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Friday, 20 December, 2024
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दलित, राष्ट्रवाद जैसे शब्द भारतीय नहीं, खुद को कट्टर हिंदू या कट्टर स्वयंसेवक बुलाना गलत : आरएसएस

आरएसएस के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा, 'हम चाहते हैं कि भारत का हर व्यक्ति राष्ट्रीय बने. इसे भौगोलिक परिभाषा के तौर सीमित मत किया जाए.'

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक बार फ़िर इस बात पर ज़ोर दिया कि ‘राष्ट्रवाद’ भारतीय शब्द नहीं है. आरएसएस के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा है कि राष्ट्रवाद और दलित और कट्टर जैसे शब्द भारतीय नहीं हैं. उन्होंने ये भी कहा कि अंग्रेज़ी के नेशनलिज़्म से बना हिंदी शब्द राष्ट्रवाद साम्राज्य विस्तार का प्रतीक है.

ये बातें वैद्य ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ईकाई भारतीय शिक्षण मंडल के फ़ेसबुक लाइव ‘भारतीय मन और बुद्धि का डिकोलोनायज़िंग’ विषय पर एक बातचीत के दौरान कही. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रवाद शब्द भारतीय नहीं है. राष्ट्रवाद पश्चिम के नेशनलिज़्म से आया. पश्चिमी देशों ने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए दूसरों पर हमला किया. ये उनका राष्ट्रवाद है.’

उन्होंने कहा कि भारत के मामले में राष्ट्र है, राष्ट्रीयता है. लेकिन राष्ट्रवाद नहीं है. एक घटना का ज़िक्र करते हुए वैद्य ने कहा कि सर संघचालक मोहन भागवत कुछ साल पहले यूके गए थे. इस दौरे के दौरान उन्हें सलाह दी गई की यहां चर्चा के दौरान राष्ट्रवाद का ज़िक्र मत करें क्योंकि यहां का इतिहास हिटलर और मुसोलिनी जैसे राष्ट्रवादियों का रहा है.

भागवत ने 21 फ़रवरी को राष्ट्रवाद को लेकर ऐसे ही विचार प्रकट किए थे. राष्ट्रवाद को भारत से अलग करते हुए वैद्य ने कहा कि भारत में कांग्रेस जैसी पार्टी का भी नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दलित शब्द भी भारतीय नहीं है.

भारतीय मानस के दिमाग के उपनिवेशवाद से मुक्ति के लिए उन्होंने शब्दों और उनके इस्तेमाल को अहम बताते हुए कहा, ‘हम चाहते हैं कि भारत का हर व्यक्ति राष्ट्रीय बने. इसे भौगोलिक परिभाषा के तौर सीमित मत किया जाए.’ उन्होंने सहिष्णुता शब्द पर भी आपत्ति जताई और ये भी कहा कि विचारधारा शब्द भी भारत का नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘ये शब्द आइडियोलॉजी से आया है. हिंदुत्व कोई विचारधारा नहीं बल्कि दर्शन है. खुद को कट्टर हिंदू या कट्टर स्वयंसेवक बुलाना ग़लत है. ये शब्द भारतीय नहीं है. गूगल में फंडामेंटलिस्ट का हिंदी कट्टर आता है. कट्टरता भारतीय संकल्पना में कहीं नहीं है. कट्टर की जगह कर्मठ और आग्रही का इस्तेमाल हो सकता है.’

सेक्युलरिज़्म के बारे में उन्होंने कहा कि शब्द की उत्पति पश्चिम में हुई. वहां धर्म को राज्य से अलग करने के लिए ये शब्द लाया गया. भारत के मामले में उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज़्म को संविधान में 1976 में संसद में बिना चर्चा के संविधान में जोड़ा गया. उन्होंने कहा, ‘ये शब्द हमारे यहां लागू नहीं होता क्योंकि हमारे यहां सर्वधर्म सम्भाव है.’

उन्होंने इस पर भी ज़ोर दिया कि आरएसएस के कार्यकर्ता भी ऐसे शब्द इस्तेमाल करने लग गए हैं, जो भारतीय नहीं हैं. इन्हें समझे बिना अपना लिया गया है. फिर भी इनका इस्तेमाल लोग गर्व से करते हैं. उन्होंने कहा कि भारतीयता के लिए अपने शब्दों को अपनाना होगा.


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एक घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरे एक दोस्त की बेटी के गाल पर गड्ढे पड़ते थे. मैंने उससे पूछा इसे हिंदी में क्या कहते हैं. उसने कहा कि इसे डिंपल कहते हैं. उसकी मां ने भी यही कहा. जब गूगल करने को कहा तो शब्द आया हिलकोरे. देश में कई लोगों को हिलकोरे पता ही नहीं है, सब डिंपल ही बोलते हैं.’

उन्होंने ये भी कहा कि 2014 के बाद जिस तरह की सरकार आई है. उससे भारत की सुरक्षा नीति और विदेश नीति में व्यापक बदलाव आया है. इसके पहले विदेशी शब्दों का इस्तेमाल करने वालों को असली भारतीय बताया गया और जो असल में देश की बात करते हैं उन्हें कम्युनल बुलाया गया.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में जो हो रहा है उसे राष्ट्रवाद बताया जा रहा है. लेकिन यही भारत का असली स्वभाव है. भाषा को फ़िर से जीवंत करने के लिए एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इज़रायल के अस्तित्व में आने तक हिब्रू एक भाषा के तौर पर संगठित नहीं थी. लेकिन यहूदियों ने धैर्य बनाए रखा और समय के साथ हिब्रू को एक समृद्ध भाषा बनाया.

शिक्षा पर लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारों के प्रभाव और वर्तमान शिक्षा नीति में इस प्रभाव को पलटने से जुड़े संभावित बदलाव से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कि सारा काम सरकार नहीं कर सकती. कई काम परिवार को भी करना पड़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘परिवार में लोगों को साथ बैठकर रोज़ आधा घंटा हिंदी में बात करनी चाहिए और किसी अन्य भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसे शब्दों से दूर होना भारतीय मानस का डिकोलोनायज़िंग का काम करेगा.’

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