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Wednesday, 20 November, 2024
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कैसे 13 वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश कुमार की लड़ाई की बखिया उखड़ गई

2007 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर एक ज़ोरदार भाषण दिया था. लेकिन बाद के सालों में लगता है उस लड़ाई की चमक ग़ायब हो गई है.

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पटना: 15 अगस्त 2007 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर एक ज़ोरदार भाषण दिया था.

नीतीश ने ये ऐलान करके अधिकारियों को भौंचक्का कर दिया था कि एक स्वतंत्र स्पेशल विजिलेंस यूनिट (एसवीयू) गठित की जाएगी, जिसमें सीबीआई के रिटायर्ड अधिकारी रखे जाएंगे और जो आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के भ्रष्टाचार की जांच करेगी.

ये ऐलान सरकार की ओर से तैयार आधिकारिक भाषण में शामिल नहीं था. जिसकी अधिकारियों ने अपेक्षा नहीं की थी, लेकिन जिसका भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया.

उस दिन के 13 साल बाद आज एसवीयू लगभग निष्क्रिय हो चुकी है. पूर्व सीबीआई अधिकारियों के लिए स्वीकृत पदों में, इसमें केवल एक रिटायर्ड अधिकारी है.

फिलहाल एसवीयू के प्रमुख एक आईजी स्तर के अधिकारी संजय रतन हैं. लेकिन उनके पास भी ये यूनिट अतिरिक्त कार्यभार के तौर पर है.

आधिकारिक वेबसाइट दिखाती है कि अपने गठन के बाद से एसवीयू ने सिर्फ चार मामलों की जांच की है. पहला और सबसे हाईप्रोफाइल केस 2007 में पूर्व डीआईजी नारायण मिश्रा के खिलाफ दर्ज किया गया था.

नीतीश सरकार ने अपनी राजनीतिक पूंजी सुनिश्चित कर ली, जब 2012 में उसने पटना में नारायण मिश्रा का घर ज़ब्त करके, उसे दिव्यांग बच्चों के स्कूल में तब्दील कर दिया. मिश्रा के खिलाफ मुक़दमा अभी भी चल रहा है.

लेकिन उसके बाद से किसी आईएएस या आईपीएस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

आख़िरी केस 2018 में आईपीएस अधिकारी विवेक सिंह के खिलाफ मुज़फ्फरपुर के एसपी के नाते दर्ज हुआ था. सीआईडी की आर्थिक अपराध शाखा ने सिंह के खिलाफ छापेमारी की थी, लेकिन वो केस एसवीयू को सौंप दिया गया है.

एवीयू का कहना है कि उस मामले की अभी जांच चल रही है.

डीजी स्तर के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘एसवीयू का अंत दुर्भाग्यपूर्ण है. उसे इस विचार के साथ गठित किया गया था, कि ऊंचे स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए भारत सरकार के प्रशिक्षित अधिकारियों की सेवाएं ली जाएंगी.’

सिविल सर्विस में भ्रष्टाचार मामलों की घटती संख्या के बारे में पुलिस बिल्कुल भी बात करने की इच्छुक नज़र नहीं आती. बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डे ने दिप्रिंट से कहा, ‘हो सकता है कि वेबसाइट अपडेट न की गई हो. मुझे चेक करना होगा. मैं संबंधित अधिकारियों से कहूंगा.’

नीतीश के नीचे फीकी पड़ी भ्रष्टाचार से लड़ाई

बिहार सरकार में एसवीयू ही अकेली भ्रष्टाचार विरोधी इकाई नहीं है. जिसकी चमक फीकी पड़ गई है. दूसरी इकाइयां भी इसी राह पर हैं.

2013 में, जब अन्ना हज़ारे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, तब नीतीश कुमार ने सीआईडी की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) का गठन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाया.

इस शाखा के गठन से पहले, सरकार में भ्रष्टाचार से निपटने का काम सतर्कता विभाग करता था. ईओडब्लू ने शुरू में कुछ अधिकारियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले दर्ज किए. लेकिन अब वो केवल नशीले पदार्थों, नॉन-बैंकिंग फाइनैंशियल कम्पनीज़, साइबर अपराध, और शराब माफिया के मामले ही देखती है. पिछले दो सालों में इसने किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया है.

सरकार के भीतर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए, गृह विभाग के अंतर्गत आने वाली मूल इकाई विजिलेंस ब्यूरो भी, दर्ज मामलों की संख्या को लेकर धीमी पड़ गई है.

2005 में जब नीतीश पहली बार सत्ता में आए, तो विजिलेंस ब्यूरो बहुत सक्रिय हो गया था. उनके शासन के पहले दो सालों में, प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ कथित रूप से रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद, 122 अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए.

इसके विपरीत, लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के 15 साल के पिछले राज में ब्यूरो ने अधिकारियों को रंगे हाथ पकड़वाकर, केवल 47 मामले दर्ज किए.

हालांकि नीतीश सरकार के अलग अलग कार्यकालों में विजिलेंस ब्यूरो ने 906 मामले दर्ज किए हैं, लेकिन हाल के कुछ सालों में ये संख्या तेज़ी से घटती जा रही है.

ब्यूरो ने 2017 में ऐसे 83 केस दर्ज किए, 2018 में 45, और 2019 में 36 केस दर्ज किए. कोविड महामारी की वजह से 2020 के कोई रिकॉर्ड्स नहीं हैं.

नाम न बताने की शर्त पर विजिलेंस ब्यूरो के एक अधिकारी ने कहा कि मामलों के धीमा पड़ जाने से ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर असर पड़ा है.


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उन्होंने कहा कि इसके नतीजे में मुखिया लोग सरकारी सहायता बांटे जाने के लिए पैसा लेने लगे हैं और ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए ज़िला ट्रांसपोर्ट ऑफिस के कर्मचारी भी पैसे ले रहे हैं.

विजिलेंस ब्यूरो के उस अधिकारी ने कहा, ‘कुल मिलाकर हमारे पास स्टाफ कम है, और काम का बोझ ज़्यादा है.’ उन्होंने ये भी कहा, ‘काम के अधिक बोझ और प्रोत्साहन न होने के कारण कोई विजिलेंस ब्यूरो में नहीं रहना चाहता.’

घेरे में स्वयं मुख्यमंत्री

2005 में सत्ता में आने के समय नीतीश ने ऐलान किया था कि वो 3 सी बर्दाश्त नहीं करेंगे- करप्शन, क्राइम और कम्यूनलिज़्म.

लेकिन मुख्यमंत्री ख़ुद आरोपों के घेरे में आ गए हैं. मुख्य रूप से सृजन घोटाले की वजह से, जो 2017 में पहली बार सामने आया था. इस घोटाले में 2,000 करोड़ रुपए की सरकारी राशि को कथित रूप से धोखे से सृजन महिला विकास सहयोग समिति (एसएमवीएसएस) नाम की एक एनजीओ को ट्रांसफर कर दिया गया, जो अलग अलग ज़िलों में महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने का दावा करती थी.

नीतीश आलोचनाओं के निशाने पर रहे हैं. चूंकि जून के आख़िरी हफ्ते में सीबीआई ने बिहार काडर के एक पूर्व आईएएस, केपी रमैया के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी, जो मुख्यमंत्री की जेडी(यू) में शामिल हो गए हैं. रमैया ने 2014 में जेडी(यू) के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था. वो भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट्स में से थे, जहां से कथित रूप से, एनजीओ के खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया.

इसकी वजह से विपक्ष ने नीतीश राज को घोटालों की सरकार क़रार दिया है. विडम्बना ये है कि 2005 में इस वाक्य का इस्तेमाल, बीजेपी और जेडी(यू) नेताओं ने लालू-राबड़ी शासन के लिए किया था.

आरजेडी विधायक समीर कुमार महासेठ ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये सच है कि नीतीश कुमार भ्रष्ट लोगों को पसंद नहीं करते. लेकिन वो राजनेताओं पर नहीं, बल्कि नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं, जिनमें भ्रष्टाचार व्याप्त है.’

‘इसके नतीजे में लालू के ज़माने की अपेक्षा, आज भ्रष्टाचार कई गुना बढ़ गया है. लालू के ज़माने में लोग उनके पास आकर अधिकारियों के रिश्वत मांगने की शिकायत किया करते थे. लालूजी संबंधित अधिकारियों को बुलाकर उन्हें डांट लगाया करते थे. अब लोग नीतीश कुमार के पास सीधे नहीं जा सकते. उन्हें उसी भ्रष्ट नौकरशाही के पास जाना होता है.’

महासेठ ने आगे कहा, ‘क्या फायदा है भ्रष्टाचार विरोधी इकाइयां रखने का अगर वो करप्शन पर लगाम नहीं लगा सकतीं? इससे बेहतर तो ये है कि वो इन्हें ख़त्म ही कर दें.’

जेडी (यू) नीतीश की निजी ईमानदारी की कसमें खाती है.

जेडी (यू) मंत्री नीरज कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘2005 में, प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि वो कोई किसी दाग़दार को मंत्री नहीं बनाएंगे. जीतन राम मांझी के खिलाफ उन दिनों एक विजिलेंस केस था और जब ये बात पता चली, तो उन्हें मंत्री पद की शपथ लेने के दिन ही, हटा दिया गया.’

‘डीजीओ स्तर तक के भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. बल्कि हम तो 2017 में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महागठबंधन से बाहर आ गए थे, जब सीबीआई ने भ्रष्टाचार के एक मामले में तेजस्वी यादव को आरोपी बनाया था.’

कुमार ने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने की नीतीश की राजनीतिक प्रतिबद्धता पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक ख़ामियों पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

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