतंकवादियों का बचाव करते हुए लिखा है ‘हमें आतंकवादी की निंदा करना सिखाया जाता है किंतु वो इस स्थिति तक क्यों पहुंचा है इसका विचार भी हमें करना चाहिए.’

उन्होंने आगे बताया कि इन उदाहरणों से साफ है कि इस भाषण का एवं भाषण देने वाली वक्ता की मंशा ‘राष्ट्र विरोधी भावना’ को बढ़ावा देने वाली है. देश के किसी भी यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में इस प्रकार का पाठ पढ़ाना ‘राष्ट्रद्रोह’ के समान है.

एसएसयूएन के दक्षिण क्षेत्र के संयोजक ए. विनोद ने बताया कि न्यास के राष्ट्रीय सचिव द्वारा प्रधानमंत्री सहित अन्य सभी संबंधित विभागों को पत्र लिखकर इस अध्याय को तत्काल प्रभाव से हटाने का आग्रह किया है. साथ ही पाठ्यपुस्तक समिति एवं यूनिवर्सिटी के कुलपति पर भी उचित कार्यवाही की मांग की है.

इस विषय में दिप्रिंट ने कालीकट यूनिवर्सिटी के वीसी को फोन और मैसेज के जरिए संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर कॉपी को अपडेट किया जाएगा.

(दिप्रिंट की नीलम पांडेय के इनपुट्स के साथ)

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