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Friday, 22 November, 2024
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मिलेनियल्स ने इंडिया शाइनिंग देखा है, वो 70 साल के नहीं बल्कि 30 साल के भारत पर मोदी को जज करेंगे

अधिकांश भारतीय मिलेनियल्स की राजनीतिक स्मृति अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू होती है, जवाहरलाल नेहरू से नहीं. इसलिए, प्रधान मंत्रीनरेंद्र मोदी को पिछले 30 वर्षों के संदर्भ में आंका जाएगा, और निश्चित रूप से 70 वर्षों से फर्क नहीं पड़ने वाला.

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नरेंद्र मोदी ने हमेशा भारत के लिए खुद को इस तरीके से पेश किया है कि उनके नेतृत्व की सरकार पिछले 70 वर्षों की ‘गलतियों’ को ठीक कर देगी. लेकिन क्या होगा अगर भारतीय मिलेनियल्स इस बात की परवाह ना करें तो? वो कुछ सत्तर सालों का सोच ही नहीं रहे हों तो?

अधिकांश भारतीय मिलेनियल्स की राजनीतिक स्मृति अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू होती है, जवाहरलाल नेहरू से नहीं. इसलिए, प्रधान मंत्रीनरेंद्र मोदी को पिछले 30 वर्षों के संदर्भ में आंका जाएगा, और निश्चित रूप से 70 वर्षों से फर्क नहीं पड़ने वाला.

रमा बीजापुरकर इस पीढ़ी को ‘उदारीकरण के बच्चे’ कहती हैं. इस बात के लिए निश्चित तौर पर 1991 के आर्थिक सुधारों को रेफर किया जा रहा है. 1981 और 1996 के बीच जन्मे लोगों ने एक गैर-समाजवादी देश को देखा है और उनको स्वतंत्रता का आनंद लेने, जीवन में फैसिलिटी का उपभोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

इसलिए, जब भी मोदी समर्थक और भाजपा 1962 को आधार बनाकर नेहरू से सवाल पूछते हैं तो ये बातें मिलेनियल्स से कट जाती हैं. क्या बीस साल पहले के नेता 1942 को आधार बनाकर सवाल पूछते थे?


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मोदी की छवि

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले, मोदी ने भारत की सत्ताधारी पार्टी, देश की आर्थिक स्थिति और रक्षा क्षमताओं को लेकर 70 साल की कथित विफलताओं पर कड़े सवाल उठाए और जनादेश हासिल किया. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, मोदी ने पहली बार वोट दे रहे मतदाताओं की भावनाओं को भुनाने के लिए बालाकोट हमलों के बाद एक कठोर निर्णय लेने वाले की अपनी छवि बनाई. अर्थव्यवस्था की बुरी हालत और बढ़ी बेरोजगारी दर को नजरअंदाज कर दिया गया. वो एक धमाकेदार जीत के साथ लौटे.

ठीक एक साल बाद पीएम मोदी ने चीन के साथ हुए झंझट में गलवान घाटी में मारे गए 20 सैनिकों को याद किया है. लेकिन लोगों में इस बात की चिंता बढ़ रही है कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में इस बात को दुहराएंगे. उन्होंने ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान शुरू करते हुए सबसे पहले बिहार रेजिमेंट की वीरता और बिहारियों के बारे में बात की है. यह माना जाता है कि एक विशाल युवा आबादी वाला राज्य भावनाओं में बह सकता है. लेकिन ये जरूरी नहीं है.

कोरोनावायरस महामारी, बेरोजगार श्रमिकों के मुद्दे और बुरी तरह से प्रभावित अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को भी चुनाव के मुद्दों के रूप में गिना जाएगा. अर्थव्यवस्था और नौकरियों को लेकर मिलेनियल्स चिंतित हैं, बॉर्डर पर बहादुरी को लेकर चाहे हम कितनी भी नारेबाजी कर लें.

नया भारत

भारतीय मिलेनियल्स ने पिछले दो दशकों से भारत को बहुत तेजी से बढ़ते देखा है. उन्होंने आर्थिक उदारीकरण के नतीजों का आनंद लिया है और सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में दूसरों से जुड़े हुए हैं. YouGov-Mint मिलेनियल सर्वे के अनुसार, 2019 में, भारत में 459 मिलियन मिलेनियल्स और पोस्ट मिलेनियल्स थे.

इस पीढ़ी के पास कारगिल को छोड़कर, पाकिस्तान से युद्ध, आपातकाल या लगातार युद्ध के खतरे, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई राजनयिक पराजयों की यादें नहीं हैं. उनके लिए ज्यादातर बदलाव अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर हुए हैं. ये बातें मोदी को पता है. उनका पहला कार्यकाल गुजरात मॉडल, बेशुमार नौकरियों, लैपटॉप, शिक्षा, मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और स्किल इंडिया के बारे में था.

मिलेनियल्स ने महसूस किया था कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भारत को जकड़ रही थी. वो सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी. उन्होंने सोचा कि मोदी भारत को अनिर्णय की स्थिति से मुक्त करेंगे और आर्थिक प्रगति के रास्ते पर स्थापित करेंगे. जनवरी में 47 प्रतिशत मिलेनियल्स ने कहा कि उन्होंने भाजपा का समर्थन किया है.

बदल रही धुन

जल्द ही वह सपना टूट गया. मोदी के फैसलों के सही परिणाम नहीं निकले – नोटबंदी से लेकर मेक इन इंडिया तक. हिंदुत्व की कथा को किसी तरीके से दोड़ना और किसी भी विरोध को तोड़ना फैशन बन गया. मिलेनियल्स ने ’व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ और इसके बढ़ते आधार के साथ एक परेशानी महसूस की. पीढ़ीगत अंतर पहले से ज्यादा स्पष्ट हो गया. मिलेनियल्स नौकरी और बदलाव चाहते थे, और अब उन्हें वो चाहिए था. 70 साल की कहानी के लिए कोई समय नहीं था.

2020 की शुरुआत में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही धीमे ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए मिलेनियल्स को दोषी ठहराया था. संकटों को बढ़ाते हुए अनियोजित लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को पस्त कर दिया और निराशा पैदा कर दी.

ऐसा नहीं है कि मिलेनियल्स शब्द सिर्फ उन युवाओं को ही दर्शाता है जो चमकदार पत्रिकाओं के कवर पर आते हैं. इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें हमने तालाबंदी के दौरान सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चलते देखा था. बहुसंख्यक कम कमाई वाले मिलेनियल्स धराशायी हो गए हैं और एक चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं.


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मानसिक स्वास्थ्य वास्तविक है

चीन के संबंध में सोशल मीडिया पर हाल ही में हुई हलचल और भाजपा नेताओं की भ्रामक प्रतिक्रियाओं ने कई मिलेनियल्स को हैरान कर दिया है. अब मोदी को लेकर टिकटॉक या फेसबुक या ट्विटर पर प्रतिक्रियाएं देखें.

सामान्य तौर पर ऐसा लगता है कि भारतीय मिलेनियल्स में चिंता का स्तर एक सर्वकालिक उच्च स्तर पर है. निराशा और लाचारी का भाव है. ये बातें अक्सर अलग कर दी जाती हैं और इनकी अवहेलना की जाती है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में छात्र मोदी सरकार का लगातार निशाना रहे हैं. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी आरोपों के बावजूद, इन संस्थानों ने सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों, यहां तक कि सरकारी-प्रकाशित लोगों की सूची में बढ़िया प्रदर्शन किया है.

इसी तरह, कोई कश्मीर के मिलेनियल्स की अनदेखी नहीं कर सकता. अगस्त 2019 में कश्मीर में लॉकडाउन ’के बाद से, अर्थव्यवस्था और शिक्षा बाधित हुई है. वे इंटरनेट का ढंग से उपयोग भी नहीं कर सकते हैं.

21 वीं सदी में मानसिक स्वास्थ्य एक प्रमुख मुद्दा है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. लोग आखिरकार इसके बारे में बोल रहे हैं. और यह केवल एक शहर का मुद्दा नहीं है.

हम इसके लिए नेहरू या विपक्ष को दोषी नहीं ठहरा सकते. जल्द या बाद में, अधिकांश मिलेनियल्स के पास पीएम मोदी के लिए लाखों सवाल होंगे. यह एक ऐसी पीढ़ी है जो वर्तमान को देख रही है, अतीत को नहीं.

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