अहमदाबाद: ऐसे समय में जब कोरोनोवायरस संकट ने पूरे भारत में कठिन चुनौतियां खड़ी कर दी है, अहमदाबाद के जमालपुर की 23 वर्षीय महिला मिस्बाह खारावाला और उनके पति फैसल की कहानी ताकत, धैर्य और आशा का प्रतीक है.
9 मई को, लॉकडाउन किए गए अहमदाबाद में, मिस्बाह अपने परिवार के लिए चाय बना रही थीं तभी उनके कपड़ों में आग लग गई. उसकी चीखें सुनकर, उसके पति और पड़ोसी मदद के लिए दौड़े लेकिन तब तक उनकी 71 फीसदी त्वचा बुरी तरह जल चुकी थी.
फैसल को कोविड संक्रमण के रोजाना रिकॉर्ड बना रहे शहर में अपनी पत्नी को अस्पताल में एक बेड पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी. उस समय कोविड का हॉटस्पॉट बने जमालपुर ने मुसीबत में और इजाफा किया. दिप्रिंंट के साथ बातचीत में, मिस्बाह ने याद किया, ‘शहर का कोई भी निजी अस्पताल एडमिट करने को तैयार नहीं था. एक बार, जब हमने उन्हें जमालपुर से होने की बात बताई तो उन्होंने हमें अस्पतालों में एडिमट करने से मना कर दिया.’
फैसल ने आगे कहा, ‘चूंकि हम अपने आप से इलाज कराने में सक्षम नहीं थे, लिहाजा हमने राजनीतिक तौर पर मदद लेने का फैसला किया.’ फैसल मदद के लिए जमालपुर-खड़िया के विधायक इमरान खेडावाला के पास पहुंचे. खेडवाला ने अपने प्रभाव से मदद की और मिस्बाह को एलजी अस्पताल, अहमदाबाद में भर्ती किया गया.
प्रोटोकॉल के अनुसार, अस्पताल के डाक्टरों ने उनका कोविड टेस्ट किया. इस वायरस के लिए पॉजिटिव पाए जाने पर मिस्बाह की परेशानियों ने नया मोड़ लिया. चूंकि वह नामित कोविड-19 अस्पताल में नहीं थीं, इसलिए शहर के एसवीपी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया.
प्लास्टिक व कॉस्मेटिक सर्जन डॉ. विजय भाटिया ने कहा कि उनके रिकॉर्ड में यह पहला ऐसा मामला था जिसमें एक मरीज जो कि जला हुआ था, नॉवेल कोरोनेवायरस से संक्रमित था. इस चीज ने उपचार को खासतौर से जटिल बना दिया.
डॉ. भाटिया ने स्पष्ट किया, ‘बर्न्स शरीर की प्रतिरक्षा को बिगाड़ देता है क्योंकि शरीर के प्रोटीन को नुकसान पहुंचता है साथ ही शरीर के तरल पदार्थ को और बैक्टीरिया का हमला. रोगी किसी भी तरह से प्रतिरक्षा कम होने पर कोविड-19 अधिक समस्याओं का कारण बन जाता है’ इसके अतिरिक्त, चिकित्सकों की सुरक्षा को भी ऐसी जटिल प्रक्रिया से ख़तरा होता है.
चूंकि मिस्बाह को इतनी व्यापक और गंभीर जलन थी, उसके त्वचा के प्रत्यारोपण की जरूरत थी. यह प्रक्रिया मध्य लॉकडाउन में विशेष रूप से मुश्किल हो रही थी. फैसल ने कर्नाटक में बेलगम में एक त्वचा क्लीनिक से प्रत्यारोपण कराना चाहा, लेकिन यह काफी दूर था. फिर भी वह डटे रहे. उन्होंने वापस बेलगम तक 2,500 किमी की दूरी तय की. पूरे 36 घंटे से ज्यादा. केवल दोपहर के भोजन के लिए एक बार ब्रेक लेकर, ताकि पत्नी की त्वचा का प्रत्यारोपण सुनिश्चित हो सके.
अस्पताल में 70 दिन बिताने के बाद, ठीक हो चुकीं मिस्बाह को जुलाई के पहले सप्ताह में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. घर वापस आने पर एक साल के बेटे मोहम्मद ने स्वागत किया, जिसे उन्होंने बहुत याद किया था और अस्पताल में रहते हुए केवल वीडियो कॉल पर बातचीत की थी.
दिप्रिंट के प्रवीण जैन और कैरवी ग्रेवाल का मिस्बाह की उसकी दर्दनाक परीक्षा के बाद घर वापसी के हाल तस्वीरों के जरिए पेश करते हुए-
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