बेंगलुरू: जो लोग कर्नाटक के मुख्य सचिव तक्कलापति महादेवा नायडू विजय भास्कर के साथ काम करते हैं, वो जानते हैं कि उनकी दूरदर्शिता, सावधानी से योजनाएं बनाने और उन पर अमल की बदौलत ही राज्य कोविड-19 वैश्विक महामारी से दूसरे राज्यों के मुक़ाबले बेहतर ढंग से निपटा है.
उनके कुछ वरिष्ठ सहयोगियो ने दिप्रिंट को बताया कि 60 वर्षीय भास्कर एक ईमानदार इंसान हैं, जो मृदुभाषी हैं लेकिन काम लेने में सख़्त हैं- ‘ऐसे इंसान, जिनका आज के बहुत से अधिकारी अनुसरण करते हैं.’
मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने सिविल सर्वेंट्स को कोविड-19 कि खिलाफ लड़ाई की अगुवाई करने दी हुई है, इसलिए 1983 बैच के आईएएस अधिकारी भास्कर इस संकट से निपटने में बिल्कुल अगले मोर्चे पर रहे हैं.
सहयोगियों का कहना है कि सावधानी से की गई उनकी प्लानिंग और डेटा पर ध्यान देने से कर्नाटक में कम से कम अभी तक कोविड-19 की संख्या को कम रखने में मदद मिली है. 19 जून तक कर्नाटक में 2,847 एक्टिव केस थे, जबकि ठीक होने वालों की संख्या 4,983, और मरने वालों की तादाद 114 थी.
राजधानी बेंगलुरू पूरे देश में सबसे अच्छे से मैनेज किए हुए मेट्रो के रूप में उभरा है, जिसमें मुम्बई, दिल्ली और चेन्नई की तुलना में बेहद कम मामले हैं.
कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के सचिव और राज्य में कोविड वॉर-रूम के प्रमुख मुनीष मौदगिल ने दिप्रिंट को बताया कि महामारी से निपटने में कर्नाटक की कामयाबी का 50 प्रतिशत श्रेय, मुख्य सचिव की योजना और उसके अमल को दिया जाना चाहिए.
मौदगिल ने कहा, ‘क्या किया जाना है इस बारे में उनके निर्देश बहुत स्पष्ट होते हैं. कोविड के संदर्भ में उनकी ताक़त रही है. सैकड़ों अधिकारियों को हैण्डल करना, उन्हें काम देना और फिर उनके पीछे लगकर सुनिश्चित करना कि वो काम कर लिए गए.’
उन्होंने आगे कहा, वो आपको एक निश्चित काम देते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उसपर सावधानी के साथ अमल होगा. वो एक साध्य कार्य होगा, लेकिन वो उस अधिकारी के पीछे लगे रहते हैं कि वो काम हुआ कि नहीं. अगर आप नहीं कर पाते, तो खिंचाई के लिए तैयार रहिए.’
मिसाल के तौर पर, अगर वो किसी को 14 जुलाई को कोई काम देते हैं और ऑफिसर कहता है कि ये अक्तूबर 17 तक हो जाएगा, तो वो उस ऑफिसर को उसी तारीख़ पर बुलाकर पूछेंगे कि काम हुआ कि नहीं. उनका यही तरीक़ा है. काम की गुणवत्ता या उसकी मात्रा पर वो कोई समझौता नहीं करते.
‘सुव्यवस्थित नौकरशाह के मॉडल’
राज्य की ओर से किए जा रहे उपायों के लिए उनके साथी भास्कर को श्रेय देते हैं और अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए के जयराज ने दिप्रिंट से कहा कि उन्हें इसपर कोई आश्चर्य नहीं है.
जयराज ने बताया, ‘मैंने उन्हें काम करते हुए देखा है. जब मैं अलग-अलग पदों में सरकार में काम करता था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘वो एक बहुत ही विचारवान और सुव्यवस्थित इंसान हैं. उन्हें बारीकी में जाना पसंद हैं.’
जयराज ने ये भी कहा, ‘वो एक आदर्श सिविल सर्वेंट हैं. वो निष्पक्ष रहते हैं, आंकड़ों के आधार पर फैसले लेते हैं और बेहद विनम्रता और निष्ठा के साथ सरकारी नीतियों को लागू करते हैं.’ उन्होंने आगे कहा, वो एक ‘ऐसे इंसान हैं जो हमेशा परदे के पीछे रहकर काम करते हैं.’
राज्य की ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज प्रमुख सचिव ऊमा महादेवन ने कहा, ‘वो बहुत लो प्रोफाइल रहते हैं और ख़ुद को कभी भी, किसी मुद्दे के केंद्र में नहीं रखते. काम के प्रति उनका समर्पण, ज़मीन पर प्रक्रियाओं के प्रति समर्पण, और प्रणालीगत सुधार लाने की उनकी लगन ज़बर्दस्त है.’
मुख्य सचिव के नेतृत्व में कर्नाटक देश के सबसे सक्रिय राज्यों में से एक रहा है. कालाबुरागी ज़िले में कोविड-19 से देश की पहली मौत दर्ज होते ही, मुख्यमंत्री ने भास्कर से सलाह मश्विरा करने के बाद 15 मार्च को कालाबुरागी को बंद कर दिया था.
राष्ट्रीय लॉकडाउन से पहले ही, कर्नाटक ने 22 मार्च से अपना लॉकडाउन करने का फैसला ले लिया था और वायरस से निपटने की तैयारी शुरू कर दी थी. क्वारेंटीन सुविधाओं की निशादेही के लिए भास्कर ने बहुत सी अथॉरिटीज़ से बात की, जिनमें केंद्रीय पुलिस बल, भारतीय वायु सेना और प्रदेश के सभी विभाग शामिल थे.
सभी सरकारी अस्पतालों में आईसोलेशन अस्पताल और वार्ड्स स्थापित कर दिए गए और एयरपोर्ट्स, बस स्टेशंस, रेलवे स्टेशंस, मॉल्स और मल्टीप्लेक्सेज़ को तुरंत बंद कर दिया गया.
कर्नाटक ने कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और ट्रैकिंग के लिए ठोस सिस्टम बनाया और कोविड की संख्या का हिसाब रखने के लिए, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया. राज्य अभी तक अपने यहां कोविड संख्या को, सीमित रखने में सफल रहा है.
एक सीनियर अधिकारी ने, जो मुख्य सचिव से निकटता के साथ काम करते हैं, नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आलोचना किए जाने के बावजूद उन्होंने सख़्त फैसले लिए हैं. पीछे देखने पर, वायरस को फैलने से रोकने में ये फैसले अत्यंत कारगर साबित हुए हैं.
अधिकारी ने बताया, ‘हमने उन्हें टास्क फोर्स की हर मीटिंग में देखा है और उन्हें हर वो विषय याद रहता है, जिसकी पिछली सैकड़ों बैठकों के दौरान चर्चा हुई थी. वो बहुत एहतियात के साथ नोट्स लेते हैं, उनकी प्लानिंग और समन्वय ने हमें बहुत तरह से प्रेरित किया है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘बिना किसी शक के आप कह सकते हैं कि विजय भास्कर सर ने हम सब को विश्वास में लेकर, मोर्चे पर आगे रहते हुए कोविड से लड़ाई की अगुवाई की है.’
3 दशक का अनुभवी, सख़्त प्रशासक
भास्कर का परिवार 1960 के दशक में तमिलनाडु से बेंगलुरू आ गया था. उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई शहर के एक सबसे प्रतिष्ठित संस्थान, बाल्डविन बॉयज़ स्कूल में की. इसके बाद उन्होंने बिट्स पिलानी से इकनॉमिक्स में मास्टर्स, और यूनिवर्सिटी ऑफ बिरमिंघम से एमबीए किया.
1983 में वो भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और तब से उन्होंने बहुत से विभागों में अलग-अलग पदों पर काम किया है. उनके काम का अनुभव कई क्षेत्रों में रहा है, जिनमें स्कूली शिक्षा, सफाई, कृषि विकास, जल आपूर्ति, सड़क व यातायात शामिल हैं.
एक जुलाई 2018 को मुख्य सचिव का कार्यभार लेने से पहले भास्कर सिर्फ 146 दिन के लिए, शहर के नगर निकाय, बृहत बेंगलुरू महानगर पालिके (बीबीएमपी) के कमिश्नर भी रहे थे.
उन्होंने ये पद जुलाई 2015 में लिया था, लेकिन कम समय के बावजूद उन्हें निकाय के प्रशासन में कई बदलाव लाने का श्रेय जाता है. उन्होंने 188 बैठकों की अध्यक्षता की, ऐसी 123 जगहों के दौरे किए जहां कचरा जमा हो जाता था, और उन ठेकेदारों से 1.38 करोड़ रुपए वसूले, जिन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियां नहीं निभाई थीं.
काम लेने में सख़्त भास्कर पहले अधिकारी थे, जिन्होंने बेंगलुरू की सड़क पर पाए जाने वाले हर गड्ढे के लिए, ठेकेदार पर 2,000 रुपए का फाइन किया. उन्होंने बिजली के ठेकेदारों के साथ भी यही किया, जो बंद पड़ी स्ट्रीट लाइट्स को बदलते नहीं थे.
बीबीएमपी में अपने कार्यकाल में वो, संस्था के स्टाफ के भी चहेते बन गए.
बीबीएमपी से जुड़ी एक पौराकर्मिका (कूड़ा उठाने वाली) प्रतिमा रमेश ने कहा, ‘वो बहुत सीधे, ज़मीन से जुड़े हुए इंसान हैं.’ उसने आगे कहा, ‘वो अपने ऑफिस की जगह ख़ुद साफ कर देते थे और लोगों के नीचे डाले हुए कप्स और प्लास्टिक उठाकर फेंक देते थे. वो हमारे साथ चाय भी पी लेते थे और हमारी समस्याएं पूछते थे.’
प्रमुख सचिव महादेवन को याद है जब 1996 में भास्कर के मैसूर डिप्टी कमिश्नर रहते हुए उन्होंने उनके साथ काम किया था. वो कहती हैं कि वो भास्कर के मातहत एक प्रोबेश्नरी ऑफिसर थीं, जब भारत के साक्षरता मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, वो हर रोज़ सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते थे.
महादेवन ने कहा, ‘प्रोबेश्नर्स के तौर पर, हमसे अपेक्षा की जाती थी कि हम जल्दी काम पर पहुंचकर, उनके साथ गांवों का दौरा करेंगे, जहां वो लोगों को साक्षरता मिशन की अहमियत के बारे में जागरूक करते थे, और फिर हम दफ्तर वापस लौट आते थे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘शाम में एक बार फिर, हम शिक्षा केंद्रों पर जाते थे, ये देखने के लिए कि वो कितने कागर थे. उनका समर्पण प्रेरणादायक है.’
कन्नड़ भाषा, संगीत व खेलों से प्रेम
भास्कर की एक ख़ासियत जो उनके सहयोगियों को सबसे ज़्यादा पसंद है, वो है उनका कन्नड़ प्रेम, वो न सिर्फ शुद्ध कन्नड़ बोलते हैं, बल्कि ये भी सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी कामकाज में भी इसका प्रयोग किया जाए.
कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक प्रवीण सूद ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाषा को लेकर वो बहुत जोश में रहते हैं. वो इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि एमएचए की सभी नोटिफिकेशंस का कन्नड़ में अनुवाद किया जाए. उनका मानना है कि भाषा को उसके शुद्ध रूप में सीखना और पढ़ना चाहिए.’
सूद ने आगे कहा, ‘वो बहुत तकनीक-प्रेमी नौकरशाह हैं, जो सभी मंचों पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं, चाहे वो व्हाट्सएप हो या सोशल मीडिया.’
ऊमा महादेवन उन बैठकों को याद करती हैं, जब वो किसी बात को ठीक से रखने के लिए, महान कन्नड़ लेखकों के साहित्यिक कार्यों का हवाला दिया करते थे.
महादेवन ने कहा, ‘कुछ सप्ताह पहले की ही बात है, वो एक मीटिंग की अध्यक्षता कर रहे थे. जिसमें हम कृषि से जुड़े कुछ पहलुओं पर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने फौरन ही प्रसिद्ध लेखक पूरनचंद्र तेजस्वी की एक किताब का हवाला दे दिया.’
सूद याद करते हैं कि कैसे इस साल के शुरू में, चिन्नास्वामी स्टेडियम में एक ट्राई-सर्विसेज़ (आईएएस, आईपीएस व आईएफएस) क्रिकेट मैच आयोजित किया गया था. भास्कर और सूद को टॉस के लिए बुलाया गया था.
सूद ने कहा, ‘मुझे लगा कि वो टॉस करेंगे और फिर कुछ देर बाद वहां से चले जाएंगे. मुझे बहुत हैरत हुई देखकर कि वो पूरे चार घंटे तक मैच देखते रहे और उत्साह बढ़ाते रहे. तब मुझे अहसास हुआ कि उन्हें क्रिकेट कितना पसंद है. किसी राज्य के मुख्य सचिव को, इस तरह समय बिताते देखकर हम सब को ख़ुशी हुई, और इससे ये भी नज़र आया, कि हम सब के अंदर एक मज़े वाली साइड भी है.’
2019 में एक सरकारी टीवी चैनल को दिए एक इंटरव्यू में, उनकी मां टीएम मुनियम्मा ने बताया कि उनके बेटे को संगीत सीखने में मज़ा आता है.
इंटरव्यू में रिकॉर्ड किए गए एक मैसेज में उन्होंने कहा, फ्रेंच क्लासेज़ में जाने, कराटे सीखने, और एनसीसी कैडेट के तौर पर हिस्सा लेने के बाद, तुमने पियानो बजाना भी सीखा. तुमने बहुत संघर्ष किया है, और हम सब को तुम पर गर्व है…मैं तमिल मीडियम में पांचवीं क्लास तक पढ़ी हूं, और तुम्हारे पिता तेलुगु मीडियम में पांचवीं तक. हमारी पूरी कम्यूनिटी में तुम पहले आईएएस अधिकारी थे.
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