नई दिल्ली: कोविड-19 की सबसे डरावनी विशेषता इसकी अनिश्चितता है. क्या होता अगर पूर्वानुमान लगाया जा सकता, कि किसे क्या लक्षण होंगे और किस मरीज़ को अंत में ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत पड़ेगी? इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश में, लंदन के किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं ने, ग़ैर-पियर समीक्षा वाले एक पेपर में, मरीजों के लक्षणों के आधार पर, उन्हें 6 ‘क्लस्टर्स’ में वर्गीकृत किया है.
उनका तर्क ये है कि सभी कोविड-19 मरीज़ों में सारे लक्षण नज़र नहीं आते और उनमें संबंध बनाकर एक आंकलन किया जा सकता है, कि कौन मरीज़ अंत में ‘गंभीर’ बीमारी की श्रेणी में आएगा.
कोविड-19 के जो लक्षण मालूम हैं वो हैं- बुख़ार, खांसी, थकान, सांस फूलना, मांसपेशियों में दर्द, गले में ख़राश, दस्त, सूंघने और चखने का अहसास ख़त्म हो जाना.
स्टडी
एक स्मार्टफोन एप का इस्तेमाल करते हुए, स्टडी में ‘एप के 1,653 यूज़र्स का डेटा लिया गया, जिन्होंने बीमारी शुरू होने से लेकर, अस्पताल में भर्ती होने या ठीक होने तक, लगातार अपने लक्षण लॉग किए थे- जिसके लिए डेटा शामिल करने की अंतिम सीमा थी 30 अप्रैल 2020’.
तुलना करने के लिए अलग से 1,047 मरीज़ों का ऐसा ही एक और सेट तैयार किया गया.
शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘3-6 क्लस्टर की तुलना में, जिसमें 8.6 प्रतिशत और 19.8 प्रतिशत को सांस लेने में सपोर्ट की ज़रूरत पड़ी, क्लस्टर एक और दो में, कोविड-19 का हल्का रूप देखा गया जिसमें क्रमश: 1.5 प्रतिशत और 4.4 प्रतिशत को रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत पड़ी’.
उन्होंने लिखा, ‘इन क्लस्टर्स में सबसे अधिक ऊपरी श्वसन तंत्र के लक्षण थे. क्लस्टर एक के मुकाबले दो में मांसपेशियों में दर्द न होने, और क्लस्टर दो में बुख़ार और भोजन छोड़ने के लक्षणों से इन्हें एक दूसरे से अलग किया जा सकता था’.
क्लस्टर एक की औसत उम्र और बीएमआई, उन मरीज़ों के क्लस्टर्स से काफी कम थी, जिन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत पड़ने की संभावना ज़्यादा थी. क्लस्टर 3 में अलग से गेस्ट्रोइंटेराइटिस के लक्षण (दस्त, भोजन छोड़ना) ज़्यादा मज़बूत थे, जबकि रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत कम- 3.7 प्रतिशत थी’.
रिसर्चर्स ने कहा, ‘लेकिन इनके साथ अस्पताल जाने की दर, क्लस्टर एक और दो के मुकाबले ऊंची थी. क्लस्टर 4, 5 और 6 में वो प्रतिभागी शामिल थे, जिनमें कोविड-19 ज़्यादा गंभीर था, और इन क्लस्टर्स में क्रमश: 8.6 प्रतिशत, 9.9 प्रतिशत और 19.8 प्रतिशत मरीज़ों को रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत पड़ी. इन तीन क्लस्टर्स में 5 अलग चीज़ें देखने को मिलीं, जिनमें क्लस्टर 4 में शुरू में ही बेहद थकान के लक्षण थे, और साथ ही छाती में लगतार दर्द और निरंतर खांसी भी बनी हुई थी’.
क्लस्टर 5 के लोगों में कन्फ्यूज़न, भोजन छोड़ने और बेहद थकान के लक्षण मिले. जो लोग क्लस्टर 6 में थे, उनमें सांस की तकलीफ के लक्षण ज़्यादा मुखर थे, जिनमें शुरू में ही सांस फूलना और साथ में सीने में दर्द की शिकायत शामिल थी.
उन्होंने ये भी कहा, ‘दूसरे क्लस्टर्स से तुलना करने पर, इन सांस संबंधी लक्षणों के साथ पेट में तेज़ दर्द, दस्त और कन्फ्यूज़न भी देखे गए. क्लस्टर 5 और 6 में कमजोर लोगों का अनुपात, उन क्लस्टर्स के मुकाबले अधिक था, जिन्हें हम हल्के क्लस्टर्स समझते हैं’.
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वर्गीकरण
कुल मिलाकर, रिसर्चर्स ने जो वर्गीकरण किया है, वो कुछ इस तरह है:
क्लस्टर एक– गले में ख़राश, निरंतर खांसी, सिर दर्द, और सूंघ न पाने की अधिक संभावना. सीने में दर्द भी हो सकता है लेकिन सांस फूलने की संभावना कम है. मांसपेशियों में हल्का दर्द हो सकता है, लेकिन ज़्यादातर ऊपरी सांस नली प्रभावित होती है, लेकिन अमूमन बुख़ार नहीं होता.
इस क्लस्टर के लिए रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत 1.5 प्रतिशत है.
क्लस्टर दो- खांसी, बुख़ार, सिर दर्द और गले में ख़राश. भोजन छोड़ सकते हैं और बीमारी बढ़ने पर सूंघने की क्षमता ख़त्म हो जाती है.
रेस्पिरेटरी सपोर्ट– 4.4 प्रतिशत
क्लस्टर तीन- सांस संबंधी लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन दस्त आते हैं और भूख न लगने से मरीज़ खाना छोड़ देता है.
रेस्पिरेटरी सपोर्ट – 3.7 प्रतिशत
क्लस्टर चार- खांसी, सीने में दर्द और सर दर्द के लक्षण सबसे अधिक होते हैं. बीमारी बढ़ने पर थकान लगती है, और कुछ मामलों में हल्का बुख़ार होता है. बाद के दिनों में सूंघना भी बंद हो जाता है.
रेस्पिरेटरी सपोर्ट – 8.6 प्रतिशत
क्लस्टर पांच- सिर दर्द, बुख़ार, खांसी और गले में ख़राश के साथ दस्त, भोजन छोड़ना, मांसपेशियों में दर्द, सीने में दर्द, पेट में दर्द, आवाज़ भर्राना और सूंघ न पाना.
रेस्पिरेटरी सपोर्ट– 9.9 प्रतिशत
क्लस्टर छह: तक़रीबन सभी लक्षण मौजूद होते हैं, जिसमें बीमारी बढ़ने पर सांस फूलना भी शामिल है. तेज़ सर दर्द, बुख़ार, खांसी और भूख न लगने की भी शिकायत होती है.
रेस्पिरेटरी सपोर्ट – 19.8 प्रतिशत
स्टडी की उपयोगिता के बारे में बात करते हुए, रिसर्चर्स ने कहा: ‘मेडिकल संसाधनों की ज़रूरतें खड़ी होने से पहले, उनका पूर्वानुमान लगाने की क्षमता की, इस महामारी में बहुत उपयोगिता है. अगर व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाए, तो स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले और प्रबंधक, मरीज़ों के बड़े समूहों को ट्रैक करके, ज़रूरत पड़ने से पहले ही पूर्वानुमान लगा सकते हैं, कि कितनी संख्या में मरीज़ों को अस्पताल की देखभाल, और रेस्पिरेटरी सपोर्ट की ज़रूरत होगी. इससे वो स्टाफ, बेड और इंटेंसिव केयर की बेहतर प्लानिंग कर पाएंगे.
‘क्लीनिकल यंत्र के तौर पर, इस अप्रोच को स्थानीय स्तर पर अमल में लाया जा सकता है, जिससे उनकी प्राइमरी हेल्थ केयर टीमें, दूर बैठे ही मरीज़ों पर नज़र रख सकती हैं, और यदि किसी में ऐसे रोग लक्षण नज़र आते हैं, जिनका संबंध हाई रिस्क क्लस्टर से हैं तो उनके अलर्ट सिस्टम्स चालू हो जाते हैं’.
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