नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के निलंबित डीएसपी दविंदर सिंह को जमानत दे दी. सिंह को इस साल की शुरुआत में श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया गया था. सिंह वकील के अनुसार जांच एजेंसी 90 दिन के अंदर नहीं उनके आतंकियों से तार जुड़े होने के आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पाई.
A Delhi court grants bail to suspended J&K DSP Davinder Singh, in connection with a terror case after Delhi Police fails to file charge-sheet within the stipulated period, says lawyer
— ANI (@ANI) June 19, 2020
सिंह के वकील ने यह जानकारी दी.
उनके वकील एमएस खान ने कहा कि अदालत ने सिंह और मामले के एक अन्य आरोपी इरफान शफी मीर को जमानत दे दी. दोनों को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दायर एक मामले में अदालत द्वारा राहत दी गई है.
खान ने कहा कि कानून के अनुसार जांच एजेंसी गिरफ्तारी से 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करने में विफल रही.
उन्हें एक लाख रुपये के निजी बांड और इतनी ही राशि के दो मुचलकों पर यह राहत दी गयी.
आतंकवाद के विरोध में काम करने वाला व्यक्ति
देविंदर सिंह 1990 के दशक में आतंकवाद विरोधी विंग में शामिल हो गए थे, जब पूर्ववर्ती राज्य इंसर्जेंसी की चपेट में था.
पुलिस के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों का खुफिया नेटवर्क लगभग ध्वस्त हो गया था, क्योंकि हजारों युवा राज्य में भारत के खिलाफ विद्रोह में शामिल हो गए थे. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि सिंह उस समय पुलिस बल में शामिल होने के लिए तैयार थे.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने याद करते हुए बताया कि यह एक ऐसा समय था जब उग्रवाद अपने चरम पर था और ऐसे उदाहरण थे कि उग्रवादियों ने कुछ पुलिस स्टेशनों को अपने कब्जे में ले लिया था. 1990 के दशक की शुरुआत में एक आंतरिक विद्रोह ने सुरक्षा बल को बुरी तरह प्रभावित किया. वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी फारूक खान (जो अब जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के सलाहकार हैं) और कुछ अन्य अधिकारियों के साथ पुलिस बल को वापस पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अधिकारी ने यह भी कहा, ‘उस समय का कदम उग्रवाद रोधी इकाइयों को मजबूत करना था, जिसके लिए वॉलेंटियर्स की जरूरत थी और सिंह ने मदद की थी.’
एसओजी के एक हिस्से के रूप में (विशेष-इकाई) जिसे आतंकवादी-संबंधी कार्रवाई के लिए बनाया गया था. दविंदर सिंह कई आतंकवाद-रोधी और आतंकवाद-रोधी अभियानों विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में और घाटी में मुठभेड़ का हिस्सा रहे.
1994 की शुरुआत में वह लगभग एक दशक तक लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे फिदायीन समूहों के शुरुआती वक़्त में एक यूनिट में रहे. सिंह की प्रतिष्ठा ने उन्हें इस हद तक आगे बढ़ाया. उनके परिवार ने सोमवार को दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सुरक्षा जोखिम के कारण लगभग 30 वर्षों से त्राल में अपने गांव का दौरा नहीं किया है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि यह जवाबी कार्रवाई के रूप में उनकी कुख्यात रणनीति के कारण हो सकता है.
गिरफ्तारी की घोषणा करते हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कश्मीर आईजी विजय कुमार ने सिंह के आतंकवाद-रोधी अभियानों का उल्लेख किया था लेकिन उन्होंने कहा कि चूंकि वह कथित रूप से जघन्य अपराध में शामिल हैं, इसलिए उनके साथ गिरफ्तार आतंकवादियों की तरह ही व्यवहार किया जा रहा है.
जबरन वसूली के लगे थे आरोप
पुलिस अधिकारियों ने कहा कि विभाग ने नागरिकों के खिलाफ अत्यधिक बल का उपयोग करने के लिए सिंह के खिलाफ शिकायत प्राप्त की थी. हालांकि, एंटी-हाइजैकिंग यूनिट में आने से पहले कथित तौर पर अनुशासनहीनता के कारण विश्वसनीय पुलिस अधिकारी के रूप में उनका रिकॉर्ड फीका हो गया था.
एक दूसरे पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘बडगाम में जहां वह तैनात थे, उनके खिलाफ नागरिकों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग करने की शिकायतें थीं. उनका उग्रवाद-रोधी रिकॉर्ड अच्छा था. यह आश्चर्यजनक रूप से सामने आया कि वह आतंकवादियों के इशारे पर काम कर रहे थे.’
ग्रेटर कश्मीर में सोफी ने मामले पर एक रिपोर्ट में भी कहा है कि एक सत्र न्यायाधीश ने सरकार को जुलाई 2003 में सिंह और एक डीएसपी के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था, क्योंकि उन्हें बंदूक की नोक पर नागरिकों से पैसे वसूलने का दोषी पाया गया था. हालांकि, सरकार ने कथित रूप से अदालत के आदेशों को नजरअंदाज कर दिया और इसके बजाय डीएसपी को बढ़ावा दिया.