नई दिल्ली : दिल्ली की 200 साल पुरानी मुबारक बेगम मस्जिद का मुख्य गुंबद राजधानी में हुई भारी बरसात के बाद रविवार तड़के दुर्घटनाग्रस्त हो गया. पुरानी दिल्ली में हौज़ काज़ी चौक के बीच में स्थित हरे और सफेद मेहराब और नक्काशी के साथ बनी खूबसूरत लाल मस्जिद 1823 से अब तक लंबे समय तक खड़ी थी.
मोहम्मद जाहिद, जो मस्जिद में मुज़्ज़िन हैं, ने बताया कि मैंने सुबह छह बजकर पैंतालीस मिनट के आस-पास एक तेज़ आवाज़ सुनी. इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता. मैंने देखा कि मस्जिद का गुंबद ढह गया है. वे 2004 से मस्जिद की सेवा कर रहे है. मस्जिद के सदर (अध्यक्ष) सैयद ज़फर अली के अनुसार, मस्जिद के मुख्य ढांचे के भीतर सिर्फ एक व्यक्ति हादसे के वक़्त नमाज़ पढ़ रहा था.
जफर अली ने दिप्रिंट को बताया, फज्र की नमाज (सुबह की नमाज) हाल ही में संपन्न हुई थी, लेकिन सौभाग्य से बहुत से लोग अपने घर वापस चले गए थे. केवल एक व्यक्ति था जो मस्जिद के अंदर था जो जोर से शोर सुनकर आंगन की ओर दौड़ता हुआ आया.
अली ने कहा कि मस्जिद का गुंबद शायद यह संभवत: बिजली गिरने की वजह से ध्वस्त हुआ, क्योंकि उनके अनुसार जो मस्जिद 200 से अधिक वर्षों से वहां खड़ी थी, वह बस बारिश के कारण गिर नहीं सकती थी.
इतिहासकार राना सफ़वी के अनुसार, मस्जिद पर मौजूद एक संगमरमर की पट्टी पर 1238 की तारीख है, जो इंगित करता है कि मस्जिद का निर्माण 1822-23 के दौरान हुआ था. एक ऐतिहासिक स्मारक को नुकसान पहुंचने के दुःख के बावजूद, मस्जिद के महासचिव इस्लामुद्दीन ने कहा कि वह शुक्रगुज़ार हैं कि किसी को चोट नहीं आई.
इस्लामुद्दीन, जिनके पूर्वजों ने पिछले 20 वर्षों से मस्जिद की सेवा की थी दिप्रिंट को बताते हैं कि ‘यह एक बड़ा हादसा है, लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि कोई भी घायल नहीं हुआ. आमतौर पर 50-60 लोग फज्र की नमाज के दौरान मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए आते हैं.’
हालांकि, एक ऐतिहासिक इमारत होने के बावजूद यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत नहीं बल्कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के दायरे में आती है.
एएसआई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘कौन सी इमारतें एएसआई के दायरे में आएंगी इसके कुछ नियम और कानून होते हैं. केवल कुछ मस्जिदें जैसे कि सुनहरी मस्जिद, जमी मस्जिद हैं जो हमारे अधिकार क्षेत्र में आती हैं.
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सफ़वी ने कहा कि यह शायद इसलिए भी हो सकता है था क्योंकि मस्जिद एएसआई के साथ पंजीकृत नहीं थी.
दिल्ली वक्फ बोर्ड के सदस्य हिमाल अख्तर ने दिप्रिंट को बताया कि बोर्ड ने मामले को देखने के लिए एक टीम का गठन किया. ‘हमारी तकनीकी टीम साइट का निरीक्षण कर रही है. जैसे ही हमें एक रिपोर्ट मिलती है, हम उचित कदम बढ़ाएंगे.
एक अनोखी मस्जिद
चावड़ी बाजार की भीड़ भरी सड़क के किनारे एक छोटे से दरवाज़े कि सीढ़ियां एक खुले आंगन की ओर जाती है, जहां तीन गुम्बदों वाली लाल-बलुआ पत्थर की ये मस्जिद मौजूद है.
इसे मुबारक बेगम ने बनाया था, जो पुणे की एक नर्तकी थी, जो दिल्ली आई और इस्लाम में परिवर्तित हो गई. बाद में उन्होंने दिल्ली के पहले ब्रिटिश निवासी सर डेविड ऑक्टरलोनी से शादी की. 1815 में नेपाल की काजी अमर सिंह थापा की गुरका सेना को पराजित करने वाले जनरल हेस्टिंग्स के तहत ऑक्टरलोनी ने चार स्तंभों में से एक की कमान संभाली थी. उन्होंने सुगौली संधि में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिस से भारत और नेपाल कि सीमा सुनिश्चित हुई थी.
ऑक्टरलोनी की मृत्यु के बाद, मुबारक बेगम ने एक मुगल सैनिक विलायत खान से शादी की और 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी.
इतिहासकार राना सफ़वी, जो ‘शाहजहानाबाद: द लिविंग सिटी ऑफ़ ओल्ड दिल्ली’ की लेखिका हैं ने दिप्रिंट को बताया कि मस्जिद इसलिए विशेष थी क्योंकि यह उस समय भारत में महिलाओं द्वारा बनाई गई बहुत कम मस्जिदों में से एक है.
‘यह मस्जिद एक अहम सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रतीक है क्योंकि यह एक महिला द्वारा बनाई गयी था- और पुरुष अभी भी यहां प्रार्थना करने आते हैं.’
सफ़वी ने बताया, ‘मस्जिद के केंद्रीय आर्च के ऊपर सफेद संगमरमर की पट्टी पढ़ती है कि मुबारक बेगम ने इस मस्जिद का निर्माण किया जो आकाश से बेहतर है और इसकी तुलना यरूशलेम से की गई है.’
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The print desh Mai Hindu mandir b jinke bare Mai likha ja sakta hai…lekin pata nahi kun seculirsm ka Kon sa kida kata hu hai Jo Bina Muslim ke bat Puri nahi hoti…khana hazam nai hota