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Wednesday, 20 November, 2024
होमइलानॉमिक्सऊंची मुद्रास्फीति का मतलब ये नहीं है, कि आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ब्याज दरें बढ़ा दे

ऊंची मुद्रास्फीति का मतलब ये नहीं है, कि आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ब्याज दरें बढ़ा दे

सप्लाई चेन्स के धीरे धीरे फिर से शुरू होने के साथ ही, मुद्रास्फीति घट सकती है. लॉकडाउन से भी आंकड़े सीमित हो गए हैं, इसलिए दरें बदलने से पहले, एमपीसी को इंतज़ार करना चाहिए.

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जून के महीने में हेडलाइन इनफ्लेशन 6.09 प्रतिशत था, जो आरबीआई की टार्गेट रेंज 4 प्रतिशत, (2 प्रतिशत कम या ज़्यादा) से थोड़ा अधिक था. आंकड़ों का यही वो मुख्य बिंदु है, जिसपर मॉनिटरी पॉलिसी कमीटी, अपनी अगली बैठक में पॉलिसी रेट के बारे में फैसला लेते समय विचार करेगी. ये बैठक अगले महीने के शुरू में होगी.

सामान्य हालात में, टार्गेट बैण्ड से आगे बढ़ी मुद्रास्फीति के बाद, ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं, लेकिन डिटेल्स से पता चलता है कि वृद्धि की ज़रूरत नहीं है.

मूल्यों में निरंतर और व्यापक वृद्धि के बाद, आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला लेगा. जून की मुद्रा स्फीति, मूल्यों में व्यापक वृद्धि को नहीं दर्शाती. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के कुछ हिस्सों में, मूल्यों में दिखी वृद्धि लगता है काफी हद तक, सप्लाई साइड की बाधाओं की वजह से है. इसके अस्थाई रहने की अपेक्षा की जा सकती है.


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ग्रामीण बनाम शहरी

ग्रामीण हेडलाइन मुद्रास्फीति मई के 6.18 प्रतिशत से बढ़कर, जून में 6.20 प्रतिशत हो गई, उधर शहरी मुद्रास्फीति इसी अवधि में, 6.43 प्रतिशत से घटकर 5.9 प्रतिशत पर आ गई.

पिछले तीन महीनों में, कुल मिलाकर मुद्रास्फीति काफी हद तक खाद्य मुद्रास्फीति पर सवार रही है. सप्लाई चेन्स के चालू होने के साथ, कुल इनफ्लेशन में खाद्य का योगदान, मई और जून में भले ही घट गया हो, लेकिन कुल इनफ्लेशन में दो-तिहाई योगदान अभी भी खाद्य पदार्थों का है. खाद्य मुद्रा स्फीति, मई के 8.37 प्रतिशत से घटकर, जून में 7.29 प्रतिशत पर आ गई. खाद्य मुद्रास्फीति में ये गिरावट ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देखी गई. अच्छे मॉनसून और खरीफ फसल की संतोषजनक बुवाई के साथ, आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति में और गिरावट आ सकती है.

जून में मुद्रास्फीति की जिन श्रेणियों में वृद्धि देखी गई, वो थे कपड़े और जूते; पान तंबाकू और नशीले पदार्थ; और अन्य वस्तुएं. इस तीनों श्रेणियों में, ग्रामीण इलाक़ों में वृद्धि देखी गई, जबकि शहरी इलाक़ों में गिरावट दर्ज हुई.

ग्रामीण भारत में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों की महंगाई, मई के 4.84 प्रतिशत से उछलकर, जून में 9.93 प्रतिशत हो गई. शहरी इलाक़ों में, ये 10.35 प्रतिशत से गिरकर 9.12 प्रतिशत पर आ गई. कपड़ों और जूतों की श्रेणी में भी, इसी तरह की प्रवृति देखी गई- ग्रामीण मुद्रा स्फीति थोड़ा ऊपर उठी, लेकिन शहरी मुद्रा स्फीति नीचे आ गई. अन्य आईटम्स की श्रेणी में, संयुक्त मुद्रास्फीति में मई के मुकाबले, जून में गिरावट देखी गई, लेकिन ग्रामीण मुद्रा स्फीति 4.41 प्रतिशत से बढ़कर 5.3 प्रतिशत हो गई. अन्य वर्ग में शहरी मुद्रास्फीति 7.28 प्रतिशत से घटकर 6.14 प्रतिशत पर आ गई. अन्य वर्ग की मुद्रास्फीति में इज़ाफा, काफी हद तक यातायात और संचार का ख़र्च बढ़ने से हुआ, जो ख़ुद लॉकडाउन का नतीजा हो सकता है.

भारत में मुद्रास्फीति का एक और सूचक है कोर इनफ्लेशन- इसमें खाद्य और फ्यूल को बाहर रखकर महंगाई देखी जाती है. कोर इनफ्लेशन मई के 4.9 प्रतिशत से बढ़कर जून में 5.05 प्रतिशत हो गया. शहरी कोर इनफ्लेशन 5.7 प्रतिशत से घटकर 4.98 प्रतिशत पर आ गया, लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में ये 3.8 प्रतिशत से उछलकर, 5.1 प्रतिशत हो गया.


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इनफ्लेशन डेटा की क्वालिटी

एक और मुद्दे का संबंध लॉकडाउन के दौरान इनफ्लेशन डेटा की क्वालिटी से है, जब डेटा जमा करने में दिक़्क़तें आईं.

सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने जून का हेडलाइन इनफ्लेशन डेटा, दो महीने के अंतराल के बाद जारी किया, क्योंकि अप्रैल और मई में फील्ड गणनाकार, क़ीमतों की जानकारी जुटाने के लिए, निर्दिष्ट आउटलेट्स तक नहीं पहुंच सके. अप्रैल और मई में उत्पादों के सौदे भी सीमित थे, इसलिए कुछ उप-समूहों की क़ीमतें भी उपलब्ध नहीं थीं.

सीएसओ की ओर से जारी नोट में कहा गया, कि 23 उप-समूहों में से अप्रैल में 13 और मई में 15 उप-समूहों के सूचकांक संकलित किए गए. सीमित आंकड़ों के साथ राज्य-स्तर के सूचकांक, और अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार करना संभव नहीं था.

ग़ायब डेटा के मुद्दे से निपटने के लिए, सीएसओ ने जून डेटा के साथ अप्रैल और मई के लिए एक इंप्यूटेड एंडेक्स जारी की. जिन उप-समूहों के लिए डेटा उपलब्ध नहीं था, उनका इनफ्लेशन इंडेक्स भी इंप्यूट कर दिया गया. इंप्यूटेशन की ये प्रणाली ‘बिज़नेस कंटीन्युटी गाइडलाइन्स’ से ली गई है, जिसे इंटर-सेक्रिटेरिएट वर्किंग ग्रुप ऑन प्राइस स्टैटिस्टिक्स ने जारी किया था.

लेकिन, पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों जैसे कुछ उप-समूहों की क़ीमतों में तेज़ी से आए उतार-चढ़ाव ने, इंप्यूटेशन प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.


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सप्लाई-साइड के अवरोध

संकेतक मांग में कमी की ओर इशारा करते हैं, लेकिन महंगाई में इज़ाफा सप्लाई साइड के अवरोधों का नतीजा लगता है. रुझानों से पता चलता है कि सप्लाई साइड के अवरोध, और कम संख्या में कलेक्शन सेंटर्स की समस्या, ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा गंभीर थी.

सप्लाई चेन्स के फिर से चालू हो जाने के साथ, आने वाले महीनों में महंगाई में, कमी का रुझान देखा जा सकता है. सीमित डेटा संकलन और इंप्यूटेशन प्रणाली पर संदेह से भी, यही संकेत मिलता है कि आरबीआई की एमपीसी के लिए भी यही उचित होगा, कि ब्याज दरों में बदलाव पर फैसला लेने से पहले, और अधिक डेटा प्वाइंट्स के मिलने का इंतज़ार करें.

इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं.

राधिका पाण्डे एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं.

व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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