भारत ने लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की हेकड़ी निकाली है और चीनी कंपनियों के बहिष्कार के साथ इसका जवाब भी दिया है, ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि अपने आर्थिक विकास को इनोवेशन आधारित स्टार्टअप पर निर्भर बनाया जाए.
ये वो कंपनियां हैं जो समग्र उत्पादकता, रोजगार, धन और इसके फलस्वरूप कर राजस्व को तेजी से बढ़ाती हैं.
2019 में 1,500 या उससे अधिक स्टार्टअप में 5 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश के साथ भारत के पास अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है. भारत में ऐसे करीब 30 यूनिकॉर्न भी हैं, जो 1 अरब डॉलर से अधिक वैल्यू के स्टार्टअप हैं. हालांकि, इन स्टार्टअप में निवेश का 80 फीसदी से अधिक धन भारत के बाहर से आता है. पिछले कुछ सालों में चीनियों ने भारतीय स्टार्टअप में 4 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है और 30 में से 18 भारतीय यूनीकॉर्न में निवेशक भी हैं. हमें स्टार्टअप के वित्तपोषण में जल्द से जल्द आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है.
स्टार्टअप की मदद
यहां तक पहुंचने के लिए हमें अपने स्टार्टअप के वित्तपोषण के लिए पर्याप्त घरेलू पूंजी जुटाने में सक्षम होना पड़ेगा. घरेलू पूंजी सुलभ कराने के लिए तीन प्रमुख सुधारों पर विचार किया जा सकता है. पहला स्टार्टअप में गैर-सूचीबद्ध निवेश को भी सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में निवेश के बराबर माना जाए. दूसरा, प्रमुख संस्थागत निवेशक जैसे कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) और बीमा कंपनियां, अपने कोष का कम से कम 1-3 प्रतिशत धन स्टार्टअप के वित्तपोषण के लिए निर्धारित कर सकते हैं. अंत में, दीर्घकालिक निवेशों को स्टार्टअप को पूंजी मुहैया कराने के लिए पब्लिक मार्केट में सूचीबद्ध किया जा सकता है.
2019 में स्टार्टअप ने इक्विटी के जरिये करीब 40,000 करोड़ रुपये जुटाए. आत्मनिर्भरता के लिए हमें जरूरत है कि घरेलू निवेशक इसका कम से कम 50 फीसदी या हर वर्ष 20,000 करोड़ रुपये का निवेश करें. जैसे भारत प्रगति करता है और हमारी पूंजी की जरूरतें बढ़ती है. हमें एक वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री विकसित करनी होगी जो स्टार्टअप इकोसिस्टम को इक्विटी और डेट सिक्युरिटीज दोनों तरह से लाखों करोड़ों का निवेश मुहैया करा सके.
स्टार्टअप का वित्तपोषण मुख्यत: गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों से होता है, जहां सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ 10 प्रतिशत है, गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों पर निवेश के मामले में यह 20 प्रतिशत है. यदि जरूरत पड़े, गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों पर सिक्युरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) लगाया जा सकता है ताकि गैर-सूचीबद्ध और सूचीबद्ध प्रतिभूतियों के बीच पूरी कर एकरूपता बनी रहे.
घरेलू पूंजी को मजबूती
दूसरे, गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में कर एकरूपता होने पर, भारत के बड़े संस्थागत निवेशकों (एनपीएस, अन्य पेंशन फंड, बीमा कंपनियों और फैमिली ऑफिस आदि) के लिए स्टार्टअप के वित्तपोषण में सक्रियता से भागीदारी करना संभव हो पाएगा. मौजूदा समय में कर नुकसान और स्टार्टअप वित्तपोषण के मूल्यांकन के लिए खास कौशल की जरूरत होने के कारण बहुत कम घरेलू संस्थागत निवेशक ही सक्रिय हैं. घरेलू संस्थाओं के लिए परिसंपत्ति आवंटन नीतियां तय करने वाली विभिन्न निवेश समितियां अपनी संपत्ति का 1-3 प्रतिशत स्टार्टअप्स में निवेश करने पर विचार कर सकती हैं.
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घरेलू संस्थागत निवेशक स्टार्टअप इकोसिस्टम की सहायता के लिए वेंचर कैपिटल फंड के माध्यम से निवेश कर सकते हैं. घरेलू वेंचर कैपिटल फंड आमतौर पर निवेश उद्देश्यों के लिए वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) स्ट्रक्चर का उपयोग करते हैं. निजी स्तर पर साझा एआईएफ से अर्जित धन और सभी पूंजीगत लाभ उनके मालिकों के पास जाते हैं और उसी स्तर पर कर लगाया जाता है.
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की फंड-ऑफ-फंड्स स्कीम घरेलू वेंचर कैपिटल फंड शुरू करने के लिए जरूरी निवेश मुहैया कराती है. इस तरीके से, नए वेंचर कैपिटल फंड अपने कोष का करीब 25-30 फीसदी धन सिडबी से जुटाने में सक्षम हैं. हालांकि, वे अक्सर निवेश के लिए विभिन्न घरेलू निवेशकों को खोजने में खासी मशक्कत करते हैं. पेंशन फंड और बीमा कंपनियों की 1-3 प्रतिशत परिसंपत्तियां आवंटित करने की नीतियां बनने से वेंचर कैपिटल फंड ज्यादा घरेलू निवेश जुटाने और तेजी से फलने-फूलने में सक्षम होंगे.
वेंचर कैपिटल उद्योग का विस्तार
घरेलू संस्थानों को वेंचर कैपिटल फंड के चयन और मूल्यांकन के लिए अपना संस्थागत कौशल विकसित करना होगा. विभिन्न वेंचर कैपिटल फंड सीड स्टेज फाइनेंसिंग से लेकर ग्रोथ कैपिटल फाइनेंसिंग तक अलग-अलग निवेश रणनीति अपनाते हैं. कुछ इक्विटी आधारित वित्तपोषण करते हैं, जबकि अन्य ऋण और परिसंपत्ति-आधारित वित्तपोषण पर जोर देते हैं. कुछ वेंचर कैपिटल फंड किसी क्षेत्र विशेष मसलन उपभोक्ता इंटरनेट, स्वास्थ्य देखभाल, या एग्री-टेक आदि को प्राथमिकता देते हैं. वेंचर कैपिटल फंड का तेजी से उभरता समूह वित्तीय और सामाजिक दोनों लिहाज से रिटर्न (जिसे प्रभावपूर्ण निवेश कहते हैं) देता है. स्टार्टअप इस प्रकार की विशिष्ट व्यवस्था से लाभान्वित होते हैं क्योंकि कैपिटल वेंचर फंड निवेश और विशेषज्ञता दोनों मुहैया कराते हैं.
आखिर में, हम वेंचर कैपिटल फंड (पारदर्शी एआईएफ के तौर पर) को अपने कैपिटल मार्केट में सूचीबद्ध होने की अनुमति देने पर विचार कर सकते हैं. अभी, 50 लाख रुपये की वार्षिक आय और 5 करोड़ रुपये की न्यूनतम तरल शुद्ध आय वाले कुछ चुनींदा निवेशकों को ही एआईएफ में निवेश करने की अनुमति है.
सेबी की तरफ से कुछ जरूरी नियम-कानून बनाकर वेंचर कैपिटल फंड को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने की अनुमति दी जा सकती है, इससे स्टार्टअप के लिए घरेलू निवेशकों का आधार बढ़ाना संभव हो सकेगा. स्वाभाविक तौर पर, बेहतर प्रबंधन और निवेश ट्रैक रिकॉर्ड वाले मेच्योर वेंचर कैपिटल फंड ही आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने में सक्षम होंगे. लंदन और सिंगापुर सहित कई स्टॉक एक्सचेंज में वेंचर कैपिटल फंड सूचीबद्ध हैं.
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स्टार्टअप भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए अहम हैं क्योंकि ये इनोवेशन, रोजगार सृजन और धनार्जन को बढ़ाते हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे स्टार्टअप का वित्त पोषण घरेलू स्तर पर हो और यह विदेशी निवेशकों के अनावश्यक प्रभाव में न रहें, हमें घरेलू निवेशकों के जरिये लाखों करोड़ रुपये अपने स्टार्टअप तक पहुंचाने की व्यवस्था करने के लिए कैपिटल वेंचर इंडस्ट्री विकसित करने की जरूरत है. इसके लिए कर, नियामक और नीतिगत बदलावों की आवश्यकता होगी. इससे भी ज्यादा अहम यह है कि हमारे निवेशक स्टार्टअप निवेश से जुड़े उच्च जोखिम-रिटर्न के बारे में जानने और इसका मूल्यांकन करने में सक्षम हों.
जयंत सिन्हा वित्त मामलों की स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष और हजारीबाग से लोकसभा सांसद हैं. यह उनके निजी विचार हैं.
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