रायपुर: देश के 32 प्रतिशत भवन निर्माण सामग्री की आपूर्ति करने वाला छत्तीसगढ़ का आयरन-स्टील उद्योग लंबे देशव्यापी लॉकडाउन के बाद अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. लेकिन राज्य के उद्यमियों का कहना है कि मांग की भारी कमी की वजह से लॉकडाउन से पहले की उत्पादन वाली स्थिति दीपावली तक ही आ पाएगी.
इन उद्योगों में काम कर रहे श्रमिकों ने दिप्रिंट को बताया कि लॉकडाउन के बाद काम शुरू होने पर आमदनी कम हुई है लेकिन उन्हें इस बात की तसल्ली है कि उनकी रोजी रोटी फिर से चल पड़ी है.
छत्तीसगढ़ के आयरन-स्टील, स्पंज आयरन और संबंधित उत्पादों के उद्योगपतियों का कहना है कि अनलॉक के साथ ही उन्होंने दोबारा काम चालू कर दिया है लेकिन श्रमिकों की आधे से भी कम संख्या और 30-70 प्रतिशत उत्पादन के साथ ही काम करना पड़ रहा है.
उनका कहना है कि 70 प्रतिशत आउटपुट वाली कंपनियों की संख्या बहुत ही कम है.
उद्यमियों का कहना है कि बाजार में बिल्डिंग मटेरियल की मांग में भारी कमी और लॉकडाउन के दौरान अपने घर वापस लौटे कुशल श्रमिकों की धीमी वापसी के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है.
रायपुर के श्याम स्टील्स लिमिटेड कंपनी में काम करने वाले बिहार के शंभु यादव का कहना है, ‘लॉकडाउन के समय हमने बहुत ही बुरे दिन देखे लेकिन हम वापस नहीं गए. ठेकेदार हफ्ते में गुजारे के लिए 500 रुपए देता था जिससे काम चल गया. दोबारा काम पर आने से कमाई कम हो गई है लेकिन इस बात की खुशी है कि अब कुछ तो मिलेगा.’
वहीं उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के चंदन कुमार ने बताया, ‘पहले 14 घंटे तक काम चलता था लेकिन अब 8-10 घंटों तक ही काम हो रहा है. आमदनी कम हो गई है लेकिन काम चल रहा है.’ उन्हें यकीन है कि आने वाले दिनों में सब ठीक हो जाएगा.
बता दें कि छत्तीसगढ़ में बिल्डिंग मटेरियल बनाने वाली निजी स्पंज आयरन, रोलिंग मिल्स, मिनी स्टील और फेरो एलॉय कंपनियों की संख्या 400-425 के करीब हैं. इनका कुल उत्पादन करीब 15 लाख टन सालाना है. ये कंपनियां लोहे का सरिया, रॉड, एंगल्स, क्लैंप जैसे निर्माण कार्यों में काम आने वाले कई दूसरे समान बनाती हैं.
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स्थानीय श्रमिकों की भी हो रही है कमी
आयरन स्टील कंपनियों के मालिकों का कहना है कि ब्लास्ट फर्नेस जैसे कार्यस्थल पर तकनीकी कौशल के साथ-साथ मानसिक और शरीरिक क्षमता की भी आवश्यकता होती है जिसमें कुशल श्रमिक पूरी तरह फिट रहते हैं.
उनका कहना है कि ये कुशल श्रमिक ज्यादातर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के हैं. इन श्रमिकों को अधिक तापमान और पावर वाले कार्य जैसे ब्लास्ट फर्नेस के काम में लगाया जाता है जो स्थानीय श्रमिक नहीं कर पाते.
उद्योगपतियों के अनुसार ऐसा नहीं है कि सिर्फ कुशल श्रमिकों की ही कमी है. सामान्य वर्ग के श्रमिकों की उपलब्धता भी करीब 25 प्रतिशत ही है जिसके कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है. इनका कहना है कि ये सामान्य श्रमिक ज्यादातर स्थानीय होते हैं लेकिन कोरोना महामारी के चलते ये भी काम पर नहीं आ रहें हैं जिससे श्रमिकों की संख्या काफी कम रह गई है.
दिप्रिंट से बात करते हुए रायपुर स्थित औद्योगिक क्षेत्र में महामाया रोलिंग मिल एंड स्टील के प्रोपराइटर राजेश अग्रवाल कहते हैं, ‘वर्तमान में प्रदेश की स्पंज आयरन, स्टील और फेरो एलॉयस इकाईयों में उत्पादन 30-70 प्रतिशत के बीच हो रहा है. हालांकि 70 प्रतिशत उत्पादन वाली इकाईयों की संख्या बहुत कम है. ज्यादातर यूनिट्स 30-50 प्रतिशत ही उत्पादन कर रही है.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास सामान्य श्रमिकों की संख्या सिर्फ 25 प्रतिशत ही है. फिलहाल मांग की कमी के कारण मैनेज हो रहा है लेकिन आने वाले दिनों में जब मांग बढ़ेगी तो उसकी आपूर्ति में परेशानी होगी.’
अग्रवाल बताते हैं, ‘स्थिति में पूर्ण सुधार दीपावली तक संभव होगा लेकिन वह भी कोरोना महामारी की स्थिति पर ही निर्भर करेगा.’
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‘कोरोना के कारण निर्माण कार्यों में कमी’
उरला इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विन गर्ग ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रदेश में आयरन एवं स्टील उद्योग और उससे संबंधित औद्योगिक इकाईयां औसतन 50 प्रतिशत उत्पादन करने लगी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि कुछ इकाईयां निचले 30 प्रतिशत और कुछ अधिकतम 70 प्रतिशत उत्पादन भी कर रही हैं. यह उत्पादन उनके पास पहले से उपलब्ध मांग और श्रमिकों की संख्या पर निर्भर है. लेकिन यह तय है कि देश की कुल 30 प्रतिशत मांग पूरी करने वाला प्रदेश का यह उद्योग श्रमिकों की कमी की भारी मार झेल रहा है.’
गर्ग आगे कहते हैं, ‘मई में अनलॉक के शुरुआती दिनों में छत्तीसगढ़ के आयरन और स्टील इंडस्ट्री में भारी मांग देखने को मिली थी जिसके कारण रेट भी अच्छा मिल रहा था. लेकिन 15-20 दिनों पहले यह मांग फिर कोरोना काल वाले निचले स्तर पर आ गई है. इसका कारण दूसरे राज्यों में भी उत्पादन चालू होना है.’
गर्ग का कहना है कि मांग में आई भारी कमी के लिए निजी निर्माण कार्यों में स्थिरता और सरकारों की बदली हुई प्राथमिकता भी जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा, ‘कोरोना महामारी के चलते आज सभी राज्य सरकारें अपने बजट का एक बड़ा भाग बीमारी के इलाज और गरीब और जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री तथा मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने पर खर्च कर रहीं हैं. इसके चलते सरकारी निर्माण कार्य नहीं हो पा रहे हैं.’
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वापस लौटे श्रमिकों को काम और मकान मिलने में परेशानी
हीरा फेरो एलॉयस लिमिटेड में 14 सालों से काम कर रहे राजेन्द्र जांगड़े का कहना है, ‘लॉकडाउन के बाद काम में कमी आई है लेकिन लोगों को पेट पालने का जरिया फिर मिल गया है.’
उन्होंने कहा, ‘कोरोना के डर से अब बाहर के लोगों को काम पर नहीं लिया जा रहा है लेकिन काम में पहले से काफी बदलाव आया है. अब मास्क लगाना पड़ता है और सोशल डिस्टेंसिंग के अनुसार ही काम करना पड़ रहा है. जगह-जगह नल लगे हुए हैं जहां साबुन से हाथ धोना पड़ता है. इसके अलावा कंपनी के कैंपस में आने जाने पर लोगों को और गाड़ियों को सैनिटाइज किया जा रहा है.’
लेकिन इस बीच दूसरे राज्यों से आने वाले श्रमिकों को काम पर नहीं रखा जा रहा है. उद्यमियों का कहना है कि इनके पास कोरोना निगेटिव होने का कोई लिखित प्रमाण नहीं है.
उरला इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के सदस्य और व्यवसायी आर के वर्मा कहते हैं, ‘इन श्रमिकों को अब दोबारा काम पर लेने के लिए कंपनियां इनसे कोरोना निगेटिव होने का प्रमाणपत्र मांग रही हैं लेकिन इनके पास नहीं है. सरकार द्वारा इनका कोरोना टेस्ट तो किया जा रहा है लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आने पर इन्हें नहीं दी जाती.’
उन्होंने कहा, ‘हमने जब स्वास्थ्य अधिकारियों से इस संबंध में बात की तो उनका कहना था कि टेस्ट के बाद जिन लोगों को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने क्वारेंटाइन में नहीं रखा है उन्हें निगेटिव मान लीजिए. ऐसे में इन श्रमिकों पर यकीन कौन करेगा.’
दूसरे राज्य से आने के कारण इन श्रमिकों को 14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन में रहना पड़ेगा. जिसके डर से अब ये श्रमिक अपनी पहचान भी छुपाने लगे हैं.
वर्मा ने बताया कि इन श्रमिकों को अब किराये का मकान या कमरा भी मिलने में तकलीफ हो रही है. उनके अनुसार स्थानीय लोग महामारी के डर से इन्हें किराए पर रखने को तैयार नहीं हैं.