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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतचीन से असली जंग आर्थिक मोर्चे पर होगी और इसके लिए भारत को काफी तैयारी करनी पड़ेगी

चीन से असली जंग आर्थिक मोर्चे पर होगी और इसके लिए भारत को काफी तैयारी करनी पड़ेगी

चीन के नागरिकों की औसत आमदनी हर पांच साल में डबल हो जाती है. चीन का विकास अब देश के अंदर होने वाली खपत पर निर्भर है. आर्थिक हैसियत के मामले में चीन और भारत का फासला क्या कभी मिट पाएगा?

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चीनी कंपनियों के कुछ ठेके रद्द करने और टेक कंपनियों के मोबाइल एप बैन करने के फैसलों के बाद भारतीय मीडिया भले ही दिखा रहा हो कि चीन को ‘दंड’ दे दिया गया है. लेकिन ये सब कुछ ऐसा ही है जैसे हम अपने सपनों में खुद से दस गुना ताकतवर पहलवान को पटखनी दे रहे हों.

भारत में लगभग दस अरब डॉलर का निवेश कर चुकी चीनी कंपनियों के लिए यह बुरा दौर है. लेकिन शी जिनपिंग की नेतृत्व वाली सरकार, चीनी कंपनियों के खिलाफ भारत की कार्रवाइयों पर बहुत ज्यादा बेचैनी नहीं दिखाती. चीन के अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा है कि ऐप बैन करने से चीनी कंपनियों के कारोबार को चोट पहुंचेगी लेकिन चीन की विशालकाय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की हैसियत भारत की नहीं है. ‘ग्लोबल टाइम्स’ की इस टिप्पणी में दंभ का पुट हो सकता है लेकिन कड़वी हकीकत यही है. चीन और भारत आर्थिक हैसियत के दो छोर पर खड़े हैं. चीन चोटी पर है और भारत तलहटी पर.

1980 तक दोनों बराबरी पर थे फिर चीन कैसे आगे निकला?

1980 के दशक में भारत और चीन की जीडीपी लगभग बराबर थी. प्रति व्यक्ति जीडीपी में भारत चीन से थोड़ा आगे ही था. लेकिन देंग श्याओ पिंग के नेतृत्व में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से चीन ने 1980 से 2010 के बीच लगभग दस फीसदी सालाना की निरंतर विकास दर के हिसाब से तरक्की की.

मीडिया एंटरप्रेन्योर राघव बहल ने चीन की इस चकरा देने वाली तरक्की को ‘एस्केप वेलोसिटी’ की उपमा दी है. अपनी किताब, ‘सुपरपावर? द अमेजिंग रेस ऑफ बिटवीन चाइनाज हेयर एंड इंडियाज टॉर्टस ’ में वो लिखते हैं, ‘देंग श्याओ पिंग ने चीन की अर्थव्यवस्था को लॉन्च कर उसे ‘पलायन वेग’ यानी एस्केप वेलोसिटी के साथ दूसरे ऑर्बिट में पहुंचा दिया, जिससे करीब एक अरब लोग गरीबी से बाहर निकल आए और एक साम्यवादी देश देखते ही देखते एक सुपरपावर बन गया.’

1991 तक चीन और भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग बराबर थी लेकिन देंग की ‘एस्केप वेलोसिटी’ ने चीन को भारत से पांच गुना ज्यादा अमीर बना दिया. आज भारत की जीडीपी 2.9 ट्रिलियन डॉलर की है और अभी यह पांच ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी बनना चाहता है, जबकि चीन की जीडीपी 15 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है.


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पांच गुना अमीर चीन जैसी तेजी कहां से लाएगा भारत?

चीन दुनिया की फैक्ट्री तो है ही, यह कई चीजों का सबसे बड़ा आयातक और निर्यातक भी है. चीन का निर्यात 2.1 ट्रिलियन डॉलर का है, जो भारत की कुल जीडीपी से थोड़ा ही कम है. भारत सिर्फ 325 बिलियन डॉलर का निर्यात कर पाता है. चीन के पास डॉलर का सबसे बड़ा भंडार है. कोरोना संक्रमण की वजह से इसके विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के बावजूद यह 3.1 ट्रिलियन डॉलर का रिजर्व इकट्ठा किए बैठा है. वहीं भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार महज 415 बिलियन डॉलर का है. इनोवेशन इंडेक्स में चीन की रैंकिंग 14वीं है और भारत की 52वीं.

चीन ने पिछले चार दशकों में जो तरक्की की है, वह इतिहास में बेमिसाल है. आज भारत की जो जीडीपी है, चीन ने उसे 2007 में ही पार कर लिया था.

भारत और चीन के आम नागरिकों की कमाई का फासला भी इतना ही बड़ा है. साल 2000 में एक आम चीनी नागरिक की कमाई भारतीय नागरिक की कमाई से दोगुनी थी. लेकिन अब उसकी कमाई भारतीय नागरिक की तुलना में पांच गुना बढ़ चुकी है. परचेजिंग पावर पैरिटी के आधार पर 2019 में एक भारतीय की औसत आय लगभग 2,198 डॉलर रही. चीन ने यह आंकड़ा 2006 में ही छू लिया था.

तेज आर्थिक विकास दर की वजह से एशियाई देशों को 21वीं सदी का सुपरपावर कहा जाने लगा है. विश्लेषकों की नज़र में यह सदी एशिया के नाम रहने वाली है. खासकर चीन, भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के नाम. इन सभी देशों ने हाल के दौर में काफी तेज़ तरक्की की है लेकिन चीन का आर्थिक विकास सबसे विलक्षण है.

दरअसल चीन ने अपनी किसी भी क्षमता को बड़ी तेजी से दोगुनी करने की ताकत हासिल कर ली. मसलन, चीन को 3 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति आमदनी को दोगुना करने में सिर्फ पांच साल लगे. इंडोनेशिया के नागरिकों की औसत आय 2010 में 3000 डॉलर की हो गई थी. लेकिन अभी तक इसे वह दोगुना नहीं कर पाया है. शायद 2024 तक भी वह इसे हासिल नहीं कर सकेगा.

पीएम नरेंद्र मोदी अक्सर जिस स्पीड, स्केल और स्किल की बात करते हैं, वो चीन की आर्थिक नीतियों के हर पहलू में दिखती है. महज पांच साल में अपने नागरिकों की आय को दोगुना करने की ताकत इसी का उदाहरण है.


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घरेलू खपत के दम पर ताकतवर बन रहा है चीन

चीन की अर्थव्यवस्था लंबे वक्त तक दस फीसदी की दर से तरक्की करने के बाद अब धीमी पड़ चुकी है. ग्लोबल मंदी की वजह से चीन का निर्यात कम हो गया है. उसे इसका अंदाजा था. इसलिए अब उसने खुद को घरेलू खपत पर आधारित इकोनॉमी बनाने की दिशा में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. 2008 में चीन का ट्रेड सरप्लस उसकी जीडीपी का 8 फीसदी था लेकिन आज यह सिर्फ 1.3 फीसदी है.

चीन के अंदर घरेलू खपत बड़ी तेजी से बढ़ रही है. 2019 में क्वॉर्ट्ज.कॉम पर छपे एक लेख के मुताबिक चीन की जीडीपी में आज घरेलू खपत का हिस्सा बढ़ कर 60 फीसदी तक पहुंच चुका है. मैकिंजी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 30 फीसदी लग्जरी गुड्स, गाड़ियों, कंज्यूमर अप्लायंस, मोबाइल फोन और स्पिरिट की खपत अब अकेले चीन में हो रही है.

चीन ने लंबे वक्त तक अपना पैसा फिजिकल और सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में लगाया. एक वक्त में चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अपनी जीडीपी का 50 फीसदी तक खर्च कर रहा था. अब उसका सारा जोर एजुकेशन और हेल्थ में खर्च बढ़ाने पर है. चीन और भारत के सोशल इंडिकेटर का फासला दिखाने के लिए एक उदाहरण काफी होगा. भारत में 2016 में 81.4 फीसदी बच्चे अस्पताल में पैदा हुए. यह काफी अच्छा रिकार्ड है. लेकिन चीन में 1990 में ही 94 फीसदी बच्चे अस्पतालों में पैदा होते थे. यह भारत में आर्थिक उदारीकरण शुरू होने से एक साल पहले का आंकड़ा है.

चीन ने अपनी आजादी का सफर भारत से दो साल बाद शुरू किया. लेकिन 1980 के बाद के चार दशकों में इसने विकास की इतनी लंबी रेखा खींची कि यह दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका को छूने लगी. क्या भारत चीन की इकोनॉमी की बराबरी कर पाएगा? भारत ने अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ, एजुकेशन, मैन्यूफैक्चरिंग और इनोवेशन पर 10-15 साल की स्ट्रेटजी बना कर बिना थके काम किया तो यह मुमकिन हो सकता है.

(लेखक आर्थिक मामलों के पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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