नई दिल्ली: चीन ने शुक्रवार को कहा कि गलवान घाटी की झड़प एक ऐसी ‘परिस्थिति थी जिसे भारत या चीन कोई नहीं देखना चाहेगा’ और दोनों साइड से सीमावर्ती सैनिक फिलहाल ‘पीछे हट रहे हैं’. उन्होंने ये भी कहा कि दोनों पक्षों को ‘विरोधी की बजाय सहयोगी होना चाहिए’.
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 15 जून को हुई घातक झड़प के बाद, चीनी राजदूत सुन वेडोंग ने अपने पहले संबोधन में कहा– ‘मिलिट्री कोर कमांडरों की बातचीत में हुई सहमति के अनुसार, फिलहाल हमारे सीमावर्ती सैनिक ज़मीन से पीछे हट रहे हैं’.
राजदूत का बयान, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री व स्टेट काउंसिलर वांग यी, जो सीमा से जुड़े मामले पर वहां के विशेष प्रतिनिधि हैं, के बीच फोन पर हुई बातचीत के कुछ दिन बाद ही आया है.
सुन ने कहा कि गलवान घाटी में जो हुआ, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग के बीच हुए समझौते के बारे में गलत धारणा बन गई है, जो अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘इनसे द्विपक्षीय संबंधों में बाधाएं आ गई हैं’. उन्होंने आगे कहा कि चीन और भारत को इस समझ को आगे बढ़ाना चाहिए कि विवाद मतभेद न बन जाएं, जिस पर मोदी और जिंपिंग वुहान और मामल्लापुरम में, अपनी अनौपचारिक शिखर वार्ता में सहमत हुए थे.
सुन ने इस पर भी जोर दिया- ‘चीन शुरू से कहता आ रहा है कि शांति सबसे महत्वपूर्ण है. न तो हम कोई लड़ाकू देश हैं और न ही हमारे अंदर हठधर्मी है. गलवान घाटी में हाल ही में जो घटा, उसका सही और गलत बहुत साफ है. चीन मज़बूती से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा और सीमावर्ती इलाकों में शांति सुनिश्चित करेगा’.
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आपसी रणनीतिक हित
सुन ने कहा कि चीन और भारत के बीच आपसी रणनीतिक हित हैं और ‘दोनों देशों को एक दूसरे से कोई खतरा नहीं है’, हालांकि दोनों पक्ष एलएसी पर हुए हिंसक टकराव में उलझे रहे, जो शुरू मई में चालू हुआ था.
उन्होंने कहा, ‘केवल एक सकारात्मक, खुले और समावेशी रवैये से, एक दूसरे के इरादों के बारे में सही राय बनाकर ही, हम द्विपक्षीय रिश्तों का दीर्घ-कालीन विकास सुनिश्चित कर सकते हैं और रणनीतिक गलत फहमियों से बच सकते हैं’.
राजदूत ने ये भी कहा, ‘चीन और भारत ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की वकालत की है और स्वतंत्र विदेश नीतियां बनाए रखी हैं. बदलते हुए वैश्विक परिवेश में हमें प्राकृतिक रूप से, एक दूसरे को एक पॉज़िटिव फेक्टर की तरह देखना चाहिए और विकास के अपने-अपने सपनों को पूरा करने में, साझीदार की तरह देखना चाहिए. चीन को आशा है कि वो अच्छे से विकसित होगा और भारत के लिए भी वो यही कामना करता है’.
चीन-भारत सीमा मुद्दा ‘संवेदनशील और पेचीदा’
बृहस्पतिवार को डोभाल और वांग के बीच हुई बातचीत में, भारत ने चीन के सामने ‘क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता‘ का मुद्दा उठाया और ये भी कहा कि एलएसी का ‘सम्मान’ सख़्ती के साथ बनाए रखना चाहिए.
सुन ने कहा कि भारत और चीन के बीच में सीमा रेखा तय करने का काम, एक ऐसा सवाल है जो ‘इतिहास का छोड़ा हुआ है’, और ये अभी भी ‘संवेदनशील और जटिल’ बना हुआ है.
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उन्होंने कहा, ‘अभी तक हमने कई व्यवस्थाएं स्थापित की हैं, जैसे कि चीन-भारत सीमा के मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता, और कूटनीतिक व सैन्य चैनलों के माध्यम से संचार को अच्छे से बनाए रखा है’. उन्होंने आगे कहा कि फोन पर बातचीत में दोनों विशेष प्रतिनिधि, दोनों देशों के नेताओं के बीच अनौपचारिक शिखर वार्ता में बनी महत्वपूर्ण आमराय का अनुसरण करने पर सहमत हो गए.
राजदूत ने कहा कि चूंकि दोनों पक्षों के सामने अब एक ‘जटिल परिस्थिति है’, इसलिए नई दिल्ली और बीजिंग दोनों को ‘एक व्यापक और दूरदर्शी नज़रिया अपनाते हुए उसपर काबू पाना चाहिए और जितना जल्दी संभव हो स्थिति को पलट देना चाहिए’.
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