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Friday, 22 November, 2024
होमदेशतीन महीने में 'आगरा मॉडल' से 7% मृत्यु दर तक- कैसे कोविड ने ताज नगरी को घेर लिया है

तीन महीने में ‘आगरा मॉडल’ से 7% मृत्यु दर तक- कैसे कोविड ने ताज नगरी को घेर लिया है

आगरा प्रशासन और डॉक्टरों का मानना है कि मृत्यु दर चिंता का विषय है, बीमारी गंभीर स्तर पर पहुंचने से पहले ही मरीजों का इलाज सुनिश्चित करने के लिए टेस्टिंग बढ़ाई गई है.

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आगरा: ताज नगरी उस समय भारत का पहला कोविड-19 हॉटस्पॉट बन गया था, जब मार्च में महामारी ने देश में दस्तक दी. लेकिन शुरुआत में इससे सफलतापूर्वक निपटने में कामयाब भी रहा. यहां तक कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसके लिए ‘आगरा मॉडल‘ की काफी प्रशंसा भी की थी.

लेकिन तीन महीने बाद आज हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि आगरा खुद को सवालों में घिरा पाता है- इसकी वजह है यहां मृत्यु दर 7 प्रतिशत यानि उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों की तुलना में दोगुनी होना और यहां तक कि यह मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों की तुलना में भी अधिक है, जहां आगरा के मुकाबले नोवेल कोरोनावायरस के मामले काफी ज्यादा हैं.

प्रशासन और डॉक्टरों का कहना है कि शहर का राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राजस्थान व हरियाणा जैसे अन्य राज्यों के नजदीक स्थित होना और यूपी के अन्य छोटे शहरों से मरीजों का बीमारी बढ़ने के बाद यहां आना आदि, ज्यादा मामलों और मौतों की बड़ी वजह है.

22 लाख लोगों की आबादी वाले शहर आगरा में प्रशासन की तरफ से हर रोज जारी होने वाले बुलेटिन के मुताबिक 28 जून तक कुल मामले 1210 थे इसमें 85 मौतें और 111 सक्रिय केस शामिल हैं. शहर में 56 कंटेनमेंट जोन हैं और कुल बेड की क्षमता 2241 है.

अब, आगरा प्रशासन ने अपनी कवायद आगे बढ़ाते हुए आक्रामक तरीके से टेस्टिंग अभियान और यहां तक की रैंडम पूल टेस्टिंग भी शुरू कर दी है. अब तक एकत्र सैंपल की संख्या 21,541 हो गई है.


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मामलों का लगातार बढ़ना

सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोविड आईसोलेशन फैसिलिटी के अधीक्षक डॉ. प्रशांत गुप्ता बताते हैं कि मार्च-अप्रैल में आने वाले मामलों में और मौजूदा स्थिति में अंतर यह है कि अब मरीजों में अधिक गंभीर लक्षण दिख रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है.

गुप्ता ने कहा, ‘पहले कम लोग संक्रमित हो रहे थे और जो संक्रमित हुए वे युवा थे’.

Dr Prashant Gupta, superintendent of the SN Medical College Covid facility, with his colleagues | Photo: Praveen Jain | ThePrint
एसएन मेडिकल कॉलेज के डॉ प्रशांत गुप्ता अपनी सहयोगी के साथ | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

लेकिन अब अनलॉक 1.0 के बाद से, कम उम्र के लोग दो या दो से ज्यादा गंभीर रोगों से पीड़ित बुजुर्गों को संक्रमित कर रहे हैं और अस्पतालों में ज्यादा गंभीर हाल वाले मरीज पहुंच रहे हैं.

डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘लोग इसलिए भी बहुत बाद में अस्पताल पहुंच रहे हैं क्योंकि वह काफी सशंकित हैं और भर्ती होने से बचना भी चाहते हैं’.

जिला मजिस्ट्रेट प्रभु एन. सिंह ने कहा कि ज्यादा मृत्यु दर का कारण मरीजों का हालत बिगड़ने के बाद इलाज के लिए आना भी है. सिंह ने कहा, ‘तमाम मौत गंभीर हृदयाघात, मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर और किडनी फेल होने के कारण हुई हैं’.

मुख्य चिकित्सा अधिकारी आर.सी पांडे, जो हाल ही में मुकेश वत्स के स्थानांतरण के बाद इस पर नियुक्त हुए हैं, ने इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मृत्यु दर बढ़ने की वजह एटा, मैनपुरी, अलीगढ़ और हाथरस जैसे शहरों से रेफर होकर यहां आने वाले मामले भी हैं.

पांडे ने बताया, ‘हमारे पास अलीगढ़ के तीन मरीज आए थे जो बेहद गंभीर स्थिति में थे और आगरा पहुंचने के कुछ ही समय बाद ही उनकी मौत हो गई’. उन्होंने आगे बताया कि आगरा के निजी अस्पतालों की तरफ से मरीज रेफर किए गए थे जिसमें कई की हालत काफी खराब थी.

डीएम सिंह का कहना है कि आगरा की दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा से नजदीकी ने भी इस चुनौती को बढ़ाया है क्योंकि शहर आसपास के छोटे कस्बों में पॉजीटिव निकले लोगों में बड़ी संख्या उनकी भी थी जो बड़े शहरों से रिवर्स माइग्रेट हुए हैं.


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मृत्यु दर

आगरा ने अपने पहले कोविड-19 मामले की सूचना 13 मार्च को दी थी लेकिन यहां पर पहली मौत अप्रैल में हुई थी. स्थानीय प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल तक सामने आए 539 मामलों में कोविड के कारण छह मौत हुई थी. मई में 49 मौतों के साथ कुल केस 718 थे, जबकि जून में 28 तारीख तक, शहर में 31 मौतों के साथ 311 मामले दर्ज किए गए है.

सिंह के मुताबिक, मरने वालों में 70 फीसदी लोग 70 साल से अधिक उम्र के थे जबकि 20-22 फीसदी 40 से 60 के बीच की उम्र वाले थे जो अन्य गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित थे, जबकि बाकी की उम्र 30 साल से कम थी.

डीएम ने कहा, ‘एक बार यह महामारी खत्म हो जाने के बाद ही हम मृत्यु दर पर सही तरीके से विश्लेषण और चर्चा कर पाएंगे. यह निश्चित तौर पर गंभीर चिंता का विषय है. हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मौत के बारे में पूरी जानकारी उसी दिन मिल जाए और मृत्यु दर घटाने के लिए भी दिन-रात काम कर रहे हैं’.

Agra District Magistrate Prabhu N. Singh and his team visit residents | Photo: Praveen Jain | ThePrint
आगरा के जिला मजिस्ट्रेट प्रभु एन सिंह (बीच में, प्लेन नीले शर्ट में) और उनकी टीम | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

सीएमओ पांडे ने कहा कि अधिकारियों और स्वास्थ्य कर्मियों का ध्यान मुख्यत: मृत्यु दर को मौजूदा 7 प्रतिशत से नीचे लाने पर केंद्रित है. उन्होंने कहा, ‘हम इस पर ही ज्यादा ध्यान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि अब रोज सामने आने वाले मामलों की संख्या कम हैं और कोई समुदायिक संक्रमण नहीं हुआ है. रविवार को नए मामलों की संख्या 14 दर्ज की गई’.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल में आगरा में उच्च मृत्यु दर का मामला उठाते हुए ट्वीट किया था कि शहर में 48 घंटों में 28 लोगों की मौत हुई है और उन्होंने ‘आगरा मॉडल’ को त्रुटिपूर्ण करार दिया था. इस पर डीएम ने भ्रामक सूचना देने और दहशत फैलाने के लिए उन्हें कानूनी नोटिस भेजा था लेकिन बाद में मामला सुलझा लिया गया.

इस बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, ‘मैं इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा. हालांकि, मैं इस पर जोर देना चाहूंगा कि हम वायरस से संक्रमण रोकने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव बेहतरीन कोशिश कर रहे हैं और यह आश्वस्त कर सकते हैं कि किसी की भी लापरवाही के कारण कोई जान नहीं जाएगी’.


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अस्पताल में भर्ती होने वालों का लेखा-जोखा

22 जून को ऐसी जानकारी सामने आई थी कि आगरा में अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटों के भीतर कम से कम 28 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद, यूपी सरकार ने प्रशासन और अस्पताल के अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट तलब की थी.

यह पूछे जाने पर कि क्या जांच से कोई नतीजा निकला, डीएम सिंह ने इसकी पुष्टि तो की लेकिन इस बारे में कोई ब्योरा नहीं दिया.

A patient on ventilator at the SN Medical College | Photo: Praveen Jain | ThePrint
एसएन मेडिकल कॉलेज में वेंटिलेटर पर एक मरीज | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ दिन से स्थिति में सुधार है और मरीजों को दी जाने वाली दवाओं में बदलाव के कारण मौतों की संख्या में भी कमी आई है’.

सीएमओ पांडे से मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की औसत अवधि के बारे में भी पूछा गया था, इस पर उनका कहना था, ‘कुछ ने भर्ती होने के 48 घंटे के भीतर बीमारी के कारण दम तोड़ दिया जबकि कुछ ने एक हफ्ते बाद’.

गुप्ता ने बताया कि एसएन मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोविड-19 फैसिलिटी में 500 में 125 यानि 20 से 25 फीसदी मरीजों को सामान्य वार्ड से आईसीयू में भेजना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘आईसीयू में हर दिन कम से कम 3-4 मरीज होते हैं’.

दिप्रिंट ने पाया कि पूरे आगरा में शुक्रवार को केवल एक रोगी वेंटिलेटर पर था, जबकि शनिवार को कोई नहीं था.

टेस्टिंग बढ़ाई

ऐसे दावे भी किए जा चुके हैं, जैसा पूर्व सीएमओ डॉ. ए.के. कुलश्रेष्ठ ने कहा था, ‘कि आगरा में मृत्यु दर टेस्टिंग सैंपल की कम संख्या के कारण बढ़ी है’.

Agra is now testing various kinds of workers, such as barbers and their customers, for Covid infections | Photo: Praveen Jain | ThePrint
आगरा में नाई समेत ग्राहकों की भी जांच हो रही है | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

हालांकि, डीएम ने यह कहते हुए इसे खारिज किया कि प्रशासन ने पिछले 6-7 दिनों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं, ढाबा कर्मियों, रिक्शा चालकों, नाई, वृद्धाश्रम आदि के लोगों में संक्रमण की जांच के लिए सामान्य टेस्टिंग परीक्षण प्रोटोकॉल के अलावा रैंडम पूल सैंपलिंग टेस्ट भी शुरू किए हैं और 600 नमूनों की जांच में केवल दो पॉजीटिव मामले सामने आए.

उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर आगरा प्रति 10 लाख आबादी पर 4,900 लोगों का परीक्षण कर रहा है. एसएन मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के अलावा शहर में छह मोबाइल टेस्टिंग वैन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें से दो निजी अस्पतालों के बाहर तैनात हैं, दो कंटेनमेंट जोन में हैं, एक रैपिड रिस्पांस टीम के पास है और एक कांट्रैक्ट ट्रेसिंग का पता लगाने के काम में इस्तेमाल हो रही है.

सीएमओ पांडे ने कहा कि किसी भी कोविड-19 मरीज, भले ही सिम्पटोमैटिक हो या नहीं, के संपर्क में आए लोगों का टेस्ट किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमें खुद को और अधिक तैयार करने की जरूरत है क्योंकि विभिन्न शहरों से लोग इलाज के लिए आगरा आते हैं’.


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आईसोलेशन की सुविधा

डीएम सिंह ने कहा कि लॉकडाउन की अवधि में शहर को बढ़ते मामलों के लिहाज से तैयार करने में मदद मिली और अब यहां 2,241 बेड हैं. अगर अभी हमारे पास 2,000 सक्रिय मामले हों तो भी हम इससे निपट सकते हैं.

शहर ने कोविड रोगियों के लिए अलग-अलग आईसोलेशन फैसिलिटी भी निर्धारित की है. एसिम्पटोमैटिक या हल्के लक्षण वालों के लिए एल-1 फैसिलिटी है, जबकि मध्यम और गंभीर लक्षणों वाले रोगियों को क्रमश: एल-2 और एल-3 फैसिलिटी में भेजा जाता है.

एसएन मेडिकल कॉलेज अस्पताल एक एल-3 फैसिलिटी है, जिसमें दो अलग-अलग वार्ड में कुल 100 बेड हैं- एक पुष्ट मामलों के लिए और दूसरा संदिग्ध मामलों के लिए. 100 बिस्तर वाला एक और वार्ड 30 जून तक तैयार हो जाने की उम्मीद है.

अस्पताल में एक कोविड नियंत्रण कक्ष भी है, जिसे डॉक्टर वॉर रूम कहते हैं क्योंकि नोवेल कोरोनावायरस से निपटना किसी जंग से कम नहीं है. नियंत्रण कक्ष को 24 घंटे सक्रिय रखने के लिए तीन शिफ्ट में काम होता है, यहां एक बड़ी टीवी स्क्रीन के जरिये आईसीयू की वर्चुअल मॉनीटरिंग चलती है. इसमें राज्य प्रशासन को सूचनाएं भेजने के लिए अलग से एक सेक्शन भी बनाया गया है.

एसएन मेडिकल कॉलेज में ई-हॉस्पिटल सिस्टम और कुछ मामलों में सरकारी प्रोटोकॉल को पूरा करने के लिए उच्च स्तर पर परामर्श के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक कोविड केयर सिस्टम भी है. कोविड रोगियों के लिए सामान्य वार्ड में सभी डॉक्टर आठ घंटे काम करते हैं, जबकि कोविड-आईसीयू में ड्यूटी करने वाले डॉक्टरों की शिफ्ट 6-7 घंटे की होती है.

अस्पताल ने रोजाना मरीजों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति की जांच के लिए मनोवैज्ञानिकों की एक टीम भी लगा रखी है.

कंटेनमेंट रणनीति

डीएम सिंह ने अपने कंटेनमेंट मॉडल के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इसमें आठ स्तर पर निगरानी की व्यवस्था की गई है.

सबसे पहले, एक रैपिड रिस्पांस टीम क्षेत्र में पहुंचती है और लोगों की स्क्रीनिंग करने के साथ नमूने जुटाती है. फिर, एक मॉपिंग टीम लगातार तीन दिनों तक संक्रमित घर को साफ करती है. इसके बाद, एक स्वास्थ्य टीम डोर-टू-डोर चेक-अप के लिए पहुंचती है और थर्मल गन और पल्स ऑक्सीमीटर के जरिये स्क्रीनिंग करती है.

इसके बाद, एक बैरिकेडिंग टीम आने-जाने के सभी रास्तों को बंद कर देती है, जबकि एक पुलिस टीम को उस क्षेत्र में तैनात कर दिया जाता है. फिर, फायर ब्रिगेड की टीम जाकर एक बार फिर क्षेत्र की साफ-सफाई करती है, इसके बाद क्षेत्र में शाम 4 से 6 बजे के बीच थर्ड पार्टी इंसपेक्शन और अधिकारियों के साथ दैनिक समीक्षा होती है.

सिंह ने बताया कि जब भी कोई रैपिड रिस्पांस टीम संक्रमित व्यक्ति या व्यक्तियों को इलाज के लिए आईसोलेशन सेंटर ले जाती है, तो वह क्षेत्र तीन सप्ताह के लिए एक कंटेनमेंट जोन बना रहता है.


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स्थानीय लोगों में नाराज़गी

हालांकि, शहर के निवासी डीएम के इन दावों को गलत ठहराते हैं कि कंटेनमेंट जोन में पूरी सतर्कता बरती जा रही है.

ASHA worker Kanchan in Agra's Tajgang locality | Photo: Praveen Jain | ThePrint
आगरा के ताजगंज इलाके में आशा कार्यकर्ता कंचन | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

ताजगंज स्थित तुलसी चबूतरा के निवासियों की शिकायत है कि कोई भी अपने घर पर ही रहने तक सीमित नहीं रहा और क्षेत्र में बैरिकेड लगे होने के बावजूद लोग इधर-उधर घूमते रहे. यहां तक की पुलिस की मौजूदगी में भी बैरिकेड फांदकर यहां-वहां जा रहे थे.

स्थानीय निवासी रोहित शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार क्षेत्र की ठीक से निगरानी नहीं कर रही है. कोई भी नियमों का पालन नहीं कर रहा है, बैरियर तो यहां सिर्फ नाम के लिए लगे हैं. स्वास्थ्य टीम भी हमारी स्क्रीनिंग या तापमान की ठीक से जांच नहीं करती है. 19 जून को इसे कंटेनमेंट जोन घोषित किए जाने के बाद वह केवल एक बार यहां पर आई है’.

शर्मा ने आगे कहा, ‘हर घर में एक-दो बुजुर्ग लोग होते हैं. ऐसे में हमें डर है कि कोरोना सामुदायिक स्तर पर फैल जाएगा’.

संपर्क में आए लोगों की जांच कराने के सीएमओ पांडे के दावे के उलट एक अन्य कंटेनमेंट जोन नामनेर में रहने वाले लोगों ने आरोप लगाया कि एक व्यक्ति के बीमारी के चपेट में आने और एल-1 फैसिलिटी में भेजे जाने के बावजूद क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति का कोविड टेस्ट नहीं कराया गया है.

वहीं रहने वाली एकता ने बताया कि वह एक ऐसे व्यक्ति के बच्चे के साथ खेलती रही थी जो जांच में पॉजीटिव निकला है, जबकि उसकी मां नियमित रूप से उसकी पत्नी के संपर्क में थी. लेकिन उसके घर या पड़ोस के लोगों में से किसी का भी टेस्ट नहीं कराया गया है.

उन्होंने कहा, ‘हमें विटामिन दिए गए और स्क्रीनिंग हुई लेकिन टेस्ट नहीं कराया गया. हम लोग थोड़े चिंतित हैं क्योंकि उनका घर हमारे बगल में है और हममें से कई लोगों का उनके परिवार के साथ मिलना-जुलना होगा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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