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Wednesday, 20 November, 2024
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स्वास्थ्य मंत्रालय का पेपर कहता है अप्रैल में शुरू हो गया था कोविड कम्यूनिटी ट्रांसमिशन, सरकार करती है इनकार

कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का मतलब है, संक्रमण का स्रोत जाने बिना किसी बीमारी का फैल जाना. सरकार ने 11 जून को अपना इनकार दोहराया था.

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नई दिल्ली: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पिछले हफ्ते जारी गाइडेंस डॉक्युमेंट ने लगता है, कोविड-19 से जुड़े भारत के सबसे बड़े राज़ से परदा उठा दिया है. इसमें कहा गया है कि भारत में अप्रैल में ही कम्यूनिटी ट्रांसमिशन हो गया था.

4 जुलाई को जारी किए गए डॉक्युमेंट में, जिसका शीर्षक था ‘गाइडेंस फॉर जनरल मेडिसिन एंड स्पेशिएलाइज़्ड मेंटल हेल्थ केयर सेटिंग्स’ कहा गया, ‘इस प्रकाशन के समय, अप्रैल 2020 के शुरू में, भारत अभी भी सीमित कम्यूनिटी स्प्रेड की स्टेज में है, और कुछ पता नहीं है कि ये महामारी आगो चलकर क्या रूप लेगी. अधिकांश मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएं इस बात को लेकर हैं, कि दुनिया के दूसरे देशों में अभी तक क्या हुआ है, ये डर है कि आने वाले दिनों में क्या हो सकता है, और लॉकडाउन में क्या होगा’.

यूएस सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, कम्यूनिटी स्प्रेड तब होता है जब संक्रमण के सोर्स का पता चले बिना, कोई बीमारी फैल जाती है.

गाइडेंस डॉक्युमेंट का ये बयान कम्यूनिटी ट्रांसमिशन पर सरकार की अधिकारिक पोज़ीशन के उलट है.

11 जून को कोविड-19 पर सरकार की आख़िरी ब्रीफिंग में, 65 ज़िलों में सेरो सर्वे के नतीजे जारी करते हुए, आईसीएमआर के डीजी और स्वास्थ्य शोध विभाग के सचिव, डॉ बलराम भार्गव ने कहा था: ‘इतने बड़े देश के लिए फैलाव इतना कम है, छोटे ज़िलों में एक प्रतिशत से भी कम, और शहरों तथा कंटेनमेंट ज़ोन्स में थोड़ा अधिक. इसलिए भारत यक़ीनन कम्यूनिटी ट्रांसमिशन में नहीं है’.

सेरो सर्वे में पता चला था कि अतीत में, क़रीब 0.73 प्रतिशत आबादी तक संक्रमण पहुंच चुका था. भार्गव ने कहा था,’इसका मतलब है कि इसे कम रखने, और तेज़ी से फैलने से रोकने के लॉकडाउन उपाय कामयाब रहे थे’.

इस ख़बर पर कमेंट लेने के लिए दिप्रिंट ने, स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क किया, लेकिन वहां से मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार नीलांबुज शरन के पास भेज दिया गया, जो मानसिक स्वास्थ्य देखते हैं. उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया.


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बेक़ाबू फैलाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार, ‘कम्यूनिटी ट्रांसमिशन उन देशों/इलाक़ों/क्षेत्रों में होता है, जहां लोकल ट्रांसमिशन के बड़े प्रकोप फैलते हैं, जिन्हें इन कारकों के आंकलन से परिभाषित किया जाता है, लेकिन जो इन तक सीमित नहीं होते:

-बड़ी संख्या में ऐसे मामले जिन्हें ट्रांसमिशन चेन्स से नहीं जोड़ा जा सकता.

-सेनिटल लैब सर्विलांस से बड़ी संख्या में मामले सामने आए.

-देशों/क्षेत्रों/इलाक़ों की बहुत सी जगहों पर बहुत सारे ‘असंबद्ध क्लस्टर्स.’

दूसरे शब्दों में, कम्यूनिटी ट्रांसमिशन तब माना जाता है, जब स्वास्थ्य सिस्टम वायरस के प्रसार के साधन का रास्ता भटक जाता है, और नए संक्रमण के सोर्स का पता नहीं लगाया जा सकता.

इससे एक चिंता पैदा होती है, क्योंकि, सिद्धांत रूप से, ये संक्रमण किसी को किसी भी जगह हो सकता है.

हालांकि भारत में ऐसे मामले हुए हैं, जिनकी सोर्स का पता नहीं लगाया जा सका है, लेकिन भारत सरकार पिछले चार महीने से लगातार, कम्यूनिटी ट्रांसमिशन से इनकार करती आ रही है.

लेकिन कई सूबों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि हो सकता है कि कम्यूनिटी ट्रांसमिशन चल रहा हो. इनमें ताज़ा मिसाल हैं कर्नाटक के क़ानून मंत्री जेसी मधुस्वामी, जिन्होंने चिंता जताई कि सार्स-सीओवी-2 का कम्यूनिटी स्प्रेड हो सकता है.

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी पिछले महीने कम्यूनिटी ट्रांसमिशन को लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त की थीं, और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी यही किया था.


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एक और सरकारी दस्तावेज़ ने इसे माना

शुरू में 5 मार्च को ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था: ‘चूंकि, यात्रा से जुड़े कोविड-19 मामलों के अलावा, कुछ मामले कम्यूनिटी ट्रांसमिशन के भी देखे गए हैं, इसलिए ज़िला कलेक्टरों को शामिल करने का फैसला किया गया है, और राज्यों से ज़िला, ब्लॉक और गांव के स्तर पर, रैपिड रेस्पॉन्स टीमें बनाने के लिए कहा गया है’.

यही वो समय था जब भारत में मामलों का पहला क्लस्टर, आगरा में होने की ख़बर आई, जिसे दो लोगों से जोड़ा गया, जो इटली से ऑस्ट्रिया के रास्ते भारत आए थे, और जिनके साथ दिल्ली के मयूर विहार का एक निवासी भी था.

लेकिन उसके बाद से, भारत सरकार मेहनत के साथ हर संभव मंच से, कम्यूनिटी ट्रांसमिशन से इनकार करती आई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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