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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशस्टैनफोर्ड की स्टडी ने पाया- कोविड की रिपोर्टिंग में उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे फिसड्डी, कर्नाटक सबसे आगे

स्टैनफोर्ड की स्टडी ने पाया- कोविड की रिपोर्टिंग में उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे फिसड्डी, कर्नाटक सबसे आगे

स्टडी में कहा गया है कि बिहार और यूपी ने आधिकारिक वेबसाइट्स पर कोविड का कोई डेटा प्रकाशित नहीं किया है. हिमाचल प्रदेश, मेघालय जैसे राज्यों ने बस कुल संख्या बताई, रोज़ाना का रुझान नहीं डाला.

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नई दिल्ली: स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के एक नए शोध में पाया गया है कि भारत में प्रांतों और केंद्र-शासित क्षेत्रों की ओर से कोविड-19 की खबरें दिए जाने में असमानताएं हैं.

रिसर्चर्स के तैयार किए गए कोविड-19 डेटा रिपोर्टिंग के सूचकांक के अनुसार, कोविड-19 की सबसे अच्छी रिपोर्टिंग कर्नाटक की रही है जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश सबसे खराब रहे हैं.

इस स्टडी का अभी पियर रिव्यू नहीं हुआ है और इसे एक प्री-प्रिंट के तौर पर 21 जुलाई को मेडआर14 में छापा गया है.

रिसर्चर्स ने राज्यों को डेटा की उपलब्धता, पहुंच, डीटेल्स और निजता के हिसाब से श्रेणीबद्ध किया है. इस फ्रेमवर्क के हिसाब से 19 मई से एक जून के बीच दो हफ्तों में, 29 राज्यों के कोविड-19 डेटा रिपोर्टिंग स्कोर का हिसाब लगाया गया. सीडीआरएस की रेंज ज़ीरो (न्यूनतम) से एक (अधिकतम) तक थी.

रिसर्चर्स को पता चला कि सीडीआरएस में अंतर था, जो कर्नाटक में 0.61 (अच्छा) और बिहार व उत्तर प्रदेश में 0.0 (खराब) था.

कुल मिलाकर भारत में कोविड-19 रिपोर्टिंग की क्वॉलिटी केवल 0.26 थी, जो पूरे देश में खराब रिपोर्टिंग दर्शाती थी.

जिन प्रांतों ने 18 मई तक, 10 से कम पुष्ट मामले रिपोर्ट किए थे, उन्हें स्टडी से बाहर रखा गया.

हर प्रांत ने अपना पहला केस, स्टडी किए जाने से कम से कम एक महीना पहले रिपोर्ट किया, जिसका मतलब है कि उनके पास, उच्च क्वॉलिटी का डेटा रिपोर्टिंग सिस्टम बनाने के लिए, कम से कम एक महीने का समय था.

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 18 मई तक, भारत में पुष्ट मामलों की कुल संख्या, लगभग 96,000 थी. देश के कुल पुष्ट मामलों में, 91 प्रतिशत योगदान उन दस सूबों का था, जिनमें सबसे ज़्यादा पुष्ट मामले थे.

स्टडी में पता चला कि इन टॉप दस सूबों में, तमिलनाडु अकेला राज्य है जहां सीडीआरएस दर ऊंची, 0.51 है.

शोधकर्ताओँ ने लिखा, ‘इससे पता चलता है कि जिन राज्यों में मामले सबसे अधिक हैं, वहीं पर कोविड-19 डेटा रिपोर्टिंग भी खराब है, जिसकी वजह से महामारी की चुनौतियां और गहरी हो सकती हैं.

Source: medRxiv


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10 राज्यों ने डेटा को आयु और लिंग के आधार पर नहीं बांटा

कोविड-19 के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के रेफरल फॉर्म में, स्वास्थ्यकर्मियों को आयु, लिंग, ज़िले और अन्य बीमारियों का डेटा देना होता है. फिर भी स्टडी में पता चला कि 10 राज्य ऐसे थे जिन्होंने अपने डेटा को आयु, लिंग, ज़िलों और अन्य बीमारियों के हिसाब से नहीं बांटा था.

ज़िला स्तर के डेटा से लोगों को, अपने आसपास की स्थिति की गंभीरता का पता रहता है और उन्हें ये पता लगाने में मदद मिल सकती है कि उन्हें कितना ख़तरा है, जिससे वो ज़रूरी एहतियात कर सकते हैं. इसके अलावा आयु, लिंग और अन्य बीमारियों जैसी बारीक डिटेल्स, बीमारी के आगे बढ़ने में इन घटकों के असर का अध्ययन करने में, वैज्ञानिक समुदाय की मदद कर सकती हैं.

स्टडी में पता चला कि केवल 10 राज्यों ने, कोविड-19 के रुझान का विज़ुअल रीप्रेज़ेंटेशन दिया हुआ था. असम और गुजरात ने सिर्फ मामलों की कुल संख्या दी हुई थी जबकि केरल ने कुल मामलों के साथ, कोविड के रुझान भी दिए थे.

जानकारी को यदि ग्राफिक रूप में पेश किया जाए, तो आम लोगों के लिए उस तक पहुंचना और उसे समझना आसान हो जाता है.

इसके अलावा, रिसर्चर्स को ये भी पता चला कि पंजाब और चंडीगढ़ ने, क्वारेंटाइन से गुज़र रहे लोगों की निजी जानकारी अपनी अधिकारिक वेबसाइट पर डालकर, उनकी निजता से भी समझौता किया.

कोविड-19 रिपोर्टिंग में सबसे अच्छे और सबसे खराब राज्य

सबसे अच्छी रिपोर्टिंग कर्नाटक (0.61) की थी, जिसके बाद केरल (0.52), ओडिशा (0.51), पुडुचेरी (0.51) और तमिलनाडु (0.51) थे.

उत्तर प्रदेश (0.0), बिहार (0.0), मेघालय (0.13), हिमाचल प्रदेश (0.13) और अंडमान निकोबार आईलैंड्स (0.17) में कोविड रिपोर्टिंग सबसे कम रही.

सीडीआरएस में शीर्ष पांच राज्यों ने एक ऐसा डैशबोर्ड दिया, जिसमें कोविड-19 के रुझान को ग्राफिक्स के ज़रिए दिखाया गया था और उसे कुल पुष्ट मामलों, ठीक हुए मामलों और मौतों की संख्या के हिसाब से विभाजित किया गया था. लेकिन उनमें से किसी ने डेटा को आयु, लिंग और अन्य बीमारियों के हिसाब से नहीं बांटा था- वो सब घटक जिनका मृत्यु दर पर असर पड़ता है.

जिन राज्यों का सीडीआरएस स्कोर सबसे कम था, उनमें बिहार और उत्तर प्रदेश ने, अपनी सरकारी या स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट्स पर, कोविड का कोई डेटा पब्लिश नहीं किया था.

बिहार ने अपना डेटा सिर्फ ट्विटर पर जारी किया, जो जानकारी फैलाने का सुगम और विश्वसनीय तरीका नहीं है.

हिमाचल प्रदेश, मेघालय और अंडमान निकोबार आईलैंड्स ने केवल कुल संख्या बताई थी लेकिन उन्होंने रोज़ाना की संख्या, रुझानों के ग्राफिक्स और डिटेल्स के आंकड़े नहीं दिए.

शोधकर्ताओं को ये भी पता चला कि स्वास्थ्य और भलाई, जिसमें मातृ मृत्यु दर और स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता शामिल हैं, के लिए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर राज्यों के प्रदर्शन और कोविड-19 हेल्थ रिपोर्टिंग डेटा के बीच भी, एक आपसी रिश्ता है. स्टडी में पता चला कि जो राज्य एसडीजी में बेहतर कर रहे थे, उनका प्रदर्शन कोविड-19 रिपोर्टिंग में भी बेहतर था.


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असमानता से सामने आई रिपोर्टिंग की एकीकृत प्रणाली की कमी

सभी राज्यों की सीडीआरएस असमानताओं में तीन चीज़ें सामने आईं- कोविड-19 डेटा के लिए एकीकृत ढांचे की कमी, जिससे एक कारगर देशव्यापी रेस्पॉन्स का समन्वय करना मुश्किल हो जाता है. दूसरी, राज्यों के बीच तालमेल का अभाव, और तीसरी, कोई व्यक्ति जिस राज्य में रहता है, उसके हिसाब से लोक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी तक पहुंचने में असमानता.

सीडीआरएस से देश भर में, कोविड-19 डेटा रिपोर्टिंग क्वॉलिटी में, अंतर की पहचान करने में सहायता मिलती है और इससे पता चलता है कि रिसर्चर्स के मुताबिक, ‘सभी राज्यों में काफी सुधार की गुंजाइश है’.

इस स्कोर से राज्यों को हर श्रेणी में, अपनी शक्तियां और कमजोरियां पहचानने में मदद मिलती है. उन्होंने लिखा, ‘जिन राज्यों का किसी श्रेणी में अच्छा स्कोर है, वो दूसरे राज्यों के लिए रोल मॉडल बन सकते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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