बेंगलुरू: चीन में शोधकर्ताओं को एच1एन1 स्वाइन फ्लू वायरस का एक नया स्ट्रेन मिला है जो संभावित रूप से एक महामारी को जन्म दे सकता है, हालांकि इसने अभी तक इंसान को इंसान से संक्रमण के सबूत नहीं दिखाए हैं. सहकर्मियों की समीक्षा के नतीजे पीएनएएस पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं.
शोधकर्ताओं ने कहा है कि स्वाइन फ्लू का नया स्ट्रेन, एच1एन1 वायरस का वंशज है, जिसकी विशेषताएं यूरोपियन एवियन (ईए) जैसे एच1एन1 वायरस से मिलती हैं, जिसने 2009 में मेक्सिको में महामारी (पीडीएमओनाइन) फैलाई थी. ये एक ट्रिपिल असॉर्टमेंट वायरस भी है जिसका मतलब है कि इसका जिनेटिक क्रम, एच1एन1 आरएनए के आठ खंडों में से, तीन का अलग मिश्रण है.
वायरस के इस नए स्ट्रेन को जी-4 जिनोटाइप कहा जाता है, और पेपर में कहा गया है, कि स्वाइन वर्कर्स, फार्म जानवरों के साथ काम करने वालों, या मीट हैण्डल करने वाले लोगों के ख़ून में, इस वायरस की मौजूदगी के सबूत मिले हैं.
सुअर नॉवल वायरस के सबसे अहम ‘मिक्सिंग वैसल्स’ या मेज़बान होते हैं, जो इंसानों तक पहुंचने से पहले, इनके शरीर के अंदर अपना रूप बदल लेते हैं. ये अकेले ज्ञात चौपाए स्तनपाई स्पीशीज़ हैं, जो पक्षी और इंसान दोनों के इंफ्लुएंज़ा वायरस के प्रति संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इनके शरीर में दोनों क़िस्म के वायरस के लिए रिसेप्टर्स होते हैं.
सुअर का शरीर एक लैबोरेट्री डिश बन जाता है, जहां विभिन्न वायरस आकर जमा होते हैं, और अपना रूप बदलकर एक ज़्यादा घातक, और ज़्यादा संक्रामक वायरस बन जाते हैं, जो महामारियां फैलाने में सक्षम होते हैं.
सुअर और इंफ्लुएंज़ा
इंफ्लुएंज़ा सुअरों में बहुत आम होता है, जो हवा के ज़रिए आसानी से इनके पूरे झुंड में फैल सकता है. हाल ही में देखे गए स्वाइन फ्लू स्ट्रेन्स के बहुत से प्रकोपों का संबंध, इंसानों के सुअरों के सम्पर्क में आने से जोड़ा गया है, जो पशुपालन और खेती के तरीक़ों की वजह से होता है.
सुअरों के बारे में हमेशा से माना गया है, कि वो इंफ्लुएंज़ा वायरस के नए स्ट्रेन्स बनने में अहम रोल अदा करते हैं, जो संभावित रूप से ज़्यादा ज़हरीले और संक्रामक हो सकते हैं, और जिनके इंसानों समेत दूसरी स्पीशीज़ में फैलने की भी संभावना रहती है.
स्वाइन फ्लू के एक स्ट्रेन से उपजी, आख़िरी पिछला बड़ा महामारी प्रकोप वो था, जो 2009 में मेक्सिको में देखा गया था. पूरे देश में दो-तीन महीने के लिए स्कूल बंद कर दिए गए, क्योंकि वो फ्लू अमेरिका में भी फैल गया, जहां वो उतना घातक नहीं था, जितना मेक्सिको में नज़र आता था.
उस वायरस को अधिकारिक रूप से ए/एच1एन1पीडीएम09 कहा गया, और अब इसके लिए फ्लू का सालाना टीका बन गया है.
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जी-4 एच1एन1 की खोज और प्रसार
जी-4 एच1एन1 वायरस का पता लगाने के लिए, 2011 से 2018 के बीच, 338 स्वाइन वर्कर्स की जांच की गई. इनमें से 35 लोग, या 10.4 प्रतिशत वर्कर्स अपने काम की वजह से, वायरस से संक्रमित पाए गए. वायरस का प्रसार 18 से 35 आयु वर्ग में ज़्यादा (20.5 प्रतिशत) था, और 2016 के बाद से वायरस ज़्यादा आम हो गया था. स्टडी में ये भी कहा गया, कि आम आबादी के भी 4.4 प्रतिशत लोग, संभावित रूप से वायरस से संक्रमित हुए थे.
चीन के 10 शहरों के पशु अस्पतालों और बूचड़ख़ानों से, कुल 30,000 सुअरों की नाक से नमूने भी लिए गए, जिनमें 179 में इंफ्लुएंज़ा वायरस का पता चला.
जब नेवलों को इन वायरसों से संक्रमित करके, लैब में स्टडी किया गया, तब रिसर्चर्स को पता चला कि ये वायरस, एयरोसॉल्स के ज़रिए भी फैलता है. बीजिंग में स्थित शोधकर्ताओं ने अपने पेपर में ये भी इशारा किया है, कि ये वायरस फेफड़ों और नाक के रास्तों में मौजूद, एपिथेलियल सेल्स के अंदर बहुत तेज़ी से पनपते हैं.
इम्यूनिटी के लिए अध्ययन करते हुए शोधकर्ताओं को पता चला, कि स्वाइन और एवियन फ्लू के दूसरे स्ट्रेन्स के खिलाफ पहले से मौजूद इम्यूनिटी, जी4 वायरस से बचाव नहीं कर पाती. स्वाइन फ्लू स्ट्रेन्स का इलाज दवाओं के रूप में उपलब्ध है, और माना जाता है कि फ्लू के टीके का असर, एक या दो साल से ज़्यादा नहीं रहता.
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है, कि जी4 वायरस की संक्रामकता इसके लिए, रूप बदलने और इंसानों के अनुकूल बनने के अवसर बढ़ा देती है, जिससे एक संभावित महामारी फैल सकती है. स्टडी के ऑथर्स का अनुरोध है कि, ‘अगली संभावित महामारी की शुरुआती चेतावनी और तैयारी के लिए, सुअरों में इंफ्लुएंज़ा वायरस की नियमित निगरानी करना बहुत अवश्यक है’.
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