नई दिल्ली: प्रधानमंत्री के तौर पर 10 साल के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के अंदर मनमोहन सिंह के प्रशंसकों की संख्या बहुत सीमित ही थी. वह अपने आर्थिक सुधार एजेंडे और व्यापक जनाधार ना होने को लेकर अक्सर पार्टी में अपने आलोचकों के निशाने पर रहते थे.
लेकिन अब छह साल बाद जरूरत पड़ने पर वह अपने उत्तरवर्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाला कांग्रेस का विश्वसनीय चेहरा और आवाज बन जाते हैं, चाहे यह भारत-चीन गतिरोध का मुद्दा हो, देश की आर्थिक स्थिति या फिर कोविड-19 से निपटने का मसला.
मनमोहन सिंह की तरफ से गत सोमवार को मोदी के खिलाफ बोला गया आक्रामक हमला नया नहीं था, जिसमें उन्होंने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीनी घुसपैठ के संदर्भ में उन पर परोक्ष रूप से गलतबयानी का आरोप लगाया और उनकी कूटनीतिक व निर्णायक क्षमता पर भी सवाल उठाया. जब भी कांग्रेस को लगता है कि मोदी सरकार पर उसके हमलों की गूंज जनता के बीच अनसुनी रह जा रही है, वह पूर्व प्रधानमंत्री को आगे कर देती है, मुद्दा चाहे जो भी हो…नोटबंदी और आर्थिक कुप्रबंधन इसके प्रमुख उदाहरण हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री ने देश में कोविड टेस्टिंग रेट को लेकर यह कहते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा था, बड़े पैमाने पर टेस्ट किए बिना भारत कोविड-19 पर काबू नहीं पा सकता.
फरवरी में, मनमोहन सिंह, जो एक अर्थशास्त्री, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री भी हैं, ने मोदी को सलाह दी थी कि हेडलाइन मैनेजमेंट के बजाय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपायों पर ध्यान दें.
इतिहास उदारता बरतेगा
2014 में मनमोहन सिंह ने उम्मीद जताई थी कि मीडिया की तुलना में इतिहास उनके साथ उदारता दिखाएगा. यह बात उनकी अहमियत समझने को लेकर उनकी पार्टी के लिए ही सही साबित हो रही है.
सिंह कई मौकों पर अपने सहयोगियों के कारण ही सार्वजनिक तौर पर असहज स्थिति का सामना कर चुके हैं, विशेष तौर पर 2013 में जब राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार की तरफ दोषी सांसदों व विधायकों को रोकने के लिए लाए गए अध्यादेश की मसौदा प्रति ही फाड़ दी थी.
2009 में मिस्र के शर्म अल शेख में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के साथ सिंह के संयुक्त बयान को लेकर कांग्रेस के अंदर खासी हलचल मच गई थी जिसके बारे में पार्टी के नेताओं का मानना था कि इससे आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख कमजोर हुआ है.
यह भी पढ़ें: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सार्वजनिक तौर पर विनम्रता दिखाने की जरूरत है
शांत और संतुलित आवाज
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री की शांत और संतुलित आवाज और अनुभवी प्रशासक की उनकी लोकप्रिय छवि को मोदी पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद कहते हैं कि मनमोहन सिंह की आवाज प्रधानमंत्री मोदी के एकदम विपरीत है. खुर्शीद ने दिप्रिंट को बताया, जब आपके पास एक ऐसा पीएम हो जो बेहद आक्रामक और दबाव बनाने वाला हो तो स्वाभाविक ही है कि लोग इस सारे हो-हल्ले के बीच एक शांत और गंभीर आवाज की ओर मुड़ना चाहेंगे. वह ऐसी ही आवाज हैं.
हालांकि, खुर्शीद ने यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री सामान्य की तुलना में थोड़ी सख्त भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, वह दबाव बनाने वाले व्यक्तियों में नहीं हैं, अपनी बातों को लेकर वह बेहद संयत और सतर्क रहते हैं. लेकिन मौजूदा परिस्थितियो में वह कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि भारत के इतिहास में यह बेहद विषम क्षण हैं. इसीलिए वह ज्यादा मुखर हो गए हैं.
राहुल गांधी के साथ विरोधाभास
खुर्शीद ने जो नहीं कहा वो यह कि अपने उत्तराधिकारी पर हमलों के लिए भी मनमोहन सिंह की तरफ से इस्तेमाल की जाने वाली संतुलित और गरिमापूर्ण भाषा कैसे राहुल गांधी के तेवरों के एकदम विपरीत है. मोदी के खिलाफ उनके तीखे और बेधड़क हमले अंतत: लोगों को नागवार गुजरते हैं.
गांधी ने हाल में चीन के साथ गतिरोध को लेकर सरकार के रुख पर हमले और आलोचना करते-करते एक ट्वीट में प्रधानमंत्री के नाम का इस्तेमाल अलंकार के तौर पर कर दिया, उन्होंने सीमा मसलों से निपटने को लेकर सरकार के बारे में अपनी धारणा के संदर्भ में आत्मसमर्पण शब्द का इस्तेमाल करते हुए उन्हें सरेंडर मोदी तक कह दिया.
गांधी को इस तरह के कड़े हमलों के लिए जाना जाता है- 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उन्होंने मोदी पर खून की दलाली में लिप्त होने जैसा आरोप लगाया था, जिसके बारे में उनकी राय थी कि वह आतंकी हमलों में सैनिकों की शहादत का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, आप जवानों की शहादत का सहारा ले रहे हैं…आप खून की दलाली कर रहे हो.
गांधी को अक्सर ही पीएम मोदी पर हमले के लिए असंयत भाषा का इस्तेमाल करने के लिए आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है.
शासन का अनुभव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे विषम समय में मोदी के खिलाफ हमले के लिए प्रमुख कांग्रेस नेता के तौर मनमोहन सिंह को इसलिए चुना गया क्योंकि वह राहुल गांधी के तेवरों के एकदम उलट लोगों के सामने एक संतुलित दृष्टिकोण रख पाएंगे.
राजनीतिक विश्लेषक और सेंटर फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च (सीपीआर) में रिसर्च एसोसिएट आसिम अली कहते हैं, मनमोहन सिंह के हमले ज्यादा प्रभावी साबित होते हैं क्योंकि उनके पास सरकार चलाने का अच्छा-खासा रिकॉर्ड, लंबा अनुभव और विशेषज्ञता सब है जिसे भाजपा शासन की नाकामियों को उजागर करने और उनकी आलोचना करने में बेहतर ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है. जबकि राहुल गांधी में इन सब बातों का नितांत अभाव है इसलिए उनके हमले हल्के और निरर्थक नजर आते हैं.
अली ने इस ओर इंगित किया, वह (राहुल गांधी) अपने करिअर में एक जूनियर स्तर के प्रशासनिक पद पर भी नहीं रहे हैं.
कांग्रेस नेता इससे सहमत हैं कि सिंह के बारे में अनुभवी प्रशासक होने की धारणा उन्हें इस हमले के लिए आगे किए जाने का उपयुक्त विकल्प बनाती है.
मनमोहन सरकार में रहे एक और मंत्री वीरप्पा मोइली ने दिप्रिंट को बताया, खासकर शासन के पहलू से देखें तो वह एक नेता के तौर पर स्थापित हैं. उनकी काबिलियत के बारे में लोगों को पता है. 90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के दौर से ही उन्होंने देश की आर्थिक सूरत बदलने में खासा योगदान दिया है.
मोइली ने बताया कि मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रियों को खासी स्वतंत्रता दे रखी थी.
वरिष्ठ नेता ने कहा, मैं उनके सहयोगियों में से एक रहा हूं, इसलिए मुझे पता है कि उनकी सरकार में मंत्रियों को कितनी स्वतंत्रता मिली हुई थी. वह बैठकें बुलाते थे, वह सबके साथ सलाह-मशविरा करते थे.
एक और कारण जिस वजह से कांग्रेस ने सिंह को अपने शासनकाल की उपलब्धियां गिनाने के लिए चुना है, वह यह कि यूपीए-1 के दौरान अर्थव्यवस्था में तेजी और गरीबी का ग्राफ तेजी से नीचे लाना सुनिश्चित करने का श्रेय मुख्यत: सिंह को ही दिया जाता है.
अली ने कहा, यूपीए-2 के दौरान घोटालों के आरोप के कारण, कांग्रेस सरकार में अपनी उल्लेखनीय उपलब्धियों को पूरी तरह भुना नहीं पाई. यह नया रुख एक बदलाव का संकेत है, वह अपने शासनकाल की उपलब्धियां सामने लाने और उसके जरिये भाजपा सरकार की नाकामियों को उजागर करने की कोशिश कर रही है.
खुर्शीद ने आगे कहा कि सिंह को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जिसे देश में बहुत सम्मान मिलता है और इस भावना को बेकार नहीं जाने देना चाहिए.
पूर्व विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमारा आकलन बताता है कि देश में अभी भी उनके लिए बहुत सम्मान और सद्भावना है और इसे बेकार नहीं जाने देना चाहिए.’
विदेशों से यादगार मधुर संबंध
कांग्रेस लोगों को यह याद दिलाना चाहती है कि कैसे मनमोहन सिंह के शासनकाल में भारत के अपने पड़ोसियों के साथ बेहतरीन रिश्ते हुआ करते थे.
कांग्रेस सांसद और पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उनके शासनकाल में हमने भारत और चीन की शांतिपूर्ण उन्नति देखी… दोनों एक साथ प्रगति के पथ पर बढ़े.
तिवारी ने आगे कहा कि यद्यिप दोनों देशों के बीच तनाव की स्थितियां भी आईं लेकिन दोनों ने एक-दूसरे की आर्थिक प्रगति की राह में कोई बाधा नहीं डाली.
उन्होंने कहा, तथ्य यह भी है कि केवल भारत और चीन ही ऐसे दो देश हैं जो 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी से अछूते रहे थे.
मोइली ने बताया कि सिंह हमेशा ही यह बात दोहराते हैं, हमें अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ते शांतिपूर्ण रखने चाहिए.
मोइली ने कहा, उन्होंने हमेशा पड़ोसियों के साथ बेहतरीन रिश्ते कायम रखे हैं. इसीलिए कूटनीतिक और विदेश नीति के मोर्चे पर उन्हें खासा सम्मान हासिल है.
यह भी पढ़ें: भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कैसे कब्ज़ा जमाया और क्यों चीन इस स्थिति को नहीं बदल सकता
सिंह पर भाजपा की प्रतिक्रिया
यह मनमोहन सिंह के कद और लोगों के बीच ईमानदार और पढ़े-लिखे नेता की छवि का ही नतीजा है कि भाजपा उनके बजाय राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं को निशाना बनाना पसंद करती है, वह पूर्व पीएम के हमलों पर हल्के-फुल्के खंडन से ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देती.
मोदी ने एक बार अपने पूर्ववर्ती पर उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर रेनकोट पहनकर नहाने वाली टिप्पणी के जरिये हमला बोला था, लेकिन वह आम तौर पर किसी मुद्दे पर उनके साथ नहीं उलझना चाहते.
बहरहाल, भाजपा ने मनमोहन सिंह को आगे करने के कांग्रेस के इन प्रयासों को आखिरी पुरजोर कोशिश करार दिया है.
भाजपा नेता सुधांशु मित्तल ने दिप्रिंट को बताया, राहुल, सोनिया और प्रियंका द्वारा लगातार किए जा रहे हमले उल्टे उन पर ही भारी पड़ रहे हैं. इसलिए, अब वे उनकी (सिंह) ओर रुख कर रहे हैं जबकि बतौर पीएम उनको कभी तवज्जो नहीं दी गई. यह हास्यापद है.
लेकिन एक बार, मनमोहन सिंह को इसके लिए अपने पार्टी के सहयोगियों और पूर्व आलोचकों पर मुस्कुराना तो चाहिए.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)