नई दिल्ली : 2008 में जब राजस्थान विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष के नाते कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में जीत दिलाकर भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे तो वो बहुत उदास हुए थे.
आख़िरकार उनका ताल्लुक़ मेवाड़ से था- वो इलाक़ा जिसने अतीत में राज्य को तीन मुख्यमंत्री दिए थे- मोहनलाल सुखाड़िया, हरिदेव जोशी और हीरालाल देवपुरा. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अपने प्रदर्शन के बावजूद जिसे हर तरफ से प्रशंसा मिली थी. जोशी मुख्यत: एक कारण से मुख्यमंत्री नहीं बनाए जा सके- वो नाथवाड़ा से अपनी ही सीट हार गए, हालांकि, वो सिर्फ एक ही वोट से हारे.
उस समय अशोक गहलोत को सीएम चुन लिया गया. लेकिन जोशी को सिर्फ एक घंटा लगा अपने दुख का लबादा उतार फेंकने में और पार्टी की जीत का जश्न मनाने वो कांग्रेस ऑफिस पहुंच गए.
राजस्थान कांग्रेस प्रवक्ता सत्येंद्र राघव ने दिप्रिंट से कहा, ‘उस दिन मैं उनके साथ था और मैं देखकर बहुत प्रभावित हुआ, कि उन्होंने कितनी जल्दी अपने आपको संभाल लिया. वो पुरानी तर्ज़ के नेता हैं- उनके लिए पार्टी हमेशा पहले आती है.’
लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि वो गहलोत से नाराज़ नहीं थे- गहलोत के सीएम बनने से उनके रिश्तों में यक़ीनन तनाव आ गया था.
लेकिन राघव, जिन्होंने दस साल से अधिक जोशी की निकटता में काम किया है, ने कहा कि उन्होंने जोशी को किसी भी क्षण, भावुक होते नहीं देखा.
राघव ने कहा, ‘वो एक विवेकशील व्यक्ति हैं और कभी अपने जज्बात को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते. वो भावुक नहीं हैं लेकिन उनके दिल और दिमाग़ में जो आता है, वो बोल देते हैं.’
लेकिन, हर कोई जोशी के सीधेपन को हमेशा अच्छे से नहीं लेता.
प्रदेश चुनावों के एक साल बाद, जोशी ने भीलवाड़ा से लोकसभा सीट जीत ली और यूपीए-2 कैबिनेट में वो ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री बना दिए गए. बहुत कम बोलने वाले जोशी को, अकसर ‘अक्खड़’ और ‘रूखा’ समझ लिया जाता था- ख़ासकर सिविल सर्वेंट्स के साथ.
इसके बावजूद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में मलाईदार विभाग मिलते रहे- 2011 में हुए एक मंत्रिमंडल फेरबदल में उन्हें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री बनाया गया, एक साल बाद रेलवे का अतिरिक्त प्रभार दिया गया.
2018 में राजस्थान स्पीकर बनने से पहले जोशी चार साल तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव रहे. पिछले हफ्ते जोशी ने सचिन पायलट और 18 ‘बाग़ी’ विधायकों को अयोग्यता नोटिस जारी किया- उनके इस क़दम को पायलट ख़ेमे ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दे दी.
मंगलवार को हाईकोर्ट ने जोशी से कहा कि पायलट समेत 19 बाग़ी विधायकों को जारी किए गए अयोग्यता नोटिसों पर, 24 जुलाई तक कार्रवाई न करें. तभी कोर्ट इन नोटिसों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला भी सुनाएगा.
10 राज्यों के प्रभारी ने नाते पूरी तरह ‘विफल’
नाथवाड़ा से केंद्रीय कैबिनेट और अंत में राजस्थान विधान सभा स्पीकर बनाए जाने तक- पार्टी के अंदर जोशी की तेज़ी से तरक़्क़ी की वजह, गांधी परिवार से उनकी निकटता को माना जाता है.
राजस्थान कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘वो गांधी परिवार के पक्के वफादार हैं. ख़ासकर राहुल गांधी के. राहुल के दिल में उनके लिए एक ख़ास जगह है.’
इस ‘ख़ास जगह’ की मिसाल ये है कि कांग्रेस की सामान्य रूप से ‘एक महासचिव, एक राज्य’ की नीति को, उनके लिए किस तरह दरकिनार किया गया. महासचिव और प्रभारी के नाते जोशी की अगुवाई में आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों और बिहार, पश्चिम बंगाल और अंडमान निकोबार आईलैण्ड्स में 2017-18 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.
मार्च 2018 में, नागालैण्ड कांग्रेस अध्यक्ष केवे खापे थेरी न उत्तरपूर्व के प्रभावी महासचिव के नाते, जोशी के इस्तीफे की मांग की.
थेरी ने दावा किया कि उन्होंने अगस्त 2017 में ही सोनिया गांधी को प्रदेश में पार्टी की दशा से अवगत करा दिया था, लेकिन इस बारे में कुछ नहीं किया गया. उन्होंने ये भी कहा कि जून 2016 में प्रभारी बनाए जाने के बाद से, जोशी ने राज्य का सिर्फ एक दौरा किया.
इसी तरह, त्रिपुरा कांग्रेस के पूर्व नेता प्रद्युत देव बर्मन, जिन्होंने पिछले साल पार्टी छोड़कर अपना ख़ुद का संगठन बना लिया था, दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, कि जोशी ‘4.5 साल में चार घंटे’ के लिए त्रिपुरा आए थे.
पूर्व बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने 2018 में दिप्रिंट से कहा था कि 2015 के प्रदेश चुनावों से पहले, जब ‘महागठबंधन’ की बातचीत चल रही थी. जोशी ने कभी ‘पार्टी के लिए बेहतर डील’ की मांग नहीं की. अगल साल चौधरी जेडी(यू) में शामिल हो गए.
राजस्थान स्थित वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक, प्रकाश भंडारी ने कहा, ‘इन राज्यों में वो बुरी तरह नाकाम रहे, क्योंकि इनके बारे में वो कुछ नहीं जानते थे.’ उन्होंने कहा, ‘एक महासचिव को पार्टी काडर को जानना होता है और स्थानीय राजनीति को भी समझना पड़ता है, जिसके लिए उन्होंने इन राज्यों में कभी परवाह नहीं की. राजस्थान के बारे में वो ये चीज़ें अच्छे से जानते थे.’
कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा
प्रदेश में पार्टी के एक ब्राह्मण चेहरे के तौर पर जोशी कांग्रेस नेतृत्व के जाति मिश्रण में इज़ाफा करते हैं: गहलोत माली जाति से आते हैं, जबकि पायलट गुज्जर हैं.
राजस्थान कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘ब्राह्मण कम्यूनिटी परंपरागत रूप से बीजेपी को वोट करती है. लेकिन पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वो ऐसे नेता बनकर उभरे, जो कांग्रेस को ब्राह्मण वोट दिला सकता था.’
उनके क़रीबी सहयोगी उन्हें एक ‘माइक्रो-मैनेजर’ कहते हैं, जो प्रदेश राजनीति में अंदर तक घुसे हैं.
एक क़रीबी सहयोगी ने कहा, ‘वो प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को शुरू से आख़िर तक जानते हैं. यहां बूथ स्तर की सियासत पर भी उनकी बहुत मज़बूत पकड़ है.’
लेकिन उनकी लोकप्रियता और अनुसरण, गहलोत के सामने फीके पड़ जाते हैं- जिन्हें एक बड़े ज़मीनी नेता के तौर पर देखा जाता है.
भंडारी ने कहा, ‘हां, जोशी लोकप्रिय हैं. लेकिन गहलोत के आगे वो नहीं टिकते.’ उन्होंने आगे कहा, ‘गहलोत को एक ज़मीनी नेता के तौर पर देखा जाता है. कोई कारण है जिस वजह से उन्हें इतनी बार सीएम बनाया गया है.’
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